सुप्रीम कोर्ट ने एक 6 साल के बच्चे की कस्टडी को दादा- दादी को सौंपते हुए कहा है कि मौसी की तुलना में दादा-दादी बच्चे की बेहतर देखभाल करेंगे, क्योंकि वे भावनात्मक रूप से अधिक जुड़े हुए हैं. पिछले साल कोविड के चलते बच्चे के माता-पिता दोनों की मौत हो गई थी.जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि हमारे समाज में दादा-दादी हमेशा अपने पोते-पोतियों की बेहतर देखभाल करेंगे. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट को कोविड के कारण अनाथ हुए 6 साल के बच्चे की कस्टडी पर फैसला लेना था. पिछले साल अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद से बच्चा दादा- दादी और मौसी के बीच कस्टडी की लड़ाई के बीच में फंसा था. बच्चे के पिता की मृत्यु 13 मई को और उसकी मां की 12 जून को मृत्यु हो गई, जब 2021 में दूसरी लहर चरम पर थी. परिजन बच्चे को उसकी मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए अहमदाबाद में उसके दादा-दादी के घर ले गए और तब से उसे वापस नहीं लाया गया.
उसके रहने, स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर चिंतित दादा-दादी ने कस्टडी की मांग करते हुए गुजरात हाईकोर्ट का रुख किया. हाईकोर्ट के जजों ने बच्चे के साथ बातचीत की और फैसले में दर्ज किया कि हमने देखा है कि वह याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी (दादा दादी) के साथ सहज है, हालांकि वह याचिकाकर्ता और मौसी के बीच एक स्वतंत्र वरीयता देने की स्थिति में नहीं था.
इसके बावजूद हाईकोर्ट ने 46 वर्षीय मौसी को इस आधार पर लड़के की कस्टडी दी कि वह अविवाहित है. केंद्र सरकार में कार्यरत है और एक संयुक्त परिवार में रहती है जो बच्चे के पालन-पोषण के लिए अनुकूल होगा. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दादा-दादी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि मौसी के पास केंद्र सरकार की नौकरी है, जबकि दादा-दादी पेंशन पर आजीविका चला रहे हैं. पीठ ने कहा कि दादा-दादी को कस्टडी से इनकार करने के लिए आय एकमात्र मानदंड नहीं हो सकता है. इस प्रकार मौसी को दी गई कस्टडी रद्द की जाती है और अब दादा-दादी के पास बच्चे की कस्टडी रहेगी.
वहीं दादा- दादी के वकील डीएन रे ने NDTV के साथ बात करते हुए कहा कि कस्टडी की लड़ाई अनाथ बच्चे के दादा-दादी और मौसी के बीच थी. दादा-दादी ने कस्टडी के लिए दावा नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट ने दादा-दादी को कस्टडी दी, जिन्होंने माता-पिता के जीवित रहने के दौरान भी बच्चे की देखभाल की थी जब से बच्चा 20 दिन का था.
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने गलत तरीके से अहमदाबाद से 200 किमी दूर दाहोद में रहने वाली मौसी को कस्टडी दी थी. इस बात की अनदेखी करते हुए कि अहमदाबाद में बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं. दाहोद मुख्य रूप से आदिवासी क्षेत्र है. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया है.
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