सुप्रीम कोर्ट ने विचाराधीन कैदियों को जमानत का आदेश अदालत से पारित होने के बावजूद उनकी रिहाई में देरी पर गंभीर चिंता जताई है. सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ (SC Judge DY Chandrachud) ने टिप्पणी की है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने जेल अधिकारियों को जमानत के आदेश पहुंचाने में देरी होने को 'बहुत गंभीर कमी' करार दिया है और कहा है कि इसे 'युद्धस्तर' पर दूर करने की जरूरत है, क्योंकि यह हर विचाराधीन कैदी की 'मानव स्वतंत्रता' को छूता है.अभिनेता शाहरुख खान (Shahrukh Khan) के बेटे आर्यन खान (Aryan Khan) को ड्रग्स केस (Drugs Case) में बेल मिलने के बावजूद एक अतिरिक्त दिन जेल में बिताना पड़ा,
जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह बातें इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से वादकारियों को ऑनलाइन कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए वर्चुअल कोर्ट और ई-सेवा केंद्रों का उद्घाटन करने के लिए आयोजित एक ऑनलाइन कार्यक्रम में कहीं.
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उन्होंने कहा: "आपराधिक न्याय प्रणाली में जमानत आदेशों के संचार में देरी एक बहुत ही गंभीर कमी है, जिसे हमें युद्ध स्तर पर संबोधित करने की जरूरत है. यह हर विचाराधीन, या ऐसे दोषियों, जिन्हें सजा से निलंबन मिल गया हो, उनकी मानव स्वतंत्रता को छूता है."बता दें कि हाल ही आर्यन खान को क्रूज पर ड्रग मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बावजूद मुंबई के आर्थर रोड जेल में एक अतिरिक्त दिन बिताना पड़ा था.
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इससे पहले चीफ जस्टिस एनवी रमना के नेतृत्व वाली पीठ ने भी जमानत आदेशों के कार्यान्वयन में देरी पर कड़ी नाराजगी जताई थी और कहा था कि वह आदेशों के संचारण के लिए एक "सुरक्षित, विश्वसनीय और प्रामाणिक चैनल" स्थापित करेगी. पीठ ने कहा था, डिजिटल युग में भी हम अभी भी "आदेशों का संचार करने के लिए आसमान में कबूतरों की ओर देख रहे हें-"
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेशों के संचार और अनुपालन में तेजी लाने के लिए फास्ट एंड सिक्योर ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स (फास्ट)नाम की परियोजना को लागू करने का आदेश दिया था. साथ ही सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से हर जेल में पर्याप्त गति के साथ इंटरनेट सुविधा सुनिश्चित करने के लिए भी कहा था.
इवेंट में बोलते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने उड़ीसा उच्च न्यायालय की एक पहल का उल्लेख किया, जिसमें प्रत्येक विचाराधीन कैदी और कारावास की सजा भुगत रहे दोषियों को ई-कस्टडी प्रमाण पत्र देने का प्रावधान है. उन्होंने बताया: "यह प्रमाण पत्र हमें उस विशेष विचाराधीन या दोषी के संबंध में सभी अपेक्षित डेटा देगा जिसमें प्रारंभिक रिमांड से लेकर प्रत्येक मामले की बाद की प्रगति तक का ब्योरा होगा. इससे हमें जमानत मिलते ही इसकी सूचना जेल अधिकारियों तक पहुंचाने और इसे तुरंत लागू करने में भी मदद मिलेगी.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने वर्चुअल कोर्ट के महत्व का भी जिक्र किया और बताया कि ट्रैफिक चालानों पर फैसला देने के लिए उन्हें 12 राज्यों में वर्चुअल कोर्ट स्थापित किए गए हैं. उन्होंने बताया: "देशभर में 99.43 लाख केसिस का निप्टारा किया गया है जिनमें से 18.35 लाख केस में चालान वसूला गया है. कुल 119 करोड़ से ज्यादा जुर्माना वसूला गया है. वहीं 98000 उल्लंघनकर्ताओं ने केस लड़ने का फैसला किया है."
उन्होंने यह भी कहा:"अब आप कल्पना कर सकते हैं कि एक आम नागरिक जिसे ट्रैफिक चालान चुकाना है, वह अपने सारे काम काज छोड़ कर पूरा दिन कोर्ट में चालान चुकाने के लिए बर्बाद करे यह तो सही नहीं है."
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि देशभर की जिला अदालतों में 2.95 करोड़ आपराधिक मामले लंबित हैं और 77 फीसदी से ज्यादा मामले एक साल से ज्यादा पुराने हैं. "कई आपराधिक मामले लंबित हैं क्योंकि आरोपी वर्षों से फरार रहते हैं. उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में सत्र अदालत का सबसे पुराना मामला 1976 का है, जहां आरोपी फरार है."
उन्होंने कहा, आपराधिक मामलों के निपटारे में देरी का प्रमुख कारण है आरोपी का फरार रहना, खासकर जमानत दिए जाने के बाद, और दूसरा कारण है आपराधिक मुकदमे के दौरान सरकारी गवाहों का गवाही देने के लिए उपस्थिति न होना.
"हम यहां भी सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकते हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, हम फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी में इसी पर काम कर रहे हैं.
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