भारत की आजादी के बाद भी आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय मुख्यधारा से दूर खड़े हैं और संघर्ष कर रहे हैं. गांधी, नेहरू और आंबेडकर के सपनों का आंशिक रूप से भारतीय लोकतंत्र ने अपनी चमक और वादा बनाए रखा है. आर्थिक असमानता बढ़ी है, जहां कुछ के पास अत्यधिक संसाधन हैं और कई के हिस्से में पेट भरने का संघर्ष आया है.