CAA के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा IUML,याचिका में सीएए को लेकर दी ये दलीलें

आईयूएमएल ने CAA अधिसूचना के कार्यान्वयन पर रोक की मांग की है और साथ ही ये भी कहा कि "सीएए असंवैधानिक, मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण" है.

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सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) अधिसूचना का मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में पहुंच गया है.  CAA अधिसूचना को लागू करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है.  ये याचिका IUMLने दाखिल की है. आईयूएमएल ने अधिसूचना के कार्यान्वयन पर रोक की मांग की है.  आईयूएमएल ने कहा कि "सीएए असंवैधानिक, मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण" है. IUML के मुताबिक- पहले सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने यह कहते हुए रोक का विरोध किया था कि कोई तत्काल कार्यान्वयन नहीं होगा क्योंकि नियम अधिसूचित नहीं है.

उनकी ओर से कहा गया कि CAA  असंवैधानिक है और मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है. धार्मिक पहचान के आधार पर वर्गीकरण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का उल्लंघन करता है. वहीं डेमोक्रेटिक यूथ फ्रंट ऑफ इंडिया भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष CAA की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली अपनी लंबित याचिका  पर सुनवाई की मांग कर सकता है.

CAA के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्जी में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की दलीलें 

  • सीएए नियमों के कार्यान्वयन पर तब तक रोक लगाएं जब तक सुप्रीम कोर्ट लगभग 250 लंबित याचिकाओं पर फैसला नहीं सुना देता,  जिन्होंने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है.
  • सरकार ने इसे 4 साल तक लागू करने को महत्वपूर्ण नहीं माना है.
  • अब कम से कम तब तक उसे लागू ना करने दें जब तक सुप्रीम कोर्ट वैधता पर फैसला नहीं सुना देता.
  • सीएए की धारा 5 गलत तरीके से उन व्यक्तियों की एक विशिष्ट श्रेणी बनाती है, जो भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण करने के योग्य है.
  •  जो मुस्लिम भारतीय मूल के व्यक्ति हैं उन्हें पंजीकरण की इस त्वरित प्रक्रिया का लाभ नहीं मिलता.
  • ये का  स्पष्ट रूप से मनमाना है इसलिए रद्द किया जाए.
  • संविधान की प्रस्तावना में परिकल्पना की गई है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और इसलिए पारित होने वाला कोई भी कानून धर्म निरपेक्ष होना चाहिए.
  • सीएए असंवैधानिक, भेदभावपूर्ण, मनमाना, अवैध है, क्योंकि यह मुस्लिम प्रवासियों को अलग करता है और केवल हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाइयों, पारसियों और जैनियों को नागरिकता देता है.
  • ये एक समूह को बहिष्कृत करने वाला कानून है.
  • धार्मिक पहचान पर आधारित कोई भी वर्गीकरण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.
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