Kantakari Benefits: बढ़ते प्रदूषण के कारण खांसी और दमा जैसी सांस की समस्याएं बहुत आम हो गई हैं. ऐसे में प्राकृतिक औषधि का प्रयोग करना काफी लाभदायक हो सकता है. ऐसी ही एक जड़ी-बूटी है कण्टकारी, जिसे आमतौर पर भटकटैया या कंटेरी भी कहा जाता है. यह एक कांटेदार पौधा है, जो पूरे भारत में आसानी से पाया जाता है. आयुर्वेद में कण्टकारी को कासहर औषधि कहा गया है, जो खांसी शांत करती है. यह दशमूल औषधियों का भी हिस्सा है और फेफड़ों की सफाई, कफ पतला करने और श्वसन तंत्र को मजबूत करने में मदद करती है.
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कफ-वात दोष को शांत करती है कण्टकारी
चरक संहिता में भी कण्टकारी का उल्लेख मिलता है. यह हल्की, कड़वी और तीखी होती है तथा कफ-वात दोष को शांत करती है. कण्टकारी का उपयोग खांसी, दमा, गले की खराश, सर्दी-जुकाम और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों में किया जाता है. यह बलगम को पतला करके बाहर निकालती है, जिससे सांस लेने में आसानी होती है. इसके फलों का काढ़ा गले की सूजन और जलन को कम करता है.
खांसी से छुटाकारा दिलाएं ये आयुर्वेदिक औषधी
आयुर्वेदिक नुस्खों में कण्टकारी का प्रयोग काढ़ा, अर्क या चूर्ण के रूप में किया जाता है. अगर आप पुरानी सूखी खांसी से परेशान हैं, तो कण्टकारी चूर्ण और शहद का मिश्रण सुबह-शाम लेना फायदेमंद रहता है.
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इसके अलावा, आयुर्वेदिक औषधि दुकानों पर मिलने वाला कण्टकारी अर्क या सिरप भी नियमित सेवन से रेस्पिरेटरी सिस्टम को मजबूत करता है. वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाए तो आधुनिक शोध बताते हैं कि कण्टकारी में अस्थमारोधी, कफ निस्सारक, सूजनरोधी और रोगाणुरोधी गुण पाए जाते हैं. यह फेफड़ों की सूजन को कम करता है और सांस की नलियों को खोलता है.
कण्टकारी के साथ अगर आप वासा, तुलसी, यष्टिमधु और पिप्पली जैसी जड़ी-बूटियां भी लेते हैं, तो इसका असर कई गुना बढ़ जाता है. हालांकि, गर्भवती महिलाएं इसे केवल वैद्य की सलाह से ही लें और बच्चों को आधी मात्रा ही दें. ज्यादा मात्रा में सेवन से जलन या पित्त बढ़ सकता है.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)














