Sachin Tendulkar Birthday: 'ये शतक नहीं था आसां', क्यों इस खिलाड़ी के अब तक कर्ज़दार हैं मास्टर- ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर?

Sachin Tendulkar Birthday: साल 1989 में सचिन तेंदुलकर ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ यादगार डेब्यू किया था लेकिन इससे ठीक पहले उन्होंने ईरानी ट्रॉफी में एक शतक भी जमाया था. दिलचस्प बात ये है कि सचिन उस शतक को ख़ुद पर एक साथी खिलाड़ी का कर्ज़ मानते हैं. साथ ही ये उनके दिल के बहुत करीब भी है.

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नई दिल्ली:

Sachin Tendulkar Birthday: सचिन तेंदुलकर आज अपना 50वां जन्मदिन मना रहे हैं. उनके चाहने वाले उनके जन्मदिन को अपने-अपने अंदाज़ में सेलिब्रेट करते हैं. 24 अप्रैल 1973 को सचिन का जन्म हुआ और 24 साल तक ही उन्होंने इंटरनेशनल क्रिकेट भी खेला. इतना ही नहीं उनके बेटे अर्जुन तेंदुलकर ने भी हाल ही में 24 नंबर की जर्सी पहनकर ही मुंबई इंडियंस की तरफ से IPL डेब्यू किया. अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में सचिन के नाम 34357 रन और 100 शतक दर्ज हैं. ये रिकॉर्ड अपने नाम कर सचिन ने एक बात तो पक्की कर दी है कि भविष्य में इस उपलब्धि तक पहुंच पाना किसी भी बल्लेबाज़ के लिए आसान तो कतई नहीं होगा.

खैर दूसरी तरफ अगर देखा जाए तो ये कुछ ऐसे आंकड़े हैं जो हर किसी को कहीं ना कहीं मिल ही जाते हैं. लेकिन फैंस की दिलचस्पी होती है इनसाइड स्टोरीज़ में. तो आज के इस स्पेशल आर्टिकल में हम आपको एक ऐसी ही स्टोरी बताने जा रहे हैं जो शायद ही आपने पहले सुनी हो. 

पाकिस्तान के खिलाफ हुआ था ड्रीम डेब्यू
ये बात है साल 1989 की जब सचिन मात्र 16 साल के थे और साल के अंत में यानि नवंबर- दिसंबर में पाकिस्तान के दौरे पर जाने वाली भारतीय टीम में उनका चयन हो गया था. पाकिस्तान के खिलाफ़ सचिन ने न सिर्फ यादगार डेब्यू किया बल्कि उस समय के ख़तरनाक पाकिस्तानी तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण से घबराए भी और बाद में उनकी जमकर ख़बर भी ली. लेकिन ये स्टोरी सचिन के पाकिस्तान दौरे की नहीं है. बल्कि ये स्टोरी है पाक दौरे से ठीक पहले खेले गए ईरानी ट्रॉफी के फाइनल की. जिसमें सचिन ने शतक जमाया था. लेकिन मास्टर ब्लास्टर अपने उस शतक का क्रेडिट खुद नहीं लेते हैं.

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इस शतक की बात हम यहां पर इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इसके पीछे एक ऐसी कहानी छिपी है जो सचिन के दिल के भी बहुत करीब है.

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क्यों ख़ास है ये शतक?
इस बात का ज़िक्र सचिन ख़ुद अपनी ऑटोबायोग्राफी 'प्लेइंग ईट माय वे ' में करते हैं और बताते हैं कि "साल 1989 के ईरानी ट्रॉफी फाइनल में मैं रेस्ट ऑफ इंडिया की तरफ से दिल्ली के ख़िलाफ़ खेल रहा था. पहली पारी में मैंने 39 रन बनाए और मनिंदर सिंह ने मुझे बोल्ड कर दिया. जो उस वक़्त भारत के बाएं हाथ के शानदार स्पिनर थे. मगर यह निराशा जल्द ही हवा हो गई जब उसी शाम मुझे पता चला कि मेरा नाम पाकिस्तान के दौरे पर जाने वाली भारतीय टीम में शामिल कर लिया गया है.  इस बात से मैं इतना ख़ुश था कि मैंने ईरानी ट्रॉफी के मैच की दूसरी पारी में कुछ कर दिखाने की ठान ली. "

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"मेरे पिताजी और अजीत भाई भी वो मैच देखने आए थे. वासु परांजपे सर को यकीन था कि मैं इस मैच में कमाल करने वाला हूं. उनकी भविष्यवाणी सच भी हुई और मैंने उस मैच में शतक लगा दिया. लेकिन अगर पंजाब के बल्लेबाज़ गुरशरण सिंह (जो बाद में 1990 में भारत की तरफ से न्यूज़ीलैंड के खिलाफ एक टेस्ट मैच खेले) नहीं होते तो वो शतक संभव नहीं था."

उंगली में था फ्रैक्चर, फिर भी सचिन के लिए खेले
सचिन आगे बताते हैं कि "उस मैच में दिल्ली के तेज़ गेंदबाज़ अतुल वासन की गेंद पर बल्लेबाज़ी करते हुए गुरशरण (Gursharan Singh) की उंगली में फ्रैक्चर हो गया था. वे ड्रेसिंग रूम में बैठे थे और उनके मैच में आगे कुछ कर पाने की कोई संभावना नहीं थी.  मैं अच्छी बल्लेबाज़ी कर रहा था और हमारे 9 विकेट गिरने तक 86 रन बनाकर नॉट आउट था.  मैं जानता था कि गुरशरण बल्लेबाज़ी नहीं कर सकते.  इसलिए मैंने सोचा कि हमारी पारी ख़त्म हो गई है और मैं ड्रेसिंग रूम की तरफ बढ़ने लगा,  तभी मैंने गुरशरण को मैदान में आते देखा, वे एक हाथ से बल्लेबाज़ी करने को तैयार थे और मैं बिल्कुल हैरान था."

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अब तो तेरा हंड्रेड करके ही जाएंगे
सचिन अपनी ऑटोबायोग्राफी में आगे लिखते हैं कि "ये बात मुझे बाद में पता चली कि राष्ट्रीय चयन समिति के चेयरमैन राज सिंह डूंगरपुर ने गुरशरण से कहा था कि क्या वे मैदान में जाकर मेरा शतक बनाने में मदद कर सकते हैं, और बहादुर गुरशरण इस साहस भरे काम के लिए तैयार भी हो गए. वास्तव में मुझे बहुत शर्म आई की मेरी वजह से उन्हें इतने गंभीर दर्द में खेलने आना पड़ा था.  मैंने उनसे कहा कि अगर हम पारी ख़त्म करने की घोषणा कर दें तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी. लेकिन ज़बरदस्त साहस के साथ उन्होंने जवाब दिया कि "अब तो तेरा हंड्रेड करके ही जाएंगे." वह अपने काम में दृढ़ता से जुटे रहे और मुझे यह कहते हुए ख़ुशी है कि उनकी बहादुरी का सम्मान विरोधी गेंदबाज़ों ने भी किया, जिन्होंने एक भी बाउंसर नहीं डाली. ये एक ऐसा उपकार था जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगा. "

"यह गुरशरण के उल्लेखनीय साहस की ही मिसाल थी कि मैं ईरानी ट्रॉफी में शतक जमा पाया. लेकिन मैंने भी उस कर्ज़ को उतारने की कोशिश करते हुए वह सब किया, जो मैं अप्रैल 2005 में दिल्ली में आयोजित उनके बेनिफिट मैच में कर सकता था. मुझे ख़ुशी है कि मैंने अपना वादा पूरा किया." 

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