​सुप्रीम कोर्ट में एक और संविधान पीठ का गठन, जस्टिस एस अब्दुल नजीर करेंगे पीठ की अगुआई

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अगुआई में एक संविधान पीठ का गठन किया गया है. इस संविधान पीठ के सामने भी पांच अहम मुद्दे विचारार्थ होंगे, जिसमें पहला मामला नोटबंदी के आदेश को चुनौती देने का है.

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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के लिए आज का दिन ऐतिहासिक रहा है. एक ओर अब आम लोग भी सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई देख सकेंगे. संवैधानिक मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग होगी, तो वहीं दूसरी ओर SC में एक और संविधान पीठ का गठन किया गया है.चीफ जस्टिस यूयू ललित ने एक और संविधान पीठ का गठन किया है, जिसकी अगुआई जस्टिस एस अब्दुल नजीर करेंगे.

संविधान पीठ में अन्य जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामा सुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना शामिल होंगे. इस संविधान पीठ के सामने भी पांच अहम मुद्दे विचारार्थ होंगे, जिसमें पहला मामला नोटबंदी के आदेश को चुनौती देने का है. यह याचिका 2016 में ही दाखिल हुई थी. उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में सरकार ने तब प्रचलित पांच सौ और हजार रुपए के नोच का चलन बंद कर दिया था. उस विवेक नारायण शर्मा ने याचिका दाखिल कर सरकार के इस कदम को चुनौती दी थी. इस याचिका के बाद 57 और याचिकाएं दाखिल की गई थीं. अब  सब पर एकसाथ सुनवाई होगी.

इस संविधान पीठ के सामने दूसरा मसला अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार पर रोक लगाने के सरकार के अधिकार को लेकर है. ये याचिका भी 2016 में ही कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के नाम से दाखिल की गई थी.

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तीसरा मामला जो ये संविधान पीठ सुनेगा वो है संविधान के अनुच्छेद 105/194(2) की व्याख्या से संबंधित है. मसला ये है कि क्या कोई सांसद विधायक रिश्वतखोरी या रिश्वत देने की पेशकश या फिर भ्रष्टाचार के आरोप में किसी  मुकदमे का सामना कर रहा हो ऐसी हालत में वो सदन में हो रहे मतदान में हिस्सा ले सकता है क्या? क्या ये भी उनके विशेषाधिकार में शामिल है? सीता सोरेन बनाम भारत सरकार नामक ये मुकदमा 2019 में दर्ज कराया गया था.

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चौथा मामला सीआरपीसी की धारा 319 से जुड़ा है. सुखपाल सिंह खैरा बनाम पंजाब सरकार नामक ये मुकदमा भी 2019 में सुप्रीम कोर्ट आया था. दो और याचिकाएं इसके साथ साथ हैं. मुद्दा ये है कि क्या ऐसे व्यक्ति पर भी कोर्ट ट्रायल चला सकता है जो पहले आरोपी नहीं बनाया गया है.पांचवां मामला भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम से जुड़ा है. नीरज दत्ता बनाम भारत सरकार नामक ये क्रिमिनल पेटिशन है ये मसला 2009 में आया था.

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