Gestational Diabetes: किसी भी महिला के लिए प्रेगनेंसी का समय स्पेशल होने के साथ-साथ चुनौतीपूर्ण भी होता है. इस दौरान शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं. हार्मोनल लेवल पर शरीर में होने वाले बदलाव के कारण मूड स्विंग और चिड़चिड़ापन जैसी समस्या ज्यादा होती है. शारीरिक तौर पर भी कई तरह के बदलाव आते हैं. पहले के मुकाबले प्रेगनेंट महिलाएं अब बीमारियों के चपेट में भी ज्यादा आती हैं. इन दिनों प्रेगनेंसी के दौरान डायबिटीज का मामला भी काफी बढ़ गया है जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational Diabetes) कहा जाता है. कई लोगों के मन में यह सवाल आता है कि क्या डिलीवरी के बाद शुगर की बीमारी खुद ही ठीक हो जाती है? एनडीटीवी ने एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. संदीप खरब से इस बारे में बातचीत की.
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डिलीवरी के बाद खुद ही ठीक हो जाती है डायबिटीज?
डॉ. संदीप खर्ब ने बताया कि प्रेगनेंसी के दौरान शरीर में होने वाले ढ़ेर सारे बदलावों के कारण छठे महीने या गर्भावस्था के आखिरी के तीन-चार महीने में महिलाएं डायबिटीज का शिकार हो जाती हैं जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज भी कहा जाता है. डॉक्टर ने बताया कि डिलीवरी के बाद आमतौर पर शुगर की बीमारी खुद ही ठीक हो जाती है, लेकिन बच्चे को जन्म देने के 6 हफ्ते बाद ब्लड शुगर टेस्ट कराकर कंफर्म हो जाना चाहिए. टेस्ट करवाना इसीलिए जरूरी है क्योंकि डिलीवरी के बाद सभी महिलाओं में डायबिटीज खत्म नहीं होती है.
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टाइप 2 डायबिटीज का खतरा
गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज का शिकार हुई महिलाओं को खास ख्याल रखने की जरूरत होती है. डिलीवरी के बाद ब्लड शुगर लेवल सामान्य होने के बावजूद खतरा टलता नहीं है. डॉ. संदीप खरब ने बताया कि आंकड़ों के मुताबिक, प्रेगनेंसी के दौरान डायबिटीज का शिकार हुई 50 प्रतिशत महिलाओं में 5 या 10 साल बाद टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा रहता है.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)