स्ट्रोक से पीड़ित 85 प्रतिशत रोगी इसके लक्षणों से अनजान, सर्वे में सामने आई बात

कोच्ची के अमृता अस्पताल से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि सर्वे किए गए 91 रोगियों के समूह में से वर्तमान और रिक्योरिंग स्ट्रोक को डायग्नोस किया गया है, उनमें से 85.7 प्रतिशत लक्षणों से अनजान थे.

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स्ट्रोक से पीड़ित 85 प्रतिशत रोगी इसके लक्षणों से अनजान, सर्वे में सामने आई बात
सर्वे किए गए 91 रोगियों के समूह में से वर्तमान और रिक्योरिंग स्ट्रोक को डायग्नोस किया गया है

कोच्चि: एक अध्ययन के अनुसार 85 प्रतिशत से अधिक लोगों को स्ट्रोक का सामना करना पड़ा है, जो मृत्यु और कार्यात्मक हानि का एक प्रमुख कारण है और वे इसके लक्षणों से अवगत नहीं हैं. यहां स्थित अमृता अस्पताल से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि सर्वे किए गए 91 रोगियों के समूह में से वर्तमान और रिक्योरिंग स्ट्रोक को डायग्नोस किया गया है, उनमें से 85.7 प्रतिशत लक्षणों से अनजान थे.

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"केरल हाई साक्षरता दर वाला राज्य होने के नाते, यह चिंताजनक है कि लगभग 87.5 प्रतिशत आबादी अभी भी स्ट्रोक के लक्षणों से अनजान है, जिसकी वजह से हाई मॉर्बिडिटी और मृत्यु दर होती है. भले ही ज्यादातर रोगियों (90 प्रतिशत) को अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल में, हमने पाया कि स्ट्रोक के लक्षणों और जोखिम वाले कारकों के बारे में जागरूकता स्ट्रोक के रोगियों में कम थी." विज्ञप्ति में अस्पताल में स्ट्रोक मेडिसिन और न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ विवेक नांबियार के हवाले से कहा गया है.

भारत में, युवाओं में स्ट्रोक की व्यापकता पश्चिमी आबादी की तुलना में अधिक है और स्पेशल स्ट्रोक यूनिट और थ्रोम्बोलाइटिक थेरेपी के एग्जिक्यूशन के बावजूद जनता स्ट्रोक के बारे में अनजान बनी हुई है और केवल कुछ रोगी ही अस्पताल का रुख करते हैं.” विज्ञप्ति में कहा गया है.

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कहा गया है कि दिव्यांगता को कम करने और लाइफ क्वालिटी को अधिकतम करने के लिए स्ट्रोक की शुरुआत के बाद पहले कुछ घंटों के भीतर लक्षणों और प्रारंभिक चिकित्सा प्राप्त करना जरूरी है.

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"रेड अलर्ट लक्षण जो स्ट्रोक के लिए सभी को पता होना चाहिए वह बोलने में कठिनाई और क्षणिक पैर और हाथ की कमजोरी है." विज्ञप्ति में कहा गया है।

इसमें कहा गया है कि वर्तमान सर्वेक्षण के परिणामों से पता चला है कि स्ट्रोक के रोगियों और परिवार के सदस्यों में स्ट्रोक के बारे में सामान्य जागरूकता न्यूनतम थी, स्ट्रोक के रोगियों के उपचार और परिणाम में सुधार के लिए जन जागरूकता बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता थी.

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