बिहार SIR मामले को लेकर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा, 13 अगस्त को सुनवाई

निर्वाचन आयोग ने शनिवार को कहा कि बिहार मतदाता सूची का मसौदा एक अगस्त को प्रकाशित होने के बाद से किसी भी राजनीतिक दल ने उसमें नाम शामिल करने या हटाने के लिए उससे संपर्क नहीं किया है. मसौदा सूची एक सितंबर तक दावों और आपत्तियों के लिए उपलब्ध रहेगी.

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चुनाव आयोग ने हलफनामे में कहा है SIR का पहला चरण पूरा हो गया है.
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  • EC ने हलफनामे में कहा बिहार में मतदाता सूची से पात्र वोटर का नाम पूर्व सूचना और सुनवाई के हटाया नहीं जाएगा
  • SIR के दौरान गलत तरीके से नाम हटाने को रोकने के लिए चुनाव आयोग ने सख्त निर्देश जारी किए हैं
  • SIR के पहले चरण में 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने अपने नामों की पुष्टि या फॉर्म जमा किया है.
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नई दिल्ली:

बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण ( SIR) मामले को लेकर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. जिसमें कहा है कि बिहार में किसी भी पात्र मतदाता का नाम बिना पूर्व सूचना, सुनवाई का अवसर और तर्कपूर्ण आदेश के मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा. सभी योग्य मतदाता का नाम फाइनल मतदाता सूची में शामिल कराने के लिए सभी संभव कदम उठाए जा रहे हैं. राज्य में चल रहे SIR के दौरान गलत तरीके से नाम हटाए जाने को रोकने के लिए "सख्त निर्देश" जारी किए गए हैं.

 SIR का पहला चरण पूरा हुआ

बता दें कि डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एसोसिएशन(ADR) ने गलत तरीके से 65 साख मतदाताओं को बाहर करने का आरोप  लगाया है. 6 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को हलफनामा दाखिल करने को कहा था. इस मामले में अब 13 अगस्त को सुनवाई होनी है. चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अतिरिक्त हलफनामे में कहा है SIR का पहला चरण पूरा हो गया है. 1 अगस्त 2025 को प्रारूप मतदाता सूची प्रकाशित कर दी गई है. यह चरण बूथ स्तर अधिकारियों (BLOs) द्वारा घर-घर जाकर मतदाताओं के नाम और फॉर्म जुटाने के बाद पूरा हुआ. 

आयोग ने बताया कि 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ लोगों ने अपने नामों की पुष्टि या फॉर्म जमा किए. इसके लिए बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, 38 जिला निर्वाचन पदाधिकारी, 243 निर्वाचन पंजीकरण पदाधिकारी, 77,895 BLO, 2.45 लाख स्वयंसेवक और 1.60 लाख बूथ स्तर एजेंट सक्रिय रहे. राजनीतिक दलों को समय-समय पर छूटे हुए मतदाताओं की सूची दी गई ताकि समय रहते नाम जोड़े जा सकें.  प्रवासी मजदूरों के लिए 246 अखबारों में हिंदी में विज्ञापन, ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से फॉर्म भरने की सुविधा है. शहरी निकायों में विशेष कैंप, युवाओं के पंजीकरण के लिए अग्रिम आवेदन की व्यवस्था की है. 

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वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगों और कमजोर वर्गों की मदद के लिए 2.5 लाख स्वयंसेवक तैनात किए है. किसी भी नाम को प्रारूप सूची से हटाने से पहले नोटिस, सुनवाई और सक्षम अधिकारी का कारणयुक्त आदेश अनिवार्य है. 1 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक दावे और आपत्तियां दर्ज करने की अवधि, इसके लिए ऑनलाइन और प्रिंट कॉपी उपलब्ध है. आयोग ने कहा कि हर योग्य मतदाता का नाम अंतिम मतदाता सूची में शामिल कराने के लिए सभी संभव कदम उठाए जा रहे हैं और इस प्रक्रिया पर रोजाना प्रेस विज्ञप्ति के जरिए जनता को जानकारी दी जा रही है.

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"अशुद्ध हाथों" से आवेदन दायर की गई

 सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने जवाब दाखिल किया और कहा  ADR की याचिका जुर्माने के साथ खारिज की जाए. चुनाव आयोग ने दलील दी कि एडीआर ने "अशुद्ध हाथों" से आवेदन दायर किया है और एनजीओ का तरीका "डिजिटल, प्रिंट और सोशल मीडिया पर झूठी खबरें गढ़कर" चुनाव आयोग को बदनाम करने के उसके पहले के प्रयासों जैसा ही है. इसलिए चुनाव आयोग ने अदालत से याचिकाकर्ता पर भारी जुर्माना लगाकर "उचित कार्रवाई" करने का आग्रह किया.

एडीआर के इस तर्क के बारे में कि कई ऐसे लोग, जिनके नाम बूथ लेवल अधिकारियों द्वारा अनुशंसित नहीं थे, मसौदे में शामिल थे, चुनाव आयोग ने कहा कि बीएलओ से प्राप्त जानकारी केवल "संकेतक" है और निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों द्वारा इसकी दोबारा जांच की जानी है.

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आयोग ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल न किए गए लोगों की अलग सूची प्रकाशित करने के लिए नियमों द्वारा बाध्य नहीं है. नियमों के तहत उसे ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल न किए गए व्यक्तियों के कारण बताने की भी जरूरत नहीं है. चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि उसने ड्राफ्ट मतदाता सूची राजनीतिक दलों के साथ साझा की है  जिन लोगों को ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल नहीं किया गया है, उनके पास शामिल किए जाने के लिए घोषणा पत्र प्रस्तुत करने का विकल्प है. 

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सुप्रीम कोर्ट ने उन अर्जियों का विरोध किया जिसमें ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल न किए गए लोगों की सूची प्रकाशित करने और उन्हें शामिल न किए जाने के कारण बताने की मांग की गई है. वैधानिक ढांचा चुनाव आयोग को कोई अलग दस्तावेज़ तैयार करने या साझा करने की आवश्यकता नहीं. लोग जो मसौदा मतदाता सूची में शामिल नहीं हैं, या किसी भी कारण से मसौदा मतदाता सूची में किसी को भी शामिल न करने के कारणों को प्रकाशित नहीं करता.  चूंकि तो कानून और न ही दिशानिर्देश ऐसे किसी भी पूर्व मतदाताओं की सूची तैयार करने या साझा करने का प्रावधान करते हैं जिनका गणना प्रपत्र किसी भी कारण से गणना चरण के दौरान प्राप्त नहीं हुआ . इसलिए याचिका द्वारा अधिकार के रूप में ऐसी कोई सूची नहीं मांगी जा सकती. 
 

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