Decoding G-20: भारत 25 साल में कैसे बनेगा विकसित देश? विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया एक्शन प्लान

#DecodingG20WithNDTV के तहत एनडीटीवी के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर और एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया ने विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर (Dr S Jaishankar) से एक्सक्लूसिव बातचीत की. इस दौरान जयशंकर ने बताया कि भारत पड़ोसी देशों के बीच अपनी मिसाल बना रहा है. हम ग्लोबल साउथ की आवाज हैं.

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नई दिल्ली:

भारत की अध्यक्षता में 9 और 10 सितंबर के दिल्ली में जी-20 समिट (G-20 Summit in India) होने जा रहा है. इस समिट को लेकर स्पेशल सीरीज #DecodingG20WithNDTV के तहत NDTV के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर और एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया ने विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर (Dr S Jaishankar) से एक्सक्लूसिव बातचीत की. मंगलवार को हुए इस इंटरव्यू में विदेश मंत्री ने जहां पाकिस्तान और चीन को कड़ा संदेश दिया. वहीं, भारत को ग्लोबल साउथ (Global South) की आवाज भी करार दिया. इंटरव्यू में विदेश मंत्री ने अगले 25 साल के लिए भारत के एक्शन प्लान को भी समझाने में मदद की. 

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हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने कहा था, "ये मोदी की गारंटी है कि NDA के तीसरे कार्यकाल के दौरान भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा. हम अगले 25 वर्षों में भारत को विकसित देश बनाने का लक्ष्य हासिल कर लेंगे." NDTV से खास बातचीत में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया कि अगले 25 साल के अंदर विकसित देश बनने का लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत का एक्शन प्लान क्या होगा?

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पड़ोस नीति (Neighborhood Policy)
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया कि मौजूदा समय में दो डिवाइड (विभाजन) हैं. ईस्ट-वेस्ट डिवाइड, नॉर्थ-साउथ डिवाइड. दोनों डिवाइड के खिलाफ कौन से देश हैं, ये समझना जरूरी है. सवाल ये है कि कौन सा देश है, जो दो डिवाइड के बीच एक मिडिल ग्राउंड पर खड़ा है. इसका जवाब है भारत. भारत आज ग्लोबल साउथ की आवाज है. भारत पड़ोसी देशों के बीच अपनी मिसाल बना रहा है. ग्लोबल साउथ विकास का अक्स है, इनकम का अक्स है. ग्लोबल साउथ एकता का अहसास भी कराता है. ग्लोबल साउथ एक फीलिंग हैं. ये प्रदर्शन का आइना भी है. ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनना बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है, हमने यह नाम खुद नहीं दिया है. लेकिन हम इसका पालन पूरी जिम्मेदारी के साथ कर रहे हैं.

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विकास की चार दिशाएं (Four Direction)
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया #DecodingG20WithNDTV के तहत खास इंटरव्यू में बताया कि भारत कैसे चार दिशाओं के जरिए अपने लक्ष्य 'विकसित भारत' को हासिल कर सकता है. उन्होंने बताया कि डिप्लोमेसी, फूड सिक्योरिटी, क्लाइमेट एक्शन, 

विदेश मंत्री ने कहा, "जब आप कूटनीति यानी डिप्लोमेसी की बात करते हैं, तो वो आम आदमी को समझ नहीं आता. हमारी कोशिश है कि जी-20 में जो भी मुद्दे उठाए जाएंगे, जो बातचीत होगी... ये सामान्य नागरिक को समझना चाहिए. पीएम मोदी का शुरू से कहना था कि इस जी-20 को आप कॉन्फ्रेंस हॉल में न रखिए, बल्कि पूरे देश में इसे ले जाइए. जो मुद्दे हैं, वो सबको समझना चाहिए."

एस जयशंकर ने कहा, "फूड सिक्योरिटी को सुनिश्चित करना विकसित देश बनने की दूसरी दिशा है. खाद्य संकट का हल श्रीअन्न (मोटे अनाज) से ही निकाल सकता है. जब गेहूं की सप्लाई की अनिश्चितता हुई, तुरंत मार्केट प्राइस बढ़ गए. इसलिए हम श्रीअन्न का उत्पादन बढ़ाने की मांग कर रहे हैं."

विदेश मंत्री ने कहा, "तीसरी दिशा क्लाइमेट एक्शन है. मैं मानता हूं कि कुछ देश क्लाइमेट चेंज पर तो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन जब एक्शन की बात आती है, तो ये कुछ नहीं करते. हमें क्लाइमेट एक्शन पर भी काम करना होगा. भारत को क्लाइमेट पर अपने एक्शन से दुनिया के सामने उदाहरण पेश करना होगा." उन्होंने कहा, "आज क्लाइमेट इमरजेंसी और क्लाइमेट डिजास्टर बड़ी चुनौती हैं. ये दोनों देश की अर्थव्यवस्था में बड़ी बाधा है. लिहाजा इसपर काम करना होगा." 

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चौथी दिशा के बारे में बताते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, "डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर से हमें आगे का रास्ता मिलेगा. डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर किसी को व्यवसाय को संचालित करने, उसे बढ़ाने, इनोवेशन और मांग का जवाब देने में सक्षम बनाता है. बुनियादी स्तर पर, यह वह मंच है जो उन्हें ग्राहकों और बाहरी दुनिया से जोड़ता है. हमें इस दिशा में और काम करने की जरूरत है."

प्रमुख देशों को साथ लेकर चलना (Engage Major Power)
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, "भारत की G20 की अध्यक्षता अद्वितीय रही है. G20 अपने आप में अद्वितीय है और भारत की अध्यक्षता विशेष है, क्योंकि सदी में एक बार आने वाली महामारी और चल रहे संघर्ष के कारण आज दुनिया कहीं अधिक जटिल हुई है. ऐसी स्थिति में कौन आगे बढ़कर बीच का रास्ता खोज सकता है? ऐसी स्थिति में किसी देश को तटस्थ नहीं बने रहना चाहिए. उसे दुनिया के सामने अपनी बात रखनी चाहिए. भारत ऐसा ही देश है."

उन्होंने आगे बताया, "ग्लोबल साउथ जानते हैं कि वे ग्लोबल साउथ हैं. लेकिन क्या आप ऐसा व्यवहार करते हैं? ग्लोबल साउथ वे हैं जो अपने सीमित संसाधनों के बावजूद दूसरे देशों के लिए काम करेंगे, क्योंकि हमें लगता है कि हम सभी एक परिवार का हिस्सा हैं और उनकी समस्या हमारी समस्या है. भारत इसी सोच के साथ दूसरे देशों को साथ लेकर चलने पर काम कर रहा है."


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