
Best Hindi Poem: अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ, ये डायलॉग आपने अमिताभ बच्चन की फिल्म अग्निपथ में सुना होगा. लेकिन शायद आपको पता हो, अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन की फेमस कविता है. अग्निपथ हरिवंश राय बच्चन की एक बेहद खूबसूरत रचना है. हालांकि उन्होंने कई खूबसूरत कविताएं लिखी हैं जो आज भी खूब पढ़ी जाती है, लेकिन इस कविता को लोग इसलिए भी पसंद करते हैं, क्योंकि इसे पढ़कर आप अलग जोश से भरे हुए महसूस करेंगे. पढ़िए हरिवंश राय बच्चन की फेमस और सुंदर कविता अग्निपथ.
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
वृक्ष हों भलें खड़े,
हों घने, हों बड़ें,
एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी!—कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
यह महान दृश्य है—
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
कि तुम मुझे पुकार लो!
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!
एक
ज़मीन है न बोलती
न आसमान बोलता,
जहान देखकर मुझे
नहीं ज़बान खोलता,
नहीं जगह कहीं जहाँ
न अजनबी गिना गया,
कहाँ-कहाँ न फिर चुका
दिमाग़-दिल टटोलता,
कहाँ मनुष्य है कि जो
उमीद छोड़कर जिया,
इसीलिए अड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!
दो
तिमिर-समुद्र कर सकी
न पार नेत्र की तरी,
विनष्ट स्वप्न से लदी,
विषाद याद से भरी,
न कूल भूमि का मिला,
न कोर भोर की मिली,
न कट सकी, न घट सकी
विरह-घिरी विभावरी,
कहाँ मनुष्य है जिसे
कमी ख़ली न प्यार की,
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे दुलार लो!
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!
तीन
उजाड़ से लगा चुका
उमीद मैं बहार की,
निदाघ से उमीद की,
बसंत के बयार की,
मरुस्थली मरीचिका
सुधामयी मुझे लगी,
अंगार से लगा चुका
उमीद मैं तुषार की,
कहाँ मनुष्य है जिसे
न भूल शूल-सी गड़ी,
इसीलिए खड़ा रहा
कि भूल तुम सुधार लो!
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो!
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