Diabetes Patients: नैनोटेक्नोलॉजी में प्रगति के कारण मधुमेह से पीड़ित (Diabetes Patients) लोग इंजेक्शन के बजाय इंसुलिन को शुगर रहित चॉकलेट (Sugar-Free Chocolate) जैसी स्वादिष्ट दवाइयों (Medicine For Diabetes) के जरिए मौखिक रूप से भी ले सकेंगे. दुनियाभर में 15 से 20 करोड़ लोगों को रोजाना इंसुलिन के इंजेक्शन (Insulin injections) लेने पड़ते हैं. ‘टाइप-1' मधुमेह (type 1 diabetes) से पीड़ित हर व्यक्ति को इंसुलिन की जरूरत पड़ती है और ‘टाइप-2' मधुमेह (People with Diabetes) से पीड़ित 20 से 30 प्रतिशत मरीजों को इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है.
हो सकती है लो ब्लड शुगर या ‘हाइपोग्लाइसीमिया' (Hypoglycemia) की समस्या
ये इंजेक्शन यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी हैं कि मधुमेह से पीड़ित (Diabetic) लोगों के शरीर में पर्याप्त इंसुलिन (required insulin) हो ताकि उनके खून में शुगर के स्तर (Blood Sugar Levels) में वृद्धि न हो. लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है. इंसुलिन इंजेक्शन लेने वाले लोगों को लो ब्लड शुगर या ‘हाइपोग्लाइसीमिया' (Hypoglycemia) की समस्या हो सकती है क्योंकि अपने शरीर की जरूरत से अधिक इंसुलिन लेने का खतरा बना रहता है या ऐसा भी हो सकता है कि उन्होंने सही समय पर इंजेक्शन नहीं लगाया हो. इसके वजह से वजन भी बढ़ सकता है. कुछ लोगों को सुई से डर भी लगता है.
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कैसे काम करेगी इंसुलिन की यह ओरल डोज | When will oral insulin be available
Oral insulin: an update : इससे पहले, इंजेक्शन के बजाय मौखिक (Oral medicines for diabetes) रूप से इंसुलिन लेना निष्प्रभावी साबित हुआ है लेकिन नैनोटेक्नोलॉजी की मदद से मुंह से ली जाने वाली इंसुलिन भी प्रभावी साबित हो सकती है.
‘क्वांटम डॉट्स' (quantum dots) के नाम से जाने जाने वाले नैनो-आकार के वाहकों में इंसुलिन को डाला जाता है, जो मानव बाल की चौड़ाई का लगभग 1/10,000वां हिस्सा या आपकी उंगली के आकार का दस लाखवां हिस्सा होता है. ये नैनो-वाहक इंसुलिन को नष्ट होने से बचाते हैं. जब यह दवा पेट से होकर गुजरती है और छोटी आंत में अधिक आसानी से अवशोषित हो जाती है.
यह मधुमेह के प्रबंधन का एक अधिक व्यावहारिक और रोगी के अनुकूल तरीका है, क्योंकि यह ब्लड शुगर अत्यधिक कम होने के जोखिम को बहुत कम कर देता है. इसके अलावा, इस मौखिक दवा के जरिए इंसुलिन नियंत्रित तरीके से शरीर में पहुंचता है जबकि इंजेक्शन के जरिए यह एक साथ पहुंचता है.
क्लीनिकल इस्तेमाल से पहले के अध्ययन पूरा होने के बाद इस तकनीक को मरीजों तक पहुंचाने की दिशा में अगला कदम मानव परीक्षणों के माध्यम से इसकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करना है और यह पता करना है कि यह कितना सुरक्षित है. इस अध्ययन संबंधी मानवीय परीक्षण 2025 में आरंभ होंगे. मधुमेह से प्रभावित लोगों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर इसके प्रबंधन की नई रणनीतियों को विकसित करना महत्वपूर्ण है. यदि इस दिशा में नैनोटेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सफल साबित होता है तो इससे मधुमेह का उपचार एवं प्रबंधन लाखों लोगों के लिए आसान हो जाएगा.
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