देशद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई हुई. वहीं इस सुनवाई के दौरान AG ने नवनीत राणा का मामला उठाया और कहा हनुमान चालीसा पढ़ने पर देशद्रोह का केस बनाया गया. कल ही जमानत हुई है . ऐसे में अदालत को देशद्रोह के कानून पर गाइडलाइन बनाने की जरूरत है. साथ ही इसी सुनवाई के दौरान पुराना केदारनाथ का मामला भी उठा. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि क्या हम देशद्रोह के मामले को पुराने केदारनाथ मामले को बड़ी बेंच को भेजे बिना सुन सकते हैं ? कपिल सिब्बल ने कहा कि जी हां , रोजाना पत्रकारों व अन्य को देशद्रोह के मामलों में गिरफ्तार किया जा रहा है . ये अंग्रेजों के जमाने का कानून है. इसके बाद SG ने कहा कि लेकिन केदारनाथ फैसला तो आजादी के बाद का है.
AG ने कहा कि मुख्य सवाल जो उठाया गया है वह यह है कि केदारनाथ का फैसला सही था या नहीं . केदार नाथ सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था. लेकिन इसके दुरुपयोग के दायरे को सीमित करने का प्रयास किया. अदालत ने माना था कि जब तक हिंसा के लिए उकसाने या आह्वान नहीं किया जाता. सरकार देशद्रोह का मामला दर्ज नहीं कर सकती. केदारनाथ फैसले ने उन स्थितियों को कम कर दिया था जिनमें राजद्रोह का इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन अब यह आरोप लगाया जा रहा है कि कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है.
1962 में केदारनाथ बनाम बिहार राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था. इस मामले में फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया से सहमति जताई थी. सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ केस में व्यवस्था दी कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर कमेंट भर से देशद्रोह का मुकदमा नहीं बनता. बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर 1962 में राज्य सरकार ने एक भाषण को लेकर देशद्रोह का मामला दर्ज कर लिया था. लेकिन इस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी. केदारनाथ सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों के संविधान पीठ ने भी अपने आदेश में कहा था कि देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा या असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े.
केदारनाथ बनाम बिहार राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर टिप्पणी करने भर से देशद्रोह का मुकदमा नहीं बनता. देशद्रोह कानून का इस्तेमाल तब ही हो जब सीधे तौर पर हिंसा भड़काने का मामला हो. सुप्रीम कोर्ट की संवैज्ञानिक बेंच ने तब कहा था कि केवल नारेबाजी देशद्रोह के दायरे में नहीं आती.
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