चीख पुकार और एक पिता की बेबसी... किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि ऐसे भी मौत का सकती है. मंगलवार की 'काली सुबह' दिल्ली के द्वारका सेक्टर-13 स्थित शबद अपार्टमेंट रोज की तरह ही जागा था. लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि कुछ घंटों बाद वही इमारत चीख़ों, अफरातफरी और लाचारी का मंजर बन जाएगी.
सुबह करीब 10 बजे, नौवीं मंजिल से उठता धुआं जैसे किसी अनहोनी का इशारा कर रहा था. कुछ ही मिनटों में आग ने एक फ्लैट को निगला और फिर लपटें ऊपर की मंजिलों तक पहुंच गईं. लोगों ने जान बचाने की कोशिश की. लेकिन आग तेज थी और दमकल की गाड़ियां धीरे. हालांकि, काफी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया गया.
एक पिता की आखिरी कोशिश… जो नाकाम रही
9वीं मंजिल पर फंसे थे यश यादव. 35 साल का ये शख्स, अपनी 10 साल की बेटी और बेटे के साथ बालकनी में खड़ा था. सामने लपटें थीं, पीछे धुआं, और चारों ओर चीखें. कोई सीढ़ी नहीं, कोई रास्ता नहीं, सिर्फ मौत का इंतजार. जब कोई उम्मीद नहीं बची, तो उन्होंने एक-एक कर दोनों बच्चों को नीचे धकेला. फिर खुद भी छलांग लगा दी.
नीचे खड़ी भीड़ चीख उठी. लोगों ने उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया. बेटा और बेटी IGI अस्पताल ले जाए गए. यश को पास के आकाश अस्पताल. लेकिन तीनों को बचाया नहीं जा सका.
'मैंने अपनी आंखों से देखा उन्हें गिरते हुए…'
वहां मौजूद अमित कुमार ने NDTV से बताया कि जब ऊपर देखा तो आग तेज थी. लोगों ने मदद के लिए चिल्लाया, लेकिन दमकल को आने में एक घंटे से ज़्यादा लग गया. यश छज्जे पर बैठे थे. लेकिन जब हिम्मत टूट गई तो. एक-एक कर तीनों कूद गए. कोई कुछ नहीं कर सका.
एक अधूरी बची जिंदगी
यश की पत्नी और बड़ा बेटा किसी तरह आग से बच गए. दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन देर शाम उन्हें छुट्टी दे दी गई. इस बीच, यश और उनके दोनों बच्चों के शवों को पोस्टमॉर्टेम के लिए दीनदयाल अस्पताल भेजा गया है. कल उन्हें उनके पैतृक गांव शाहबाजपुर, एटा (उत्तर प्रदेश) ले जाया जाएगा. यश पिछले दो साल से परिवार के साथ दिल्ली में रह रहे थे और फ्लेक्स बोर्ड का काम करते थे.
'एक मां की आंखें अब कभी पूरी नहीं मुस्कुराएंगी...'
इस हादसे ने सिर्फ एक परिवार को नहीं तोड़ा, पूरे इलाके को हिला दिया. लोगों का गुस्सा और दर्द साफ झलक रहा. चश्मदीद ने बताया कि अगर फायर ब्रिगेड वक्त पर आती, तो शायद तीनों बच जाते. लोग चिल्ला रहे थे, मदद मांग रहे थे. लेकिन कई लोग वीडियो बनाने में लगे थे.
'हम तो पहले से परेशान थे इस सोसायटी से...'
वहां के एक निवासी ने बताया कि मेंटेनेंस के नाम पर बस पैसे लिए जाते हैं. सेफ्टी इक्विपमेंट काम नहीं करते. अलार्म बजा ही नहीं. आपको यहां घूमने से ही अंदाजा लग जाएगा, किस हाल में जी रहे हैं. वहीं, जब NDTV की टीम ने शबद अपार्टमेंट की RWA से जवाब मांगने की कोशिश की, तो ज़िम्मेदारी लेने की बजाय सदस्य कैमरे से बचते नजर आए.
कभी शॉर्ट सर्किट, कभी गैस लीक, तो कभी रख-रखाव में लापरवाही. दिल्ली में आग लगने की घटनाएं अब रोज की खबर हो गई हैं. आग सिर्फ दीवारें नहीं जलाती. वो रिश्तों को जला देती है. बच्चों की हंसी, एक मां की गोद, एक पिता की छांव. सब कुछ राख कर जाती है. सवाल ये है कि क्या हम अगली लपटों का इंतज़ार करेंगे? या अब भी कुछ बदलने की उम्मीद करेंगे?