क्या हिमाचल में बार-बार भूस्खलन की एक वजह घास भी, पढ़ें NDTV की ग्राउंड रिपोर्ट

किसान मानते हैं कि घास जलाने वाली दवा से घास तो जल जाती है, लेकिन उससे खेत बर्बाद हो जाते हैं और मिट्टी कमजोर हो जाती है.

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  • हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के थुनांग इलाके में दो वर्षों में बादल फटने से भारी तबाही हुई, जिससे सेब और टमाटर की खेती प्रभावित हुई।
  • प्रशासनिक अधिकारियों ने बताया कि बार-बार आपदा के पीछे ग्लोबल वार्मिंग और पहाड़ों की घास के खत्म होने जैसी दो बड़ी वजहें हैं।
  • किसान खरपतवारनाशक दवाओं का उपयोग करते हैं, जो घास तो खत्म करती हैं लेकिन मिट्टी कमजोर होने से खेतों को नुकसान पहुंचाती हैं।
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मंडी:

हिमाचल प्रदेश में बादल फटने से हो रही बार-बार तबाही के पीछे एक बड़ी वजह घास भी है. पिछले दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को सराज घाटी के प्रशासनिक अधिकारियों ने जब बताया तो वो भी दंग रहे गए. मंडी के थुनांग इलाके में बीते दो सालों में दूसरी बार इतनी बड़ी तबाही आई. पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने प्रभावित इलाकों का दौरा करके बार-बार आने वाले प्राकृतिक आपदा का कारण प्रशासनिक अधिकारियों से पूछा तो पता चला कि इसके पीछे दो बड़ी वजह है. पहला ग्लोबल वार्मिंग और दूसरा पहाड़ों की घास खत्म होना.

खुद थुनांग के तहसीलदार ने जैसे ही अनुराग ठाकुर को बताया तो वहां खड़े किसानों ने विरोध करना शुरु कर दिया कि कैसे घास जिम्मेदार हो सकती है. हालांकि, अनुराग ठाकुर ने कहा कि इसका स्थाई हल खोजना होगा. वरना बार बार ऐसी आपदा आती रहेगी.

घास जलाने वाली दवा से खेत बर्बाद
दरअसल, बाजार में इस तरह की बहुत सारी खरपतवारनाशक आ गई हैं, जो महज 300 रुपए में महीने भर के लिए सेब, टमाटर और सब्जियों के खेतों से घास और खरपतवार को 20-30 दिनों के लिए चला देती हैं. खुद किसान मानते हैं कि इससे मिट्टी कमजोर हो जाती है. सूरज मणि जैसे किसान भी मानते हैं कि घास जलाने वाली दवा से घास जल जाती है. लेकिन उससे खेत बर्बाद हो जाते हैं और मिट्टी कमजोर हो जाती है.

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2023 और 2025 में बादल फटने से भारी तबाही
मंडी के सराज घाटी 2023 और 2025 में बादल फटने से भारी तबाही हुई. यही वो इलाका है जहां सेब और टमाटर की बड़े पैमाने पर खेती भी होती है तो क्या वाकई  खरपतवारनाशक की इस छोटी सी दवा से तबाही का दायरा बड़ा हुआ है.  खरपतवारनाशक के इस्तेमाल से मिट्टी कमजोर हुई. दरअसल, एक वजह ये भी है, क्योंकि पहले तेज बारिश को पहले देवदार जैसे बड़े पेड़ रोकते थे. फिर पहाड़ की घास, इसलिए इसका प्रभाव उतना भूस्खलन पर नहीं पड़ता था. लेकिन अब तेज बारिश होती है तो मिट्टी तेजी से कटती है. यही वजह है कि सिराज घाटी में बार बार बादल फटने से बड़ी तबाही हो रही है. यही वजह है कि सराज घाटी में सेबों के बागानों को बादल फटने से ज़्यादा नुक़सान हुआ है.

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ऐसे इलाकों में बादल फटने जैसी आपदा रोकने के दो ही स्थाई समाधान हैं. पहला ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकना दूसरा पहाड़ों में चीड़-देवदार जैसे वृक्षों को बचाना और घास ख़त्म करने की दवा पर रोक लगाना. तभी इस प्राकृतिक आपदा के दहाने पर खड़े पर्वतीय इलाक़ों को तबाही से बचाया जा सकता है.

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