Alimony Explainer: पति और पत्नी के बीच जब भी किसी बात को लेकर विवाद होता है और ये मामला कोर्ट पहुंचता है तो दोनों के अधिकारों को लेकर चर्चा होती है, कानून के तहत पति और पत्नी के अधिकार तय किए गए हैं. अक्सर जब कोर्ट ऐसे मामलों को लेकर फैसला सुनाते हैं, तब कुछ लोग हैरान रह जाते हैं, क्योंकि उन्हें पता नहीं होता है कि असल में कानून ऐसे मामलों में क्या कहता है. अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसी ही एक मामले में कहा है कि कमाने और खुद में सक्षम महिला अपने पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है. इसीलिए आज हम आपको गुजारा-भत्ता और पति-पत्नी के तमाम कानूनी अधिकारों की जानकारी एक ही जगह देंगे.
क्या होती है एलिमनी?
सबसे पहले ये समझ लेते हैं कि एलिमनी क्या होती है. ये एक तरह का गुजारा भत्ता होता है, जिसे पति या फिर पत्नी को देना होता है. आमतौर पर पति ही तलाक के बाद या इससे पहले एलिमनी देते हैं, कुछ मामलों में पत्नी को भी कोर्ट एलिमनी देने का आदेश जारी कर सकता है. ये एक तरह की आर्थिक मदद होती है. तलाक के बाद दी जाने वाली एकमुश्त राशि को एलिमनी कहा जाता है, वहीं हर महीने दिए जाने वाले भत्ते को मेंटेनेंस के तौर पर गिना जाता है. गुजारा भत्ता मांगने के लिए कुछ चीजें जरूरी होती हैं, बिना इनके ये नहीं मांगा जा सकता है.
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कब मांग सकते हैं एलिमनी?
- पति-पत्नी लंबे वक्त से अलग रह रहे हों और पति अपनी पत्नी को जरूरी खर्चों के लिए पैसे नहीं देता हो.
- पत्नी पैसे नहीं कमा रही हो, या फिर ऐसी नौकरी करती हो जिससे उसके खर्चे पूरे नहीं हो रहे हों.
- बच्चों की देखभाल और उनकी पढ़ाई के लिए भी एलिमनी मांगी जा सकती है.
कैसे दे सकते हैं एलिमनी?
- एलिमनी की एकमुश्त रकम भी दी जा सकती है, जिसे कोर्ट तय करता है.
- हर महीने एक रकम तय की जा सकती है, जो पति अपनी पत्नी को देता है. इसे मेंटेनेंस की कैटेगरी में गिना जाता है.
- एलिमनी की रकम किस्तों में भी दी जा सकती है, दूसरे पक्ष की सहमति के बाद कोर्ट इस पर आखिरी फैसला करता है.
पति और पत्नी के कानूनी अधिकारों को लेकर हमने सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट आरुषी कुलश्रेष्ठ से बातचीत की, जिसमें उन्होंने बताया कि एक पत्नी के क्या-क्या अधिकार होते हैं और किन मामलों में पति भी पत्नी से गुजारा भत्ता मांग सकते हैं.
क्या हैं पत्नी के अधिकार?
- हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पत्नी अपने पति की अर्जित की गई संपत्ति और उसकी सैलरी से एलिमनी या गुजारा भत्ता मांग सकती है.
- पत्नी का अर्जित किया गया धन या फिर मायके से मिले गहने आदि पर उसी का अधिकार होता है. ये स्त्रीधन के तहत आता है.
- पति अगर कमाई नहीं भी करता है, तब भी घरेलू पत्नी उससे गुजारा भत्ता मांग सकती है.
- अगर तलाक न भी हो, तब भी पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए गुजारा-भत्ता मांग सकती है, यदि वह खुद अपना खर्च नहीं चला पा रही हो.
- गुजारा-भत्ता तय करते समय अदालत पति की आय, संपत्ति, जीवन-स्तर और पत्नी की उचित जरूरतों को ध्यान में रखती है.
- यदि पति गुजारा-भत्ता नहीं देता, तो पत्नी उसकी वसूली के लिए अदालत में आवेदन कर सकती है और पति की संपत्ति कुर्क कराई जा सकती है.
- महिलाओं को फ्री लीगल ऐड यानी मुफ्त में वकील की सुविधा भी मिल सकती है.
क्या हैं पतियों के अधिकार?
- हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 और 25 के तहत, अगर पति आर्थिक रूप से पत्नी पर निर्भर है, तो वह भी गुजारा-भत्ता मांग सकता है.
- पति जरूरत से ज्यादा या अनुचित गुजारा-भत्ता मांग का विरोध कर सकता है, इसके लिए उसे साबित करना होगा कि पत्नी की अपनी आय, योग्यता या कमाने की क्षमता ज्यादा है.
- अगर पत्नी अपनी कमाई से खुद का खर्च चला सकती है, तो पति गुजारा-भत्ता कम कराने या खारिज कराने की मांग कर सकता है.
- अगर कोई पत्नी व्यभिचार या गंभीर गलत आचरण की दोषी पाई जाती है, तो अदालत गुजारा-भत्ता देने से मना कर सकती है या उसकी राशि कम कर सकती है.
- परिस्थितियों में बदलाव होने पर (जैसे पत्नी का दोबारा विवाह हो जाना, नौकरी लग जाना या आय बढ़ जाना), पति गुजारा-भत्ता में बदलाव या उसे खत्म करने के लिए अदालत में आवेदन कर सकता है.
पत्नी किस मामले में नहीं मांग सकती एलिमनी?
हमने शुरुआत में इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी का जिक्र किया था, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि सक्षम महिला को गुजारा भत्ता पाने का अधिकार नहीं है. इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट की तरफ से भी ऐसे ही फैसले दिए जा चुके हैं. हालांकि ये हर केस में लागू नहीं होता है. हर केस में ये जरूरी नहीं है कि पत्नी अगर नौकरी कर रही हो तो उसे गुजारा भत्ता मांगने का हक नहीं है.
आमतौर पर ऐसा उन मामलों में होता है, जब पत्नी किसी अच्छी सरकारी या फिर कंपनी की मैनेजमेंट पोस्ट पर होती है, वहीं पति उसके बराबर ही कमाता हो. साथ ही इन मामलों में शादी को ज्यादा वक्त भी नहीं होता और कपल के बच्चे नहीं होते हैं. क्योंकि पत्नी किसी भी तरह के पति पर डिपेंड नहीं होती है, ऐसे में कोर्ट एलिमनी मांगने पर इस तरह के फैसले सुनाते हैं.
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