राष्‍ट्रीय एकता और सुरक्षा मामलों में CBI को नहीं होगी राज्‍यों की अनुमति की जरूरत, केंद्र ला रहा नया कानून

केंद्र सरकार जो नया क़ानून बनाने जा रही है, उसके बाद राज्य सरकारों के पास शायद सीबीआई को रोकने की शक्ति न रहे. 

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संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कुछ ऐसी सिफारिशें की हैं, जिन पर विवाद हो सकता है. (फाइल)
नई दिल्‍ली :

केंद्र सरकार की चली तो सीबीआई को राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा से जुड़े मामलों में जांच के लिए राज्यों की अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. कार्मिक और न्याय मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति ने सरकार से इस मामले में एक अलग कानून बनाने की सिफारिश की है. समिति ने सीबीआई में सीधे नियुक्ति करने की भी सिफ़ारिश की है . 

राजस्थान में सरकार चलाते हुए कभी अशोक गहलोत ने बाक़ायदा क़ानून पास कर राज्य में सीबीआई की एंट्री रोक दी थी. ममता बनर्जी ने भी सारदा पोंजी स्कैम सहित कई मामलों में सीबीआई को जांच की इजाज़त नहीं दी थी. हालांकि केंद्र सरकार जो नया क़ानून बनाने जा रही है, उसके बाद राज्य सरकारों के पास शायद सीबीआई को रोकने की शक्ति न रहे. 
संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कुछ ऐसी सिफारिशें की हैं, जिन पर विवाद हो सकता है. 

कार्मिक और न्याय मंत्रालय से जुड़ी समिति की सिफारिश:

  • राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा से जुड़े मामलों में जांच के लिए सीबीआई को राज्यों की अनुमति लेना आवश्यक नहीं होना चाहिए. 

  • सीबीआई को ये अधिकार देने के लिए केंद्र को एक नया क़ानून बनाना चाहिए या वर्तमान क़ानून में बदलाव करना चाहिए

इन राज्‍यों में लेनी पड़ती है हर बार अनुमति 

सीबीआई को किसी राज्य में जांच करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति की ज़रूरत होती है. ज़्यादातर राज्यों ने सीबीआई को इसकी सामान्य इजाज़त दे रखी है और उन राज्यों में हर मामले में राज्य की अनुमति की ज़रूरत नहीं होती है. 

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हालांकि आठ राज्‍यों ने सीबीआई को सामान्य अनुमति का आदेश वापस ले रखा है. इनमें बंगाल , कर्नाटक , मिजोरम, मेघालय , केरल , झारखंड , तेलंगाना और तमिलनाडु शामिल हैं.  इन राज्यों में जांच करने के लिए सीबीआई को हर बार अनुमति लेनी पड़ती है. 

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ज्‍यादातर विपक्षी पार्टियां सिफारिश के विरोध में 

इसी को देखते हुए समिति ने अपनी सिफ़ारिश दी है, लेकिन ज़्यादातर विपक्षी पार्टियां इस सिफ़ारिश के विरोध में हैं. इनमें ममता बनर्जी की टीएमसी भी शामिल है.  

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समिति ने एक अन्य अहम सिफ़ारिश में ये भी कहा: 

  • सीबीआई का अपना कैडर होना चाहिए
  • सीबीआई में सीधे नियुक्ति होनी चाहिए
  • अभी ज़्यादातर अधिकारी राज्यों की पुलिस से प्रतिनियुक्ति पर आते हैं 
  • इसके चलते एजेंसी में कर्मचारियों और अधिकारियों की कमी की समस्या रहती है
  • साइबर अपराध , फोरेंसिक और आर्थिक फ्रॉड जैसे मामलों में लैटरल एंट्री का विकल्प भी हो सकता है
  • कार्मिक मंत्रालय की 2022-23 की रिपोर्ट के मुताबिक़, सीबीआई में कार्यबल की 23 फ़ीसदी (1613 सीबीआई कर्मियों) की कमी थी. 
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