पूर्वोत्तर राज्यों में परिसीमन मामला: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 3 महीने में मांगी जानकारी

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 8ए अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर या नागालैंड राज्यों में संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन का प्रावधान करती है.

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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने परिसीमन के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देने के लिए केंद्र सरकार को 3 महीने का समय दिया है. 2020 के राष्ट्रपति के आदेश ने उनके परिसीमन को स्थगित करने के फैसले को रद्द कर दिया था.

भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ, भारत के चार पूर्वोत्तर राज्यों  मणिपुर, असम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में परिसीमन की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

इससे पहले, कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूर्वोत्तर राज्यों में परिसीमन की कवायद को अंजाम देने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में पूछा था. 

दरअसल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 8ए अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर या नागालैंड राज्यों में संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन का प्रावधान करती है.

इसमें कहा गया है कि यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो कि उपर्युक्त राज्यों में विद्यमान परिस्थितियां परिसीमन कार्य के लिए अनुकूल हैं, तो राष्ट्रपति उस राज्य के संबंध में परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा 10ए के प्रावधानों के तहत जारी स्थगन आदेश को रद्द कर सकते हैं और चुनाव आयोग द्वारा राज्य में परिसीमन कार्य के संचालन का प्रावधान कर सकते हैं. ऐसे स्थगन आदेश के बाद, चुनाव आयोग राज्य में परिसीमन कर सकता है.
 

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