डेंगू से पहले खत्म होगा मलेरिया, भारत का पहला स्वदेशी टीका तैयार

इस टीके की खास बात यह है कि यह रक्त में मलेरिया परजीवी पहुंचने से पहले ही उसे रोक देता है, साथ ही मच्छरों के ज़रिए इसके फैलाव पर भी रोक लगाता है. इसे एक सुरक्षित बैक्टीरिया लैक्टोकोकस लैक्टिस की मदद से तैयार किया गया है, जो आमतौर पर दही और पनीर बनाने में इस्तेमाल होता है.

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अब मलेरिया पर लगेगी दोहरी रोक
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  • भारत ने एडफाल्सीवैक्स नामक पहला स्वदेशी मलेरिया टीका विकसित किया है जो मलेरिया संक्रमण और इसके फैलाव दोनों को रोकता है.
  • यह टीका प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम परजीवी के खिलाफ प्रभावी है और मच्छर के जरिए संक्रमण के प्रसार को भी रोकता है.
  • टीका लैक्टोकोकस लैक्टिस बैक्टीरिया की मदद से तैयार किया गया है जो दही और पनीर बनाने में उपयोग होता है और सुरक्षित है.
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नई दिल्‍ली:

भारत ने मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारी के खिलाफ बड़ी सफलता हासिल की है. वैज्ञानिकों ने देश का पहला स्वदेशी मलेरिया टीका तैयार कर लिया है, जिसका नाम एडफाल्सीवैक्स (EdFalciVax) रखा गया है. यह टीका न सिर्फ मलेरिया के संक्रमण की रोकथाम करेगा, बल्कि इसको फैलने से भी रोकेगा. 

आईसीएमआर ने जानकारी दी है कि मच्छर जनित रोगों के खिलाफ भारत पिछले कई दशकों से सामना कर रहा है. देश के अलग-अलग संस्थानों में डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों से बचाव के लिए टीका की खोज जारी है. हालांकि इस बीच वैज्ञानिकों ने मलेरिया टीका की खोज पूरी कर ली है.वैज्ञानिकों के अनुसार एडफाल्सीवैक्स, मलेरिया परजीवी प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के खिलाफ पूरी तरह असरदार पाया गया है.

अब मलेरिया पर लगेगी दोहरी रोक

इस टीके की खास बात यह है कि यह रक्त में मलेरिया परजीवी पहुंचने से पहले ही उसे रोक देता है, साथ ही मच्छरों के ज़रिए इसके फैलाव पर भी रोक लगाता है. इसे एक सुरक्षित बैक्टीरिया लैक्टोकोकस लैक्टिस की मदद से तैयार किया गया है, जो आमतौर पर दही और पनीर बनाने में इस्तेमाल होता है. यह स्वदेशी टीका आईसीएमआर और भुवनेश्वर स्थित क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र (RMRC) के शोधकर्ताओं ने मिलकर तैयार किया है

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सस्ती और असरदार वैक्सीन

आईसीएमआर के मुताबिक, अभी तक मलेरिया के दो टीके उपलब्ध हैं, जिनकी कीमत करीब ₹800 प्रति डोज है और वे सिर्फ 33% से 67% तक ही असर दिखाते हैं. इसके अलावा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से भी मंजूर आरटीएस और आर21/मैट्रिक्स-एम टीका दुनिया के कुछ देशों में दिया जा रहा है. इनकी तुलना में भारत का यह टीका पूर्व रक्ताणु यानी रक्त में पहुंचने से पहले के चरण और ट्रांसमिशन-ब्लॉकिंग यानी संक्रमण प्रसार को रोकने में दोहरा असर दिखाती है. भारत का यह नया टीका अधिक असरदार होने के साथ-साथ किफायती भी होगा.

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उत्पादन की तैयारी शुरू

टीके का जल्द से जल्द उत्पादन के लिए नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने प्राइवेट कंपनियों के साथ समझौता करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. जल्द ही यह टीका आम लोगों के लिए उपलब्ध हो सकता है.

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अभी तक मलेरिया के इस स्वदेशी टीका पर पूर्व-नैदानिक सत्यापन हुआ है जिसे आईसीएमआर के नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान और राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान (NII) के साथ मिलकर पूरा किया है. आरएमआरसी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुशील सिंह ने बताया कि भारत का यह स्वदेशी टीका संक्रमण को रोकने वाले मजबूत एंटीबॉडी बनाता है. उन्होंने कहा कि 2023 में दुनियाभर में मलेरिया के करीब 26 करोड़ मामले दर्ज हुए, जो साल 2022 की अपेक्षा एक करोड़ ज्यादा हैं. इनमें से लगभग आधे दक्षिण-पूर्व एशिया से हैं, और इनमें भी बड़ी संख्या भारत में है.

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वैश्विक बनाम स्वदेशी टीका

वैज्ञानिकों ने बताया कि विश्व स्तर पर मलेरिया के खिलाफ अभी दो टीका आरटीएस एस और आर21/मैट्रिक्स-एम काफी चर्चित हैं क्योंकि इनके वितरण ने नए मामलों में कमी के साथ साथ उच्च-प्रभाव वाले क्षेत्रों में छोटे बच्चों में बेहतर परिणाम दिखाए हैं. मलेरिया से निपटने में बड़ी प्रगति हासिल करने के बाद भी वैश्विक बोझ अभी भी काफी बड़ा है. यह भारत के लिए एक चुनौती बना क्योंकि मलेरिया उन्मूलन के साथ-साथ एक ऐसा टीका चाहिए जो मच्छर वाहक में संचरण को रोकने या कम करने पर भी सक्षम हो. एक लंबे प्रयास के बाद भारत ऐसा टीका खोजने में सफल रहा है.

भारत देगा वैश्विक योगदान

यह टीका ना सिर्फ भारत के लिए, बल्कि दुनिया के उन देशों के लिए भी मददगार होगा जो मलेरिया से बुरी तरह प्रभावित हैं. यह भारत का वैश्विक मलेरिया उन्मूलन अभियान में अहम योगदान होगा. दरअसल, मलेरिया के खिलाफ भारत की यह वैज्ञानिक उपलब्धि एक ऐतिहासिक कदम है. अब उम्मीद की जा रही है कि डेंगू से पहले मलेरिया को देश से पूरी तरह खत्म किया जा सकेगा.

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