Explainer : भारत में हर साल 89,000 करोड़ का खाना बर्बाद, रोक नहीं लगी तो क्या होंगे नतीजे?

दुनिया में खाद्यान्न की सबसे ज़्यादा बर्बादी यानी क़रीब 17% खुदरा बिक्री या घरों, होटलों जैसी जगहों पर होती है. 14% खाद्यान्न बर्बादी खेत से लेकर खुदरा बिक्री के बीच होती है और 8% बर्बादी खेतों में ही हो जाती है.

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नई दिल्ली:

बीजेपी के राज्यसभा सांसद पबित्र मार्गरेटा ने मंगलवार को सदन में खाने की बर्बादी का मुद्दा उठाया. उन्होंने इसके लिए UNEP यानी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की 2023 की एक रिपोर्ट का हवाले दिया. फूड वेस्ट इंडेक्स (Food Waste Index) नाम से UNEP की इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में GDP के 1% के बराबर भोजन हर साल बर्बाद हो जाता है.

हमारे देश के घरों में हर साल 6 करोड़ 87 लाख टन खाना बेकार होता है. अगर इसकी क़ीमत रुपयों में लगाई जाए तो देश में हर साल 89,000 करोड़ रुपये का खाना बर्बाद होता है. प्रति व्यक्ति भोजन की बर्बादी (Per Capita Food Wastage) देखें तो लगभग 50 किलो खाना प्रति व्यक्ति हर साल बेकार जाता है. खाने की बर्बादी में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है. 

80 करोड़ की आबादी को मुफ़्त राशन देने की पड़ रही जरूरत
ये हाल तब है, जब भारत में सरकार का दावा है कि वो अस्सी करोड़ की आबादी को मुफ़्त राशन बांट रही है. इसका मतलब ये है कि हालात ऐसे हैं कि इतनी बड़ी तादाद में लोगों को खाद्यान्न देने की ज़रूरत पड़ रही है. ऐसे में खाने की ये बर्बादी किसी आपराधिक काम से कम नहीं है.

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एक ओर खाने की बर्बादी का ये आंकड़ा है तो दूसरी ओर एक और आंकड़ा है जो दुनिया के देशों में भूख की समस्या और उसमें भारत की स्थिति को बताता है. दुनिया के देशों में भूख की समस्या के आंकलन के लिए हर साल ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी किया जाता है. 2023 के लिए जारी इस आंकड़े में भारत का स्थान दुनिया के 125 देशों में 111वां था, जबकि पिछले साल भारत 107वें स्थान पर था. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में भूख का ये स्तर गंभीर है.

हालांकि इस आंकड़े से भारत सरकार इत्तेफ़ाक नहीं रखती और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी इससे ऐतराज़ भी जता चुकी हैं. ऐसे में अगर हम एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट को मान रहे हैं तो उसी संदर्भ में दूसरी रिपोर्ट को भी देखा जाना चाहिए, क्योंकि मुद्दा बहुत अहम है. अगर खाने की बर्बादी न हो तो हो सकता है कि भूख का सामना कर रहे कई लोगों के सामने ये समस्या ना आए. लेकिन खाने की ये बर्बादी कौन कर रहा है. इसमें कहीं न कहीं हम सभी का हाथ है जो अपनी प्लेट में अपने पेट की भूख से ज़्यादा खाना लेते हैं और फिर उसे अधूरा छोड़ कूड़े में डाल देते हैं. ये उस देश में है जिसकी परंपरा अन्न के एक-एक दाने को बचाने पर ज़ोर देती है.

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खाने की बर्बादी भी क्लाइमेट चेंज की एक बड़ी वजह
एक ऐसे वक़्त जब क्लाइमेट चेंज दुनिया के सामने सबसे बड़ा मुद्दा है, तो ये जानना ज़रूरी है कि खाने की बर्बादी भी इस क्लाइमेट चेंज की एक बड़ी वजह है. खाने के सामान की बर्बादी को कार्बन फुटप्रिंट के तौर पर देखें तो दुनिया में खाद्य बर्बादी हर साल 3.3 करोड़ टन कार्बन फुटप्रिंट के बराबर है, जो क्लाइमेट चेंज की एक बड़ी वजह है.

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संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया के तमाम देशों के लिए तय सतत विकास लक्ष्यों में जिन 12 विशेष मुद्दों पर ज़ोर दिया है, उनमें से एक ज़िम्मेदार उपभोग और उत्पादन भी शामिल है. इसका मक़सद है 2030 तक दुनिया में प्रति व्यक्ति खाद्य बर्बादी को आधा करना.

संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून ने 2012 में इसी दिशा में 'The Zero Hunger Challenge' लॉन्च किया था, जिसका मकसद था कि खाद्य असुरक्षा और कुपोषण को ख़त्म किया जाए और खाद्य व्यवस्था को टिकाऊ बनाया जाए, लेकिन लगता है कि उस सबका कोई ख़ास असर नहीं है. अगर मौजूदा चलन जारी रहा तो 2030 तक दुनिया में भुखमरी से प्रभावित लोगों की तादाद 84 करोड़ के पार हो जाएगी.

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कम से कम करनी होगी खाद्य वस्तुओं की बर्बादी
इसका मुक़ाबला करने के लिए कई मोर्चों पर काम करना होगा. जैसे उत्पादन, भंडारण, परिवहन और उपभोग के दौरान खाद्य वस्तुओं की बर्बादी कम से कम करनी होगी. क्योंकि दुनिया में खाद्यान्न की सबसे ज़्यादा बर्बादी यानी क़रीब 17% खुदरा बिक्री या घरों, होटलों जैसी जगहों पर होती है. 14% खाद्यान्न बर्बादी खेत से लेकर खुदरा बिक्री के बीच होती है और 8% बर्बादी खेतों में ही हो जाती है. ऐसे में दुनिया के सामने तमाम संकटों में से एक संकट ये भी है.

इन दिनों शादियों का मौसम है और शादी समारोहों में भी खाने की बहुत बर्बादी होती है. इस बार अगर आप एक कोशिश कर सकें तो वो ये कि शादी समारोहों में अन्न को बर्बाद नहीं होने दें.