कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (सीएसआई) द्वारा गुरुवार को डिस्लिपिडेमिया प्रबंधन के लिए पहली बार जारी किए गए भारतीय दिशानिर्देशों के अनुसार सामान्य आबादी या कम जोखिम वाले लोगों को बैड कोलेस्ट्रॉल के स्तर को 100 प्रति डेसीलिटर से नीचे बनाए रखना चाहिए. जबकि, डायबिटीज या हाई ब्लडप्रेशर वाले लोगों को यह 70 मिलीग्राम डेसीलिटर से नीचे रखने का गोल रखना चाहिए. हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई एलडीएल-कोलेस्ट्रॉल, हाई ट्राइग्लिसराइड्स और लो एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल से डिस्लिपिडेमिया होता है, जो हार्ट से जुड़ी बीमारियों (सीवीडी) जैसे दिल के दौरे, स्ट्रोक और परिधीय धमनी रोग के लिए एक गंभीर जोखिम कारक है.
हार्ट रोग के उच्च जोखिम वाले वर्ग के लोगों को बैड कोलेस्ट्रॉल के स्तर को 55 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से नीचे रखने का गोल रखना चाहिए. कहा गया है कि ये दिशानिर्देश ऐसे समय में जारी किए गए हैं जब भारत में डिस्लिपिडेमिया का प्रचलन चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है और इसके परिणामस्वरूप हृदय रोग भी विशेष रूप से युवा वयस्कों में बढ़ रहे हैं.
नए दिशा-निर्देश जोखिम आकलन और उपचार के लिए पारंपरिक उपवास माप से हटकर गैर-उपवास लिपिड माप की भी सिफारिश करते हैं. बढ़ा हुआ बैड कोलेस्ट्रॉल प्राथमिक लक्ष्य बना हुआ है, लेकिन उच्च ट्राइग्लिसराइड्स (150 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से अधिक) वाले रोगियों के लिए नॉन-एचडीएल कोलेस्ट्रॉल पर ध्यान केंद्रित किया जाता है.
नॉन-एचडीएल में सभी खराब प्रकार के कोलेस्ट्रॉल शामिल हैं.
दिशानिर्देशों के अनुसार पॉपुलेशन और कम जोखिम वाले व्यक्तियों को बैड कोलेस्ट्रॉल का लेवल 100 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से कम और नॉन-एचडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर 130 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से कम बनाए रखना चाहिए. उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों जैसे कि मधुमेह या उच्च रक्तचाप वाले लोगों को बैड कोलेस्ट्रॉल का स्तर 70 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से कम और वहीं नॉन-एचडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर 100 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से कम रखना चाहिए.
सर गंगा राम अस्पताल, नई दिल्ली के कार्डियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष और लिपिड दिशानिर्देशों के अध्यक्ष डॉ. जेपीएस. साहनी ने बताया,'' बहुत अधिक जोखिम वाले रोगियों के लिए उपाय सुझाए जाते हैं, जिनमें हृदयाघात, एनजाइना, स्ट्रोक या क्रोनिक किडनी रोग का इतिहास रहा है. इन रोगियों को बैड कोलेस्ट्रॉल स्तर 55 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से कम और नॉन-एचडीएल कोलेस्ट्रॉल स्तर 85 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से कम रखने का लक्ष्य रखना चाहिए.''
दिशानिर्देशों में कहा गया है कि उच्च ट्राइग्लिसराइड्स और गैर-एचडीएल कोलेस्ट्रॉल वाले रोगियों के लिए यह लक्ष्य है. इसके अलावा दिशा-निर्देशों में लिपोप्रोटीन (ए) के स्तर का कम से कम एक बार मूल्यांकन करने की सलाह दी गई है, क्योंकि ऊंचा स्तर (50 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से अधिक) हृदय रोग से जुड़ा हुआ है. पश्चिमी दुनिया (15-20 प्रतिशत) की तुलना में भारत में ऊंचा लिपोप्रोटीन (ए) का प्रचलन अधिक (25 प्रतिशत) है. इसमें जीवनशैली में बदलाव करने की भी सलाह दी गई है, जैसे नियमित व्यायाम, शराब और तंबाकू छोड़ना और चीनी और कार्बोहाइड्रेट का सेवन कम करने को कहा गया है.
एम्स, नई दिल्ली में कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर और लिपिड दिशानिर्देशों के सह-लेखक डॉ. एस. रामकृष्णन ने कहा, ''हाई बैड कोलेस्ट्रॉल और नॉन-एचडीएल कोलेस्ट्रॉल को स्टैटिन और मौखिक गैर-स्टैटिन दवाओं के संयोजन से नियंत्रित किया जा सकता है. यदि लक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं, तो पीसीएसके9 अवरोधक या इंक्लिसिरन जैसी इंजेक्शन वाली लिपिड-कम करने वाली दवाओं की सिफारिश की जाती है.'' विशेषज्ञों ने कहा, ''हृदय रोग, स्ट्रोक या मधुमेह के रोगियों में स्टैटिन नॉन स्टैटिन ड्रग्स और मछली के तेल की सिफारिश की जाती है. 500 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से ऊपर के ट्राइग्लिसराइड स्तर के लिए फेनोफिब्रेट, सारग्लिटाजोर और मछली के तेल के उपयोग की आवश्यकता होती है.''
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