जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) में पीरपंजाल के दुर्गम रास्ते अब भारतीय टेक्नॉलोजी और इंजीनियरिंग के गवाह हैं. इन पर्वतों के बीच से गुज़रती रेल की पटरी आखिरकार कश्मीर को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ने के लिए तैयार हो रही हैं. कुछ साल पहले तक ये बात कोई सोच भी नहीं सकता था, क्योंकि हालात वैसे नहीं थे. मोदी सरकार (9 Years of Modi Government) के 9 साल (#9YearsOfPMModi) पूरे होने पर NDTV खास डॉक्यूमेंट्री सीरीज (PM Modi Documentary Series Episode 5) लेकर आया है. आज सीरीज के पांचवें एपिसोड में देखिए मोदी सरकार में कैसे बदली जम्मू-कश्मीर (#Jammukashmir) की तस्वीर. (यहां देखिए, डॉक्यूमेंट्री सीरीज के पांचवें एपिसोड का पूरा वीडियो)
पीरपंजाल के दुर्गम रास्ते पर देश की सबसे लंबी रेल सुरंग है. दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल भी यहीं है. चेनाब नदी के ऊपर 1315 मीटर लंबे पुल को बनाने में 3000 करोड़ टन से भी ज़्यादा इस्पात लगा. चार लेन के श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग को बनाने का काम ज़ोर-शोर से चल रहा है. इसके चालू होने पर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा. सेब के व्यापारियों को राहत मिलेगी, क्योंकि अक्सर सड़कें बंद होने से उन्हें कारोबार में नुकसान झेलनी पड़ती है. कश्मीर में 22 लाख मीट्रिक टन सेब की पैदावार होती है, जो देश में कुल सेब की पैदावार का 80% हिस्सा है.
अर्थशास्त्री नासिर अली कहते हैं, "पिछले बरसों में छोटे और मंझौले उद्योग पनप नहीं पाए, क्योंकि निवेशक पैसा लगाने से डरते थे. क्योंकि कश्मीर में कहीं भी बनने वाले उत्पादों की लागत पंजाब या मैदानी इलाकों के मुकाबले बहुत ज़्यादा होती थी. एक बाधा ये थी. दूसरी बात ये कि लगातार सप्लाई चेन बनाए रखनी पड़ती है. लेकिन पिछले साल हमने देखा कि सेबों से लदे ट्रक सड़कों पर रुकावट की वजह से वहां रुके रहे. ऐसा हर साल होता है."
पर्यटन में आया उछाल
घाटी में पर्यटन में उछाल आया है. कश्मीर में बढ़ते सैलानियों का फायदा गुलमर्ग गॉन्डोला को मिल रहा है. पिछले एक साल में इसने 100 करोड़ रुपये का राजस्व कमाया, जो 2019 के मुकाबले तीन गुना ज़्यादा है. गुलमर्ग में दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची केबल कार आपको बर्फ़ से ढकी 14000 फुट ऊंची अफरावत चोटी पर ले जाती है. मशहूर स्की रिज़ॉर्ट पर पर्यटकों के लिए ये किसी सपने से कम नहीं.
G-20 प्रतिनिधियों ने शिकारे से की डल झील की सैर
श्रीनगर की डल झील पर अब्दुल रज्जाक डार अपने शिकारे को तैयार कर रहे हैं. 70 साल के शिकारेवाले ने अपनी पूरी ज़िंदगी पानी पर गुज़ार दी. इनके चार बच्चे उसी कमाई पर पले, जो इन्होंने इस ख़ूबसूरत झील की सैर करवाते हुए कमाए. इस हफ़्ते अब्दुल रज़्ज़ाक़ डार ने G-20 प्रतिनिधियों को अपने शिकारे से डल झील दिखाई. पिछले साल के दौरान पर्यटन का कारोबार ख़ूब अच्छा चला, जिससे इन्होंने अपना कर्ज़ चुकाया. इनको उम्मीद है कि G-20 बैठक से नई नौकरियां निकलेंगी और इनके बेटों को रोज़गार मिलेगा.
आसिफ इकबाल बुर्जा अहद ग्रुप ऑफ होटल्स चलाते हैं. 2019 में इनके यहां 200 स्टाफ थे. अब इनके यहां 600 से ज्यादा स्टाफ काम कर रह रहे हैं. आसिफ इकबाल बुर्जा कहते हैं, "यहां हालात काफी सुधर गए हैं. कानून-व्यवस्था पहले से बेहतर हो गई है. पहले टूरिस्ट परेशान और डरे हुए से रहते थे, लेकिन अब वो अपनी ट्रिप खुल कर एंजॉय करते हैं."
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कश्मीर को लेकर मिट रही गलत धारणाएं
आर्टिकल 370 रद्द करने के बाद कड़े सुरक्षा प्रबंध करने के अलावा, सरकार द्वारा उठाए गए अन्य क़दमों के कारण पर्यटन का विकास संभव हुआ है. कश्मीर आकर उसकी सुंदरता का आनंद लेने की प्रधानमंत्री की लोगों से अपील का भी गहरा असर पड़ा है. पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि देश भर से सैलानियों के आने से न सिर्फ़ अर्थव्यवस्था बेहतर हो रही है, बल्कि इससे कश्मीर के बारे में लोगों की गलत धारणाएं भी मिट रही हैं.
कश्मीर पर भारत के रुख को मिली दुनिया की स्वीकृति
अगस्त 2019 में आर्टिकल 370 को रद्द करके सरकार ने एकदम स्पष्ट संदेश भेजा है कि कश्मीर भारत के दूसरे हिस्सों की तरह देश का अटूट अंग है. श्रीनगर में आयोजित G-20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की तीसरी बैठक की बड़ी अहमियत है. कश्मीर में दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों के प्रतिनिधियों की बैठक को कश्मीर पर भारत के रुख़ की स्वीकृति के तौर पर देखा जा रहा है.
अमित शाह
सरकार ने तय किया है कि वो G-20 की बैठकें देश भर में करेगी. उन्होंने जम्मू-कश्मीर को ही अकेले नहीं चुना. अगर देश भर में ऐसा हो रहा है तो जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, ऐसी बैठकें केंद्रशासित प्रदेश में भी हों, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए.
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अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रोफेसर अमिताभ मट्टू बताते हैं, "ये आयोजन जम्मू-कश्मीर में बहुत ही शांत माहौल में हुआ. यह इस बात का संकेत है कि दुनिया के अधिकतर देशों में 5 अगस्त 2019 के फैसले को स्वीकार कर लिया है. ये एक लंबे इतिहास का छोटा सा मील का पत्थर है. आप जानते हैं कि आर्टिकल 370 ने इतने सालों में अपना पैनापन खो दिया था. प्रधानमंत्री ग़ुलाम बख़्शी फिर सादिक़ साहब के कश्मीर पर राज के दौरान इसकी ज़्यादातर हैसियत ख़त्म हो गई थी. ये बस एक मनोवैज्ञानिक प्रतीक बन कर रह गया था. अगर जम्मू-कश्मीर के लोगों को लगता है कि वो सशक्त हैं. आर्थिक विकास और सही सरकार चुनने के मामले में अपना भाग्य ख़ुद लिख सकते हैं, तो उन्हें ये भी एहसास होगा जो नेताओं को नहीं हुआ कि 370 एक अड़चन थी. लेकिन ये बदलाव अभी होना है."
आर्टिकल 370 के निरस्त होने निवेश को मिला बढ़ावा
आर्टिकल 370 के निरस्त होने से पहले जम्मू-कश्मीर के बाहर का कोई व्यक्ति न तो वहां ज़मीन ख़रीद सकता था और न ही उसे राज्य सरकार में नौकरी मिल सकती थी. सरकार का कहना है कि जम्मू-कश्मीर के विकास और वहां होने वाले निवेश में ये एक बड़ी बाधा थी. पिछले साल मार्च में जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने बताया कि 6 महीनों में निवेश 70000 करोड़ रुपये पार कर जाएगा. शुरुआत हो चुकी है, पर चुनौतियां अभी बाकी हैं.
सीनियर फेलो, ओआरएएफ सुशांत सरीन कहते हैं, "हुआ ये है कि कुछ क़ानून केंद्रशासित प्रदेश में भी लागू किए गए हैं, उससे मेरे ख़याल से बहुत से लोग इसे निवेश के ठिकाने के तौर पर देखने लगे हैं. निवेश को लेकर सम्मेलन भी हो रहे हैं. यहां दूसरे देश भी आ रहे हैं, जैसे संयुक्त अरब अमीरात और अन्य देश जम्मू-कश्मीर आकर निवेश करना चाह रहे हैं, लेकिन ये सब रातोंरात नहीं हो जाएगा."
मुज्तबा क़ादरी श्रीनगर में हैंडीक्राफ्ट (हस्तशिल्प) की एक दुकान चलाते हैं. G-20 समिट के दौरान आयोजित कश्मीर कला और शिल्प प्रदर्शनी में भी इन्होंने हिस्सा लिया. वो कहते हैं कि कश्मीर की सुंदर हस्तशिल्प कला देख कर विदेशी नुमाइंदे मुग्ध हो गए. इन्हें उम्मीद है कि G-20 के कामयाब आयोजन के बाद पश्चिमी देशों ने कश्मीर यात्रा के खिलाफ जो सलाह दी है वो वापस ले लेंगे.
परिसीमन के बाद चुनावी नक़्शा भी बदला
पिछले साल हुए परिसीमन के बाद चुनावी नक़्शा भी बदल गया है. जम्मू को अब उसकी आबादी के हिसाब से विधानसभा की सीटें मिल गई हैं. बीजेपी कहती है कि परिसीमन से जम्मू के खिलाफ दशकों से चला आ रहा भेदभाव ख़त्म हो गया है.
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अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रोफेसर अमिताभ मट्टू बताते हैं, "राजनीतिक सबलीकरण के मायने हैं कि निकाय संस्थाओं से लेकर राज्य सरकार तक, केंद्र शासित प्रदेश के लोगों पास सरकार चुनने का अधिकार और क्षमता होनी चाहिए. अगर चुनावों में किए गए वादे वो पूरा नहीं करते हैं तो उस सरकार को हटा दें. सरकार की सबसे बड़ी चुनौती नौकरियां देने की है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में बेरोज़गारी की दर देश की सबसे ऊंची दरों में एक हैं."
एस ए मुज्तबा, पूर्व आईपीएस/सदस्य लोक सेवा आयोग बताते हैं, "मुद्दा ये है कि हमारे पास बहुत कम नौकरियां हैं और योग्य उम्मीदवार बहुत हैं. इसलिए उम्मीदवार बहुत बड़ी संख्या में आते हैं और एक संस्था के लिए उनकी परीक्षा करवाना भी बहुत मुश्किल हो जाता है. कुछ हद तक आउटसोर्सिंग ठीक है, लेकिन पूरी तरह से उस पर निर्भर करने में जवाबदेही की समस्या हो जाती है. अगर पारदर्शिता और निष्पक्षता पर ही सवाल उठने लगे और आपराधिक जांच हो तो उससे समस्या नहीं सुलझेगी."
रुपहले परदे पर भी लौटी रौनक
जम्मू-कश्मीर में हालात बदले तो वो सिनेमाघर भी खुल गए, जो 1990 में आतंक की वजह से बंद हो गए थे. इस साल कश्मीर का पहला मल्टीप्लेक्स भी खुला. असली ज़िंदगी बदली तो रुपहले परदे में जान आ गई है.
डॉक्यूमेंट्री सीरीज के पहले 4 एपिसोड आप यहां देख सकते हैं:-