मम्प्स, कंठमाला, गलगण्ड या गलसुआ क्या है? जानिए कैसे फैलती है ये बीमारी, क्या है लक्षण और इलाज

Causes of Mumps: मम्प्स वायरस के संक्रमण से लार बनाने वाली पैरोटिड ग्रंथियां सूज जाती हैं और उनमें बेहद दर्द होता है. आइए, इस कंठमाला बीमारी के कारण, लक्षण, वैक्सीनेशन और इलाज के बारे में जानते हैं.

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क्या है मम्प्स, क्यों होती है ये बीमारी

Mumps Symptoms: वायरस से होने वाली दर्दनाक बीमारियों में एक मम्प्स (Mumps) को गलगंड, गलसुआ या कंठमाला के नाम से भी जाना जाता है. चेहरे के चारों तरफ ग्रंथियों को प्रभावित करने वाली इस बीमारी का खासकर बच्चों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. हमारी बॉडी में प्रमुख लार ग्रंथियों के तीन जोड़े हैं. इन्हें पैरोटिड, सबलिंगुअल और सबमांडिबुलर कहते हैं. सभी ग्रंथियों की अपनी नली होती है जो से मुंह तक जाती है. मम्प्स वायरस के संक्रमण से लार बनाने वाली पैरोटिड ग्रंथियां सूज जाती हैं और उनमें बेहद दर्द होता है. आइए, इस कंठमाला बीमारी के कारण, लक्षण, वैक्सीनेशन और इलाज के बारे में जानते हैं.

कंठमाला बीमारी के कारण (Causes of mumps)

मम्प्स वायरस के संक्रमण से प्रभावित लार मरीज के खांसने और छींकने से बाहर आता है. इसके चलते वायरस वाली छोटी बूंदें हवा में फैल सकती हैं. इसके दायरे में दूसरे लोग जब सांस लेते हैं तो उन्हें संक्रमण का खतरा होता है. किसी ऐसी सतह जहां ये छोटी बूंदें गिरी हैं को छूकर बिना हाथ धोए अपने चेहरे को छूने से भी वायरस फैल सकता है. इसके अलावा मरीज को चूमने या पानी की बोतल शेयर करने जैसे सीधे संपर्क से भी वायरस फैल सकता है.

कंठमाला बीमारी के लक्षण (symptoms of mumps)

मम्प्स वायरस के संपर्क में आने के लगभग 2 से 3 सप्ताह बाद कंठमाला बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं. मरीज में पहले फ्लू के लक्षणों के समान असर हो सकते हैं. इनमें बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, खाने की इच्छा नहीं होना और थकान शामिल है.

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आमतौर पर कुछ दिनों के भीतर ही लार ग्रंथियों की सूजन भी शुरू हो जाती है. इनके लक्षणों में चेहरे के किनारों पर एक या दोनों ग्रंथियों की सूजन, सूजन के आसपास दर्द या कोमलता और मुंह के तल के नीचे की ग्रंथियों में सूजन शामिल हो सकते हैं. चेहरे के एक या दोनों तरफ दर्दनाक सूजन कंठमाला का सबसे बड़ा लक्षण है.

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कंठमाला बीमारी का टीकाकरण

जिन लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ है उनमें कंठमाला के संक्रमण का खतरा अधिक है. टीका लगवाने वाले जिन लोगों को अगर कंठमाला हो जाती है तो उनमें आमतौर पर हल्के लक्षण और कम जटिलताएं होती हैं. कंठमाला का टीका बचपन के टीकाकरण का एक हिस्सा है. आमतौर पर खसरा-कंठमाला-रूबेला (एमएमआर) टीके के रूप में ही दिया जाता है. बच्चें में इसकी पहली खुराक 12 से 15 महीने की उम्र के बीच और दूसरी खुराक स्कूल में प्रवेश से पहले 4 से 6 वर्ष की आयु के बीच दी जाती है.

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कंठमाला बीमारी का इलाज क्या है

कंठमाला की बीमारी के लिए फिलहाल कोई खास दवा उपलब्ध नहीं है. दर्द और परेशानी से राहत मिलता ही इसका इलाज है. बच्चों में कंठमाला के लक्षण दिखते ही नजदीकी डॉक्टर से मिलना चाहिए. इसके साथ ही जितना हो सके मरीज को आराम करवाना चाहिए. डॉक्टर के बताए पेन किलर के अलावा सूजी हुई लार ग्रंथियों को ठंडे या गर्म कपड़े से सेंकना भी चाहिए.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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