'हिंदू विवाह कॉन्ट्रैक्ट नहीं, जिसे सहमति से भंग किया जा सके' इलाहाबाद HC ने ऐसा क्यों कहा?

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए कहा कि कानूनी प्रक्रिया के तहत ही सीमित आधारों पर हिंदू विवाह (Hindu Marriage) भंग या खत्म किया जा सकता है.

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हिंदू विवाद खत्म करने पर इलाहबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी.(प्रतीकात्मक फोटो)
दिल्ली:

हिंदू विवाह कॉन्ट्रैक्ट नहीं है, जिसे सहमति से भंग किया जा सके, ये बात इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allhabad High Court) ने पत्नी-पत्नी के बीच एक मामले पर सुनवाई के दौरान कही. अदालत ने इसके साथ ही ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि कानूनी प्रक्रिया के तहत ही सीमित आधारों पर हिंदू विवाह (Hindu Marriage) भंग या खत्म किया जा सकता है. अगर पति-पत्नी, दोनों में से किसी पर नपुंसकता का आरोप है तो अदालत साक्ष्य लेकर विवाह को शून्य घोषित कर सकती थी, लेकिन इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने इसकी उपेक्षा की.

"वाद तय करने के लिए पति की आपत्ति और जवाब सुनना जरूरी"

हाई कोर्ट ने कहा कि विवाह विच्छेद वाद दायर होने के बाद तीन साल तक केस लंबित रहा. पत्नी ने अपने पहले लिखित बयान में विवाह विच्छेद पर सहमति जताई. इसके बाद मिडिएशन विफल होने और दूसरा बच्चा पैदा होने से परिस्थितियों में बदलाव की वजह से पत्नी ने दूसरा लिखित बयान दाखिल कर विवाह विच्छेद की सहमति वापस ले ली. हाई कोर्ट ने कहा कि अदालत को पति की आपत्ति और जवाब सुनकर गुण-दोष पर वाद तय करना चाहिए था.

कोर्ट ने पत्नी के दूसरे लिखित कथन पर पति की आपत्ति की सुनवाई की, तिथि तय की और विवाह विच्छेद की डिक्री पारित कर गलती की है. बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपर जिला जज बुलंदशहर के 30 मार्च 2011 के आदेश और विवाह विच्छेद की डिक्री रद्द कर अधीनस्थ अदालत को विवाह बनाए रखने का मिडिएशन विफल होने की दशा में नियमानुसार नए सिरे से पत्नी के दूसरे जवाब पर पति का जवाब लेकर आदेश पारित करने का निर्देश दिया है. यह आदेश जस्टिस सैमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनादी रमेश की डबल बेंच ने श्रीमती पिंकी की फर्स्ट अपील को स्वीकार करते हुए दिया है.याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता महेश शर्मा ने अपील पर बहस की. 

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मामले के बड़े पॉइंट्स

  • अपीलकर्ता की शादी पुष्पेंद्र कुमार के साथ 2 फरवरी 2006 में हुई थी. पति सैनिक था. 
  • पत्नी गर्भवती होने के बाद 31 दिसंबर 2007 को अपने मायके आ गई.
  •  पति ने 11 फरवरी 2008 को विवाह विच्छेद का वाद दायर किया. 
  • पत्नी ने भी सहमति जताई और कहा कि पति की पाबंदी के साथ नहीं रहना चाहती. 
  • केस लंबित रहा. मिडिएशन का प्रयास सफल नहीं हुआ. 
  • इसी बीच एक बच्चा और पैदा हुआ.
  •  पत्नी ने यह कहते हुए विवाह विच्छेद की सहमति वापस ले ली कि साबित हो गया कि वह बच्चा पैदा कर सकती है.
  •  दूसरा जवाब दाखिल किया. पति ने दूसरे जवाब पर आपत्ति की जिसकी सुनवाई की डेट तय हुई.
  • लेकिन अदालत ने विवाह विच्छेद की डिक्री पारित कर दी जिसे अपील में चुनौती दी गई थी.


हाईकोर्ट ने क्या कहा?

  •  विपक्षी विवाह विच्छेद के आधार साबित नहीं कर सका है.
  •  परिस्थितियां बदली पत्नी ने दाखिल पहले जवाब का समर्थन न कर दूसरा जवाब दाखिल किया, जिसपर अदालत ने विचार नहीं किया.
  •  जिस समय सहमति से अदालत ने‌ विवाह विच्छेद का आदेश दिया, पत्नी की सहमति मौजूद नहीं थी.
  • ऐसे में सहमति पर विवाह भंग नहीं किया जा सकता था.

"हिंदू विवाह कानून के मुताबिक ही भंग हो सकता है"

हाईकोर्ट ने इस बात को स्पष्ट किया कि विस्तार से बताने की जरूरत नहीं है कि हिंदू विवाह को कॉन्ट्रैक्ट के रूप में भंग या खत्म नहीं किया जाना चाहिए. संस्कार आधारित हिंदू विवाह को सीमित परिस्थितियों में कानून के मुताबिक ही भंग किया जा सकता है. सबसे पहले हिंदू विवाह को सिर्फ प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर पति या पत्नी में से किसी एक द्वारा नपुंसकता का आरोप लगाए जाने पर शून्य घोषित किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने इस बात को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया है कि शिकायत में दिए गए ऐसे आधार को साबित नहीं किया गया था.

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"ट्रायल कोर्ट ने गलती की है"

ट्रायल कोर्ट को पक्षकार को अपने मूल बयान पर कायम रहने के लिए बाध्य करने का अधिकार नहीं है. ट्रायल कोर्ट ने गलती की है अदालत ने गलती की है. हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए महान कवि जॉर्ज इलियट की पंक्तियों का जिक्र करते हुए कहा कि “दो मानव आत्माओं के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि वो महसूस करें कि वो जीवन भर के लिए एक-दूसरे से जुड़े हुए है. हर काम में एक-दूसरे को मजबूत बनाना, हर दुख में एक-दूसरे का सहारा बनना, हर दर्द में एक-दूसरे की सेवा करना, आखिरी विदाई के क्षण में खामोश, अकथनीय यादों में एक-दूसरे के साथ एक होना.”

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