CBI ने मेडिकल छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने के एक कठिन मामले को कोर्ट में किया साबित

पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी के खिलाफ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने और लगातार उत्पीड़न के सबूत होने चाहिए.

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नई दिल्ली:

केंद्रीय जांच ब्यूरो ने 'आत्महत्या के लिए उकसाने' के एक मामले में कोर्ट में दोष सिद्ध कर दिया. जिसे व्यापक रूप से साबित करना सबसे कठिन मामलों में से एक माना जाता है. 2012 में एमबीबीएस छात्रा प्रियदर्शनी की आत्महत्या मामले में पुदुचेरी की एक अदालत ने प्रदीप नाम के एक व्यक्ति को पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई.

सीबीआई ने तर्क दिया कि प्रदीप ने आंध्र प्रदेश के तिरूपति जिले की रहने वाली प्रियदर्शिनी से संबंध तोड़ लिया और उसके चरित्र पर आरोप लगाते हुए एक मैसेज भेजे. एजेंसी ने कहा कि उन्हीं संदेशों की वजह से युवती ने आत्महत्या कर ली. इन मैसेजों को चेन्नई के फोरेंसिक वैज्ञानिकों की एक टीम ने बरामद किया था.

मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई ने अप्रैल 2015 में पुडुचेरी के थिरुबुवनई पुलिस स्टेशन में दर्ज एक शिकायत को अपने हाथों में लिया था. आरोप पत्र नवंबर 2017 में दाखिल किया गया था.

शिकायत प्रियदर्शिनी के पिता द्वारा दर्ज कराई गई थी. बताया गया था कि युवती एक मेडिकल कॉलेज में चौथे वर्ष की छात्रा थी और प्रदीप नाम के युवक के साथ रिश्ते में थी. पिता ने दावा किया कि प्रदीप ने बाद में उससे दूरी बनानी शुरू कर दी और इससे उनके बीच मतभेद पैदा हो गए. प्रदीप द्वारा भेजे गए मैसेजों के कारण मई 2012 में उनकी बेटी ने आत्महत्या कर ली. प्रियदर्शिनी का शव उसके हॉस्टल के कमरे में पंखे से लटका मिला

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, ऐसे मामलों में सजा की दर 20 फीसदी से भी कम है. 'आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले' में दोषी साबित करने के लिए, अभियोजन पक्ष को किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए मजबूर करने के आरोपी के इरादे को साबित करना होता है. ये इरादा, या मनःस्थिति, संदेह से परे साबित होनी चाहिए.

पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी के खिलाफ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने और लगातार उत्पीड़न के सबूत होने चाहिए. अदालत ने चेन्नई के एक डॉक्टर और उसकी मां को बरी करते हुए ये टिप्पणी की थी. जिन्हें निचली अदालत ने डॉक्टर की पत्नी को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का दोषी ठहराया था.

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अदालत ने न्यायाधीशों को निर्देश दिया कि, "ये सुनिश्चित करें कि आत्महत्या के लिए कथित तौर पर उकसाने के मामलों में, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सबूत होने चाहिए. अभियुक्त की ओर से उस घटना के समय तक जिसने उस व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित या मजबूर किया. उत्पीड़न के आरोपों पर बिना किसी पुख्ता सबूत के कार्रवाई नहीं की जा सकती."

पिछले महीने हरियाणा के पूर्व मंत्री गोपाल कांडा को एयरहोस्टेस गीतिका शर्मा की आत्महत्या से मौत के इसी तरह के एक मामले में बरी कर दिया गया था. विशेष न्यायाधीश विकास ढुल ने मामले में सह-आरोपी अरुणा चड्ढा को भी बरी कर दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष सभी उचित संदेहों से परे आरोपों को साबित करने में विफल रहा है.

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ये इस तथ्य के बावजूद था कि गीतिका शर्मा ने अपने सुसाइड नोट में पूर्व मंत्री का नाम लिया था.

अदालत ने ये भी कहा था कि अभियोजन पक्ष को बिना किसी संदेह के ये साबित करना होगा कि आरोपी ने मौत के लिए उकसाया था और वह उकसावा ही आत्महत्या का संभावित कारण होना चाहिए.

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