बजट 2023 में प्रावधान: जमानत का भुगतान करने में लाचार गरीबों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी सरकार

वित्‍तीय सहायता प्रदान करने का यह फैसला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पिछले साल नवंबर में संविधान दिवस समारोह में दिए गए भावनात्मक भाषण के बाद आया है जिसमें उन्होंने उन गरीब आदिवासियों की दुर्दशा के मुद्दे को उठाया था जो छोटे-मोटे अपराधों के लिए जेल में बंद हैं.

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नई दिल्‍ली:

जेलों में भीड़भाड़ कम करने के प्रयास और ऐसे गरीब कैदियों को राहत प्रदान करने के लिए, जो जुर्माना या जमानत राशि वहन करने में असमर्थ हैं, केंद्र सरकार ने 2023-24 के बजट में उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को संसद में केंद्रीय बजट 2023-24 पेश करते हुए कहा कि गरीब व्यक्ति जो जेल में हैं और जुर्माना या जमानत राशि वहन करने में असमर्थ हैं, उनके लिए आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी. वित्‍तीय सहायता प्रदान करने का यह फैसला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पिछले साल नवंबर में संविधान दिवस समारोह में दिए गए भावनात्मक भाषण के बाद आया है जिसमें उन्होंने उन गरीब आदिवासियों की दुर्दशा के मुद्दे को उठाया था जो छोटे-मोटे अपराधों के लिए जेल में बंद हैं.  उन्होंने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका से उन कैदियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था जो जुर्माना या ज़मानत राशि का भुगतान करने में असमर्थता के कारण जमानत पाने के बावजूद जेल में बंद हैं. राष्ट्रपति ने जेलों में गरीबों की दुर्दशा को रेखांकित करते हुए अधिक जेल स्थापित करने की आवश्यकता पर भी सवाल उठाया था. 

वित्तीय सहायता प्रदान करने का यह पहला कदम  नहीं है जो मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने कैदियों के लिए उठाया है. पीएम मोदी ने विभिन्न अवसरों पर कानूनी सहायता की प्रतीक्षा में जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की रिहाई में तेजी लाने की आवश्यकता पर जोर दिया है. पिछले साल जुलाई में पहली अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरण बैठक को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा था कि जेलों में कई विचाराधीन क़ैदी कानूनी सहायता का इंतज़ार कर रहे हैं. हमारे जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण विचाराधीन कैदियों को कानूनी सहायता प्रदान करने की जिम्मेदारी ले सकते हैं. 

कार्यपालिका के अलावा, यहां तक कि देश में न्यायपालिका में विश्वास को बहाल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट भी जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की जरूरत के प्रति संवेदनशील रहा है और उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में आपराधिक अपीलों की लंबी लंबितता के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला  शुरु किया है. इस स्वत: संज्ञान कार्रवाई के माध्यम से, अदालत उन दोषियों को जमानत देने के संबंध में दिशा-निर्देश तय करना चाहती है, जो अपनी आपराधिक अपीलों की सुनवाई में देरी के कारण लंबी सजा काट चुके हैं. हाल ही में, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने जेल अधिकारियों को ऐसे कैदियों का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जो राज्य सरकार की ज़मानत राशि की व्यवस्था करने में विफल रहने के कारण अभी भी जेल में बंद हैं, जो इसे आगे राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण को भेजेंगे. अदालत ने अधिकारियों से अंडरट्रायल कैदियों के नाम, उनके खिलाफ आरोप, जमानत आदेश की तारीख, जमानत की किन शर्तों को पूरा नहीं किया और जमानत आदेश के बाद जेल में कितना समय बिताया है, जैसे विवरण प्रस्तुत करने को कहा था. 

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