जाली मुद्रा, आतंकवाद को वित्तपोषण और काला धन (Fake currency, terror financing and black money)तीन बुराइयां हैं जो जरासंघ (महाभारत का पात्र) की तरह हैं और इन्हें टुकड़ों में काटा जाना चाहिए. केंद्र सरकार ने यह बात सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में 2016 की नोटबंदी की कवायद को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कही. सरकार की ओर से पेश हुए अटॉनी जनरल आर वेंकटरमनी (R Venkataramani)ने जस्टिस एसए नजीर की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच के समक्ष पेश होते हुए कहा कि सरकार इस तीन बुराइयों को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
वेंकटरमनी ने कहा, "उन्होंने (याचिकाकर्ताओं) ने कहा है कि हमें नोटबंदी के पहले विस्तृत अध्ययन करना चाहिए था. एक दशक से अधिक समय से केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया तीन बुराइयों को देख रहे हैं.. ये जरासंघ की तरह हैं और आपको इसे टुकड़ों में काट देना चाहिए. यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो ये बुराइयां हमेशा जीवित रहेंगी. "
पिछले माह, वर्ष 2016 की नोटबंदी की कवायद के बारे में नये सिरे से विचार करने के सुप्रीम कोर्ट के प्रयास का विरोध करते हुए केंद्र सरकार ने कहा था कि शीर्ष अदालत ऐसे मामले में फैसला नहीं कर सकती है जब ''अतीत में लौटकर'' भी कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती. अटॉर्नी जनरल की यह टिप्पणी उस वक्त आई थी जब शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से यह बताने के लिए कहा कि क्या उसने 2016 में 500 रुपये और 1000 रुपये के मूल्यवर्ग के नोट को अमान्य करार देने से पहले भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के केंद्रीय बोर्ड से परामर्श किया था. उन्होंने कहा था, 'यह अच्छी तरह से स्थापित है कि अगर जांच की प्रासंगिकता गायब हो जाती है, तो अदालत शैक्षणिक मूल्यों के सवालों पर राय नहीं देगी.'' अटार्नी जनरल ने कहा था, 'नोटबंदी एक अलग आर्थिक नीति नहीं थी. यह एक जटिल मौद्रिक नीति थी. इस मामले में पूरी तरह से अलग-अलग विचार होंगे. आरबीआई की भूमिका विकसित हुई है. हमारा ध्यान यहां-वहां के कुछ काले धन या नकली मुद्रा पर (केवल) नहीं है. हम बड़ी तस्वीर देखने की कोशिश कर रहे हैं.''
ये भी पढ़ें-
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)