इंदौर:
दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों की फेहरिस्त में भारत के एक भी विश्वविद्यालय के नहीं होने को लेकर देश में जारी बहस के बीच राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (नैक) ने कहा कि उच्च शिक्षा संस्थानों की वैश्विक रेटिंग तय करने वाली एजेंसियों को भारत जैसे विकासशील मुल्कों के जमीनी हालात के मुताबिक अपने पैमानों में बदलाव करने चाहिये.
नैक के निदेशक धीरेन्द्रपाल सिंह ने कहा, ‘‘विश्वविद्यालयों की वैश्विक रैंकिंग के पैमाने भारत जैसे विकासशील देशों के जमीनी हालात से काफी अलग हैं. भारत और हमारे जैसे अन्य विकासशील देशों को ऐसी रैकिंग देने वाली एजेंसियों से संवाद बढ़ाने की जरूरत है, ताकि इन पैमानों में विकासशील देशों के हालात के मुताबिक बदलाव हो सकें. इन पैमानों में वैश्विक स्तर पर एकरूपता स्थापित किये जाने की आवश्यकता है.’’ सिंह ने मिसाल देते हुए कहा, ‘‘अमेरिका के उच्चशिक्षा क्षेत्र में 147 देशों के लोग हैं, जबकि भारत में वैश्विक फैकल्टी की नियुक्ति में नियम-कायदों की अड़चनें हैं.’’ उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों की मौजूदा वैश्विक रैंकिंग पद्धति में इसके बड़े अंक तय हैं कि किसी विश्वविद्यालय में कितने देशों के विद्यार्थी पढ़ते हैं, उसने कितने नोबल पुरस्कार प्राप्त विद्वानों को खुद से जोड़ रखा है और उसके नाम कितने पेटेंट दर्ज हैं.
सिंह ने कहा, ‘‘इन पैमानों पर दूसरे मुल्कों से आगे निकलने के लिये भारतीय विश्वविद्यालयों को और प्रयास करने की जरूरत है. इसके लिये हमारे विश्वविद्यालयों को अपने परिसरों में वैश्विक सहभागिता पर ज्यादा जोर देना होगा.’’
नैक के निदेशक धीरेन्द्रपाल सिंह ने बताया कि देश के 744 विश्वविद्यालयों में से अब तक करीब 300 ही नैक से जुड़े हैं, वहीं देश के 40,000 से ज्यादा महाविद्यालयों में से लगभग 7,000 ही नैक से सम्बद्ध हैं. सिंह ने कहा, ‘‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) इस बारे में विचार कर रहा है कि शिक्षा की गुणवत्ता के बारे में नैक से प्रमाणपत्र लेने की अनिवार्यता के बावजूद देश के सभी विश्वविद्यालय और महाविद्यालय नैक से क्यों नहीं जुड़ रहे हैं. वैसे हमने अपने स्तर पर पहल करते हुए प्रदेश सरकारों से गुजारिश की है कि वे अपने विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को नैक से जुड़ने के लिये प्रोत्साहित करें.’’ नैक निदेशक ने उम्मीद जतायी कि देश में प्रस्तावित नयी शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता के मूल्यांकन और प्रत्यायन पर ज्यादा जोर दिया जायेगा.
नैक के निदेशक धीरेन्द्रपाल सिंह ने कहा, ‘‘विश्वविद्यालयों की वैश्विक रैंकिंग के पैमाने भारत जैसे विकासशील देशों के जमीनी हालात से काफी अलग हैं. भारत और हमारे जैसे अन्य विकासशील देशों को ऐसी रैकिंग देने वाली एजेंसियों से संवाद बढ़ाने की जरूरत है, ताकि इन पैमानों में विकासशील देशों के हालात के मुताबिक बदलाव हो सकें. इन पैमानों में वैश्विक स्तर पर एकरूपता स्थापित किये जाने की आवश्यकता है.’’ सिंह ने मिसाल देते हुए कहा, ‘‘अमेरिका के उच्चशिक्षा क्षेत्र में 147 देशों के लोग हैं, जबकि भारत में वैश्विक फैकल्टी की नियुक्ति में नियम-कायदों की अड़चनें हैं.’’ उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों की मौजूदा वैश्विक रैंकिंग पद्धति में इसके बड़े अंक तय हैं कि किसी विश्वविद्यालय में कितने देशों के विद्यार्थी पढ़ते हैं, उसने कितने नोबल पुरस्कार प्राप्त विद्वानों को खुद से जोड़ रखा है और उसके नाम कितने पेटेंट दर्ज हैं.
सिंह ने कहा, ‘‘इन पैमानों पर दूसरे मुल्कों से आगे निकलने के लिये भारतीय विश्वविद्यालयों को और प्रयास करने की जरूरत है. इसके लिये हमारे विश्वविद्यालयों को अपने परिसरों में वैश्विक सहभागिता पर ज्यादा जोर देना होगा.’’
नैक के निदेशक धीरेन्द्रपाल सिंह ने बताया कि देश के 744 विश्वविद्यालयों में से अब तक करीब 300 ही नैक से जुड़े हैं, वहीं देश के 40,000 से ज्यादा महाविद्यालयों में से लगभग 7,000 ही नैक से सम्बद्ध हैं. सिंह ने कहा, ‘‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) इस बारे में विचार कर रहा है कि शिक्षा की गुणवत्ता के बारे में नैक से प्रमाणपत्र लेने की अनिवार्यता के बावजूद देश के सभी विश्वविद्यालय और महाविद्यालय नैक से क्यों नहीं जुड़ रहे हैं. वैसे हमने अपने स्तर पर पहल करते हुए प्रदेश सरकारों से गुजारिश की है कि वे अपने विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को नैक से जुड़ने के लिये प्रोत्साहित करें.’’ नैक निदेशक ने उम्मीद जतायी कि देश में प्रस्तावित नयी शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता के मूल्यांकन और प्रत्यायन पर ज्यादा जोर दिया जायेगा.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं