आर्टिकल 370 निरस्त करने पर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में नई संविधान पीठ का गठन

370 निरस्त करने पर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में नई संविधान पीठ का गठन किया गया है. CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच तीन मामलों पर सुनवाई करेगी. ये सुनवाई 20 सितंबर से होगी.

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

जम्मू- कश्मीर में 370 निरस्त करने पर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में नई संविधान पीठ का गठन किया गया है. CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच तीन मामलों पर सुनवाई करेगी. ये सुनवाई 20 सितंबर से होगी. पहला मामला असम पब्लिक वर्क्स बनाम भारत सरकार का है जिसमें 1955 के नागरिकता कानून की धारा 6A को लेकर विवाद है. ये प्रावधान अवैध रूप से आकर असम में बस गए विदेशी लोगों से संबंधित है.

इस प्रावधान को NRC से जोड़ कर देखा जा रहा है. एक और मामला 20 साल पुराना लोकसभा में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण से संबंधित है. 2003 में ये मामला संविधान पीठ के समक्ष ले जाने की सिफारिश को गई थी. अशोक जैन की इस अर्जी में इस आरक्षण की समय सीमा अब तक बढ़ाने को चुनौती दी गई है क्योंकि शुरुआत में इसे दस वर्षों के लिए ही लागू की गया था.

याचिका में इसे संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता के अधिकार के खिलाफ बताया गया है. एससी/एसटी और एंग्लो इंडियन के लिए आरक्षण दस साल की बजाय 60 साल से चल रहा है. संविधान के 79 बदलाव से क्या समानता के अधिकार का हनन हुआ है? पीठ के सामने ये सवाल है. तीसरा मामला सीता सोरेन बनाम भारत संघ है. ये जनप्रतिनिधि की रिश्वतखोरी से संबंधित है. इस मामले के तार भी नरसिंहराव केस से जुड़े हैं जहां सांसदों ने वोट के बदले नोट थे.

ये मसला अनुच्छेद 194 के प्रावधान 2 से जुड़ा है जहां जन प्रतिनिधि को उनके सदन में डाले वोट के लिए मुकदमे में घसीटा नहीं जा सकता. उन्हें छूट है, इस मामले में याचिकाकर्ता सीता सोरेन झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भाभी हैं और उस समय हुए वोट के लिए नोट लेने की आरोपी भी है. सीता के खिलाफ सीबीआई जांच कराने की गुहार लगाते हुए 2012 में चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई गई थी.

सीता सोरेन को जन सेवक के तौर पर गलत काम करने के साथ आपराधिक साजिश रच कर पद की गरिमा घटाने वाला काम करने का आरोपी बनाया गया था. झारखंड हाईकोर्ट ने 2014 में केस को रद्द कर दिया था. तब हाईकोर्ट ने कहा कि सीता ने उस पाले में वोट नहीं किया था जिसके बारे में घूस की बात कही जा रही है.

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