Jagannath rath yatra 2025 : भगवान जगन्नाथ की आंखें क्यों होती हैं इतनी बड़ी, जानिए यहां

आज हम आपको भगवान जगन्नाथ की आंखों के पीछे का रहस्य क्या है, इसके बारे में विस्तार से बताएंगे...

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Puri Rath Yatra significance :भगवान की आंखों से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं.

Puri Rath Yatra : हिन्दू धर्म में हर देवी-देवता का अलग स्वरूप है, जो उनके गुणों और शक्तियों को दर्शाता है. इसलिए हर भगवान की छवि एक दूसरे से अलग होती है. जैसे भगवान विष्णु का अवतार प्रभु जगन्नाथ की तस्वीर या मूर्ति आपने देखी होगी, तो गौर किया होगा कि भगवान जगन्नाथ की आंखें बहुत ज्यादा बड़ी हैं और उनके हाथ पैर नहीं हैं, जो आपके दिमाग में जरूर प्रश्न खड़े करते होंगे. ऐसे में आज हम आपको भगवान जगन्नाथ की आंखों के पीछे का रहस्य क्या है, इसके बारे में विस्तार से बताएंगे...

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भगवान जगन्नाथ के आंख से जुड़ी पौराणिक कथा

भगवान की आंखों से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें से एक है कि जब भगवान जगन्नाथ राजा इंद्रद्युम्न के राज्य में गए थे, तो वहां के लोगों की भगवान की भव्यता देखकर आंखें आश्चर्य से बड़ी बड़ी हो गईं. जिसके बाद भगवान जगन्नाथ ने उनकी भक्ति को स्वीकार करते हुए अपनी आंखें भी बड़ी कर ली. 

इसके अलावा भगवान की बड़ी-बड़ी आंखों को लेकर यह भी लोगों का मानना है कि ऐसा जगन्नाथ मंदिर के मूर्तिकारों और कारीगरों ने भक्तों के बीच रहस्य और भक्ति की भावना बढ़ाने के लिए उनकी आंखों को बड़ा आकार दिया है.

एक और कथा प्रचलित है कि भगवान जगन्नाथ की आंखें इसलिए भी इतनी बड़ी हैं, ताकि प्रभु अपने भक्तों पर एक समान दृष्टि बनाए रखें. 

वहीं, भगवान जगन्नाथ, बालभद्र औ देवी सुभद्रा की मूर्तियों के हाथ-पैर न होने के पीछे की कथा है-  राजा इंद्रद्युम्न के कहने पर भगवान् जगन्नाथ की मूर्तियों का निर्माण खुद विश्वकर्मा जी कर रहे थे, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी थी कि जब तक मूर्तियों का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो जाता है कोई भी कमरे में प्रवेश नहीं करेगा. उनकी शर्त को राजा इंद्रद्युम्न मान गए और मूर्ति के निर्माण कार्य शुरू हो गया. कुछ दिनों तक कमरे से मूर्ति बनाने की आवाज आती रही, लेकिन कुछ दिन बाद आवाज आनी बंद हो गई. ऐसे में राजा इंद्रद्युम्न को लगा कि मूर्ति का निर्माण कार्य पूरा हो गया है और वो कमरे में प्रवेश कर गए. जिसके बाद विश्वकर्मा जी क्रोधित हो गए और उन मूर्तियों को अधूरा ही छोड़कर चले गए. इसके बाद मूर्तियों को बिना हाथ-पैर के ही मंदिर में स्थापित कर दिया गया.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)


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