सावन शिवरात्रि आज, 19 साल बाद बन रहा है दुर्लभ संयोग, यहां जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और शिव आरती

Shivratri shubh yog 2024 : सावन शिवरात्रि के खास दिन पर सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है. इस योग का समय सुबह 10:59 से लेकर 3 अगस्त सुबह 6 बजकर 2 मिनट तक रहने वाला है.

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Sawan month 2024 : 'श्रावण' माह की सावन शिवरात्रि (shivratri 2024) का विशेष महत्व होता है. इस दिन महिलाएं विशेषकर कुंवारी कन्याएं भगवान शिव के निमित्त व्रत रखती हैं. साथ ही भोलनाथ की विधि-विधान से पूजा अर्चना करती हैं. इस बार सावन शिवरात्रि को 19 साल बाद विशेष संयोग पड़ रहा है. ऐसे में आज शिवरात्रि का व्रत करने से आपको दोगुना फल प्राप्त हो सकता है. तो चलिए जानते हैं शिवरात्रि पर कौन से शुभ योग पड़ रहे हैं व पूजा मुहूर्त, विधि और शिव आरती क्या होगी.

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 सावन शिवरात्रि शुभ योग 

सावन शिवरात्रि के खास दिन पर सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है. इस योग का समय आज सुबह 10:59 से लेकर 3 अगस्त सुबह 6 बजकर 2 मिनट तक रहने वाला है.

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सावन शिवरात्रि शुभ मुहूर्त

ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 4 बजकर 31 मिनट से 5 बजकर 15 मिनट तक रहेगा.
विजय मुहूर्त – दोपहर 2 बजकर 45 मिनट से 3 बजकर 37 मिनट तक रहेगा.
गोधूलि मुहूर्त – शाम 07 बजकर 08 मिनट से 08 बजकर 13 मिनट तक रहेगा.
निशिता मुहूर्त – रात 12 बजकर 12 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक रहेगा.
सर्वार्थ सिद्धि योग – 2 अगस्त 2024 सुबह 10 बजकर 59 मिनट से 3 अगस्त 2024 को सुबह 6 बजकर 2 मिनट तक रहेगा.

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सावन शिवरात्रि पूजा विधि

- शिवरात्रि की पूजा (Shivratri Puja) सामग्री में फूल, शहद, दही, धतूरा, बेलपत्र, रोली, दीपक, पूजा के बर्तन और साफ जल समेत गंगाजल को शामिल किया जाता है.

- पूजा करने के लिए भक्त सुबह मंदिर जाकर भगवान शिव के दर्शन करते हैं. शिवरात्रि पर भगवान शिव को कच्चे दूध और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है.

- इसके बाद एक-एक करके पूजा की सभी सामग्री भगवान पर अर्पित की जाती है. देसी घी का दीपक भगवान के समक्ष जलाया जाता है.

- शिव पूजा का समापन करने के लिए भगवान को भोग लगाने के बाद शिव आरती और शिव मंत्रों का जाप किया जाता है. 

शिव आरती

ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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