पश्चिम बंगाल प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष व TMC विधायक माणिक भट्टाचार्य (Manik Bhattacharya) से जुड़ा चर्चित शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सीबीआई(Cbi) के समन को चुनौती देने वाली माणिक भट्टाचार्य की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है. भट्टाचार्य ने गिरफ्तारी से संरक्षण बढ़ाने की भी मांग की है. लेकिन SC ने स्पष्ट किया कि उसने कोई जांच नहीं रोकी है. भट्टाचार्य को अंतरिम संरक्षण जारी रहेगा, जब तक वो जांच में सहयोग करेंगे.
सीबीआई की ओर से एएसजी राजू ने कहा कि जांच एजेंसी पिछले कई महीने से जांच कर रही है, जो भर्ती के दूसरे परिणाम को लेकर है. कई अनियमितताएं पाई गई हैं और अदालत को इस मामले में जांच को जारी रखनी चाहिए. कोर्ट ने पूछा कि आपको जांच के लिए कितना और समय लगेगा. इसपर राजू ने कहा कि इस बारे में मुझे जांच एजेंसी से पूछना पड़ेगा. कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आप निर्धारित समय बताइए, नहीं तो कई मामलों में सीबीआई दशकों तक जांच करती रहती है.
विकास सिंह ने कहा कि हाईकोर्ट ने बिना किसी विशेष स्थिति के इस मामले में सीबीआई जांच का आदेश कर दिया, जबकि क्षेत्रीय पुलिस पर कोई संशय या आरोप नहीं था. सीबीआई ने कहा कि हाईकोर्ट की डबल बेंच के समक्ष रखी गई एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट पूरी तरह से धोखाखड़ी थी. असली पेपर को परीक्षा से हटाकर जानबूझकर बदलकर पेपर रखे गए. यह एक घोटाला है, जिसकी व्यापक जांच की जरूरत है. क्योंकि सही कैंडिडेट को नौकरी ना देकर अयोग्य लोगों को नौकरी दी गई.
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से पूछा क्या मणिक को लेकर कुछ अनियमितताएं पाई गईं है. सीबीआई ने कहा कि वह घोटाले के किंगपिन हैं. सीबीआई जांच न्यायिक आदेश के आधार पर है और पूरी तरह से सही है. सुनवाई वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि गैरकानूनी तरीके से कई लोगों की नियुक्ति की गई, जिन्होंने TET नहीं दिया था.
दूसरी ओर जिन्होंने TET में अच्छे अंक प्राप्त किए उन्हें मौका नहीं दिया गया. परिणाम घोषित किए बगैर ही नियुक्ति मनमाने और गैरकानूनी तरीके से दी गई. जांच सीबीआई के पास है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एक फैसले में हाईकोर्ट को सीबीआई जांच कराने का अधिकार दिया है. लेकिन ऐसा उचित मामले में होना चाहिए. हाईकोर्ट को सामान्य मामलों में जांच केंद्रीय एजेंसी को नहीं सौंपना चाहिए.
हाईकोर्ट ने याचिका के दाखिल होने के तीन साल बाद सरकार की ओर से हलफनामा दाखिल होने के बाद सुनवाई में पहली तारीख पर ही सीबीआई जांच का आदेश जारी कर दिया. हाईकोर्ट के याचिकाकर्ता की ओर से पीठ से कहा गया कि तीन साल तक कोई हलफनामा नहीं दाखिल किया गया. अदालत ने तीन साल इंतजार किया.
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