चारधाम परियोजना (Char Dham project) के लिए सड़क की चौड़ाई बढ़ाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने कहा कि राष्ट्र की सुरक्षा प्राथमिकता है और सुरक्षा को अपग्रेड करने की जरूरत है. विशेष रूप से हाल के दिनों में सीमा की घटनाओं को देखते हुए रक्षा से जुड़ी चिंताओं को छोड़ा नहीं जा सकता. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम नहीं चाहते कि भारतीय सैनिक 1962 के हालात में हों, लेकिन रक्षा और पर्यावरण दोनों की जरूरतें संतुलित होनी चाहिए. वहीं केंद्र ने सड़क चौड़ी करने की मांग करते हुए कहा कि चीन द्वारा दूसरी तरफ जबरदस्त निर्माण किया गया है. चीन दूसरी तरफ हेलीपैड और इमारतें बना रहा है. टैंक, रॉकेट लांचर और तोप ले जाने वाले ट्रकों को इन सड़कों से गुजरना पड़ सकता है, इसलिए रक्षा की दृष्टि से सड़क की चौड़ाई दस मीटर की जानी चाहिए.
याचिकाकर्ता NGO की ओर से कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि सेना ने कभी नहीं कहा कि हम सड़कों को चौड़ा करना चाहते हैं. राजनीतिक सत्ता में कोई उच्च व्यक्ति चार धाम यात्रा पर राजमार्ग चाहता था. सेना तब एक अनिच्छुक भागीदार बन गई. इस साल बड़े पैमाने पर भूस्खलन ने पहाड़ों में नुकसान को बढ़ा दिया है. मामले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ ने की.
सुनवाई में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि रक्षा (मंत्रालय) इसमें रुचि रखता है क्योंकि चीन के साथ उत्तरी सीमा पर समस्या का सामना करने के कारण सड़कों को चौड़ा करना आवश्यक है. इस पर कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा, 'मैं यह नहीं कहने जा रहा हूं कि पर्यावरण की जरूरतें राष्ट्र की रक्षा को प्रभावित करती हैं. लगभग 17 जल विद्युत परियोजनाएं हिमालय में बंपर से बंपर बनी और अब हम एक मुद्दे का सामना कर रहे हैं.2013 में एक बादल फटा था, इस तरह की परियोजनाओं के कारण नुकसान हुआ था. कोर्ट ने इस पर संज्ञान लिया.अदालत ने 24 परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी.
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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि लद्दाख के सबसे दुर्गम क्षेत्रों में सबसे बड़े मठ हैं. उस तक जाने वाली सड़कों का इस्तेमाल आम नागरिक और सेना दोनों करते हैं. हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि इतनी ऊंचाई पर राष्ट्र की सुरक्षा दांव पर है. क्या सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय कह सकता है कि हम रक्षा आवश्यकताओं को विशेष रूप से हाल की घटनाओं के सामने ओवरराइड करेंगे? विशेष रूप से पर्यावरण संबंधी चिंताओं के लिए या अदालत को और अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण रखना चाहिए? हम ग्लेशियर के पिघलने के पहलू को महसूस करते हैं लेकिन यह अन्य बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं के कारण भी हो रहा है, क्या हम कह सकते हैं कि देश की रक्षा पर पर्यावरण की जीत होगी? या हम कहें कि रक्षा संबंधी चिंताओं का ध्यान रखा जाए ताकि पर्यावरण का नुकसान न हो. उन्होंने कहा कि अगर केंद्र कहता है कि वे इसे पर्यटन के लिए कर रहे हैं तो हम समझते हैं. हम और कड़ी शर्तें लगा सकते हैं लेकिन जब सीमाओं की रक्षा करने की जरूरत है तो यह एक गंभीर स्थिति हैऔर अदालत को और अधिक सूक्ष्म होना चाहिए .
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जस्टिस सूर्यकांत ने कॉलिन गोंजाल्विस से पूछा कि क्या उनके पास सीमा के दूसरी ओर हिमालय की स्थिति पर कोई रिपोर्ट है जहां चीनियों ने कथित तौर पर इमारतों और प्रतिष्ठानों का निर्माण किया है.गोंसाल्वेस ने कहा कि चीनी सरकार पर्यावरण की रक्षा के लिए नहीं जानी जाती है.हम कोशिश करेंगे और देखेंगे कि क्या हमें वहां की स्थिति पर कोई रिपोर्ट मिल सकती है . सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी . गौरतलब है कि पिछले साल चारधाम परियोजना के लिए सड़क की चौड़ाई बढ़ाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाई पावर्ड कमेटी से कहा था कि वह रक्षा मंत्रालय और सड़क परिवहन मंत्रालय की अर्जी पर दो हफ्ते में नए सिरे से विचार करे, जिसमें सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़क के चौड़ीकरण और चार धाम सड़क परियोजना को मूल रूप से निर्दिष्ट चौड़ाई के साथ पूरा करने की इजाजत मांगी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कमेटी इस संबंध में SC में रिपोर्ट दाखिल करे .केंद्र ने इस मामले में पहले दायर अपने हलफनामे में शीर्ष अदालत से उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) के 21 सदस्यों की बहुमत रिपोर्ट को स्वीकार करने का आग्रह किया था, जिसमें रणनीतिक आवश्यकता और बर्फ हटाने की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सड़क को ठोस आधार के साथ ‘टू-लेन' विकसित करने की सिफारिश की गई थी. इससे पहले सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा था कि वो चारधाम राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के 2018 के नोटिफिकेशन का पालन करे. 2018 के नोटिफिकेशन के अनुसार पहाड़ी इलाकों में 5.5 मीटर टैरर्ड सतह के बीच में कैरज-वे को अपनाया जाएगा लेकिन केंद्र ने इसे 7 मीटर करने के लिए SC की अनुमति मांगी थी क्योंकि ये इलाका चीन की सीमा पर सटा था.अदालत ने यह कहते हुए मना कर दिया कि सरकार अपने स्वयं के सर्कुलर का उल्लंघन नहीं कर सकती.सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चारधाम निर्माण के कारण वन क्षेत्र के नुकसान की भरपाई के लिए वृक्षारोपण करने के भी निर्देश दिया है.
बता दें कि चारधाम परियोजना का उद्देश्य सभी मौसम में पहाड़ी राज्य के चार पवित्र स्थलों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ना है.इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद हर मौसम में चार धाम की यात्रा की जा सकेगी. इस परियोजना के तहत 900 किलोमीटर लम्बी सड़क परियोजना का निर्माण हो रहा है. अभी तक 400 किमी सड़क का चौड़ीकरण किया जा चुका है. एक अनुमान के मुताबिक, अभी तक 25 हजार पेड़ों की कटाई हो चुकी है जिससे पर्यावरणविद नाराज हैं. गैर सरकारी संगठन 'Citizens for Green Doon' ने एनजीटी के 26 सितंबर 2018 के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. एनजीटी ने व्यापक जनहित को देखते हुए इस परियोजना को मंजूरी दी थी. एनजीओ का दावा था कि इस परियोजना से इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो सकेगी.