रीढ़ में गोली लगने पर हुई लकवाग्रस्त, साइबरडाइन तकनीक के जरिए हुई ठीक, जानिए क्या है ये तकनीक

सारिका को रीढ़ की हड्डी में लगी थी गोली, जिसके बाद उनकी कमर के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया. लेकिन उनकी जिंदगी में साइबरडाइन तकनीक ने एक बार फिर से उनको नई जिंदगी की किरण दिखाई.

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रीढ़ की हड्डी में लगी चोट कई गंभीर बीमारियों का शिकार बना देती है.

नई दिल्ली: 28 वर्षीय सारिका की पीठ के निचले हिस्से में गोली लगने के बाद वह व्हीलचेयर के सहारे अपनी जिंदगी बिता रही थीं. अपने परिवार में सारिका एकमात्र कमाने वाली सदस्या थीं. गोली रीढ़ की हड्डी में लगी थी, नाजुक स्थिति के कारण गोली को निकालने में 12 दिन का समय लगा. इससे उनके कमर के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया. 

महीनों के इलाज और अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद, सारिका और उसके परिवार ने उनके पूरी तरह से ठीक होने की उम्मीद लगभग छोड़ ही दी थी. सारिका कहती हैं, "यह सोचना मेरे लिए काफी दुःखद और परेशान करने वाला था कि मुझे अपनी बाकी जिंदगी इस व्हीलचेयर के सहारे ही गुजारनी होगी." साइबरडाइन तकनीक ने उनको एक बार फिर से एक नई जिदंगी दी. आइए जानते हैं क्या है ये तकनीक.

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क्या है साइबरडाइन एचएल तकनीक 

डा. सचिन कंधारी ने बताया कि यह तकनीक एक प्रकार से हमारे मस्तिष्क को नियंत्रित करने वाले रोबोट की तरह है, इसे जापानी तकनीक से बनाया गया है. इसे पहनने के बाद रोबोट मरीज के दिमाग और पैरों को सिग्नल देता है. जिससे मस्तिष्क शरीर को चलने के लिए सिग्नल भेजता है. लकवाग्रस्त मरीज को इस रोबोट को एक से चार महीने तक पहनकर प्रैक्टिस करनी होती है. कुछ समय बाद वो बिना रोबोट के भी चलने में सक्षम हो जाते हैं. यह समय कुछ-केस में कम और ज्यादा भी लग सकता है.

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किस तरह काम करती है साइबरडाइन तकनीक

डॉ. सचिन कंधारी, वरिष्ठ न्यूरोसर्जन और प्रबंध निदेशक, आईबीएस अस्पताल, नई दिल्ली ने बताया, “जब सारिका हमारे पास आई, तो उसकी रीढ़ की हड्डी आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त (एससीआई) थी, इससे वह पीठ के निचले हिस्से और कूल्हों में संवेदना बहुत कम ही महसूस कर पा रही थी. कई जांचे होने के बाद पता लगा कि सारिका को कमर के नीचे लकवा मार गया था. इसलिए बिना समय गंवाए, हमने एक उन्नत न्यूरोमॉड्यूलेशन तकनीक के साथ उसका इलाज करने का निर्णय लिया, जो रीढ़ की हड्डी को फिर से काम करने के लिए प्रशिक्षित करने के लिए न्यूरोप्लास्टिसिटी का इस्तेमाल करती है,"

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जब कोई व्यक्ति अपने शरीर को हिलाने-डुलाने की कोशिश करता है, तो मोटर न्यूरॉन्स के सहारे से तंत्रिकीय संकेत को मस्तिष्क से मांसपेशियों तक प्रेषित/संचारित किया जाता है, जिसके कारण जोड़ों सहित मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम/तंत्र गतिविधि करता है. शरीर की गति से ठीक पहले, हल्के बायोइलेक्ट्रिकल सिग्नल जो किसी व्यक्ति के इरादे को दर्शाता है, त्वचा की सतह से प्रकट होने लगते हैं. एचएएल इस संकेत को पढ़ सकता है और व्यक्ति की इच्छा से सामंजस्य बैठाते हुए जोड़ों की गति में सहायता प्रदान करने के लिए पॉवर युनिट को नियंत्रित कर सकता है.

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उन्नत तकनीकों जैसे साइबरडाइन एचएएल, नॉन-इनवेसिव स्पाइनल कॉर्ड स्टिमुलेशन आदि का इस्तेमाल आमतौर पर बेहतर रिकवरी के लिए किया जाता है, जिसमें ब्लैडर (मूत्राशय) और बॉउल (आंतों और मलाश्य) की सामान्य कार्यप्रणाली को फिर से पाना भी शामिल है, जैसा कि सारिका के मामले में किया गया था.

सारिका की स्थिति में काफी सुधार आया है. वह अब बिना किसी सहारे के चल पा रही हैं. वो अब अपने रोजमर्रा के कामों के लिए किसी पर आश्रित नही हैं. 

रीढ़ की हड्डी में लगी चोटें पूरी लाइफ को बदल देती हैं.  बता दें कि यह दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी तरह का पहला न्यूरो-स्टीम्युलेशन रोबोट - साइबरडाइन है, जिससे उपचार के बहुत बेहतर परिणाम मिले हैं और कई मरीजों की रिकवरी भी हुई है. साइबरडाइन को ऐसे कई मरीजों के उपचार के लिए एक नया जीवन देने वाला कहना गलत नहीं होगा. 

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