भारत की पहली महिला शिक्षिका और समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की आज जयंती (Savitribai Phule Jayanti) है. सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र स्थित सतारा के गांव नायगांव में हुआ था. सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं. उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने और उनके अधिकारों की लड़ाई में अहम भूमिरा निभाई थी. आज से करीब डेढ़ सौ साल पहले फुले ने महिलाओं को भी पुरुषों की तरह ही सामान अधिकार दिलाने की बात की थी. फुले ने सिर्फ महिला अधिकार पर ही काम नहीं किया, उन्होंने कन्या शिशु हत्या को रोकने के लिए भी खास तौर पर काम किया. उन्होंने न सिर्फ अभियान चलाया बल्कि नवजात कन्या शिशु के लिए आश्रम तक खोला. ताकि उन्हें बचाया जा सके.
सावित्रीबाई फुले बनीं थी देश के पहले बालिका विद्यालय की प्रिंसिपल
सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) की शादी 9 साल की उम्र में ही ज्योतिबा फुले से हो गई थी. उनके पति ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) समाजसेवी और लेखक थे. ज्योतिबा फुले ने स्त्रियों की दशा सुधारने और समाज में उन्हें पहचान दिलाने के लिए उन्होंने 1854 में एक स्कूल खोला. यह देश का पहला ऐसा स्कूल था जिसे लड़कियों के लिए खोला गया था. लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया.
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सावित्रीबाई (Savitribai) फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल बनीं. कुछ लोग आरंभ से ही उनके काम में बाधा बन गए. लेकिन ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले का हौसला डगमगाया नहीं और उन्होंने लड़कियों के तीन-तीन स्कूल खोल दिए.
सावित्रीबाई क्यों एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं ?
जब सावित्रीबाई (Savitribai Phule) कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे. सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं.
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सावित्रीबाई फुले ने लोगों की सेवा करते हुए दुनिया को कहा था अलविदा
कहा जाता है कि फुले दंपति ने जिस यशवंतराव को गोद लिया था वे एक ब्राह्मण विधवा के बेटे थे. उन्होंने अपने बेटे के साथ मिलकर अस्पताल भी खोला था.इसी अस्पताल में प्लेग महामारी के दौरान सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं. एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण उनको भी यह बीमारी हो गई, जिसके कारण उनकी 10 मार्च 1897 को मौत हो गई.
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