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This Article is From Jan 25, 2022

Kalashtami 2022: माघ माह में आज है कालाष्टमी, जानिए कालभैरव की पूजा विधि और महत्व

हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी व्रत रखा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की उपासना करने से व्यक्ति भयमुक्त हो जाता है और उसके जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती है. आइए जानते हैं कालभैरव की पूजा विधि और इस व्रत का महत्व.

Kalashtami 2022: माघ माह में आज है कालाष्टमी, जानिए कालभैरव की पूजा विधि और महत्व
Kalashtami 2022: जानिए कालाष्टमी व्रत का महत्व और पूजा का महत्व
नई दिल्ली:

काल भैरव (Kaal Bhairav) भगवान शिव (Lord Shiva) का रुद्र रूप की पूजा हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी (Krishna Paksha Ashtami) को की जाती है. इस साल की पहली कालाष्टमी का व्रत व पूजन 25 जनवरी यानि किया जाएगा. आज कालाष्टमी के दिन भगवान शिव के रौद्र रुप काल भैरव का पूजन करने का विधान है, जिन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है. काल भैरव को तंत्र मंत्र का देवता भी माना जाता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक वर्ष में कुल 12 कालाष्टमी व्रत पड़ते हैं.

इस समय माघ मास चल रहा है, जिसे काफी पवित्र महीना माना जाता है. कालाष्टमी को काला अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है और हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को इसे मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की उपासना करने से व्यक्ति भयमुक्त हो जाता है और उसके जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती है. आइए जानते हैं कालभैरव की पूजा विधि और इस व्रत का महत्व.

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कालाष्टमी व्रत का महत्व | Kalashtami Vrat Significance

काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है. कहते हैं कि कालाष्टमी के दिन काल भैरव का पूजन करने से नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं और तंत्र-मंत्र का भी असर नहीं होता. इसके साथ ही व्यक्ति भय मुक्त हो जाता है, उसे किसी भी प्रकार का डर भयभीत नहीं करता. माना जाता है कि काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव से ही हुई है, जिनकी उपासना करने से भक्त का हर संकट दूर हो जाता है. हिंदू शास्त्रों के मुताबिक, इस दिन श्रद्धापूर्वक पूजन और व्रत करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है.

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कालाष्टमी की पौराणिक मान्यता | Mythological Belief Of Kalashtami

भगवान शिव के दो रूप बताए जाते हैं एक बटुक ​भैरव और दूसरा काल भैरव. भगवान शिव के बटुक भैरव रूप काफी सौमय है. वहीं, काल भैरव रूप रौद्र है. मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन भगवान शिव ने पापियों का विनाश करने के लिए रौद्र रूप धारण किया था. बता दें कि मासिक कालाष्टमी को काल भैरव की पूजा रात्रि में की जाती हैं. वहीं, रात्रि में चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद ही यह व्रत पूरा माना जाता हैं. मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.

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कालभैरव पूजा विधि |Kaal Bhairav Puja Vidhi

  • इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें.
  • संभव हो तो किसी मंदिर में जाकर भगवान भैरव, भगवान शिव और मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करें.
  • भगवान भैरव की पूजा रात्रि के समय की जाती है, इसलिए पुनः रात्रि में भैरव भगवान का पूजन करें.
  • रात्रि में धूप, दीपक, काले तिल, उड़द और सरसों के तेल से विधिवत पूजन और आरती करें.
  • भगवान भैरव को भोग में गुलगुले, हलवा या जलेबी का भोग लगाना चाहिए.
  • इस दिन पूजा के समय भैरव चालीसा पढ़ने से भगवान भैरव प्रसन्न होते हैं, इसलिए पूजन के दौरान चालीसा का पाठ भी करना चाहिए.
  • पूजन के बाद भोग लगी चीजों में से कुछ काले कुत्तों को भी खिलाना चाहिए या फिर कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाएं, क्योंकि कुत्ते को भगवान भैरव का वाहन माना गया है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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