सुभाष चंद्र बोस की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
भारत की आजादी का सपना देखने और उसे साकार करने की कोशिश करने वालों में सुभाष चंद्र बोस का नाम सबसे पहले आता है. सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में हुआ था. वह बचपन से ही पढ़ने में तेज थे और चाहते थे कि देश की आजादी के लिए कुछ किया जाए. यही वजह थी कि उन्होंने राजनीति में शामिल होने का फैसला किया. वह 24 साल की उम्र में इंडियन नेशनल कांग्रेस से जुडे़. राजनीति में कुछ वर्ष सक्रिय रहने के बाद उन्होंने महात्मा गांधी से अलग अपना एक दल बनाया. इस दल में उन्होंने खास तौर पर युवाओं को शामिल किया. अपनी सोच और जिदंगी जीने के तरीके की वजह से वह हमेशा से ही युवाओं के बीच खासे प्रचलित रहे.आज सुभाष चंद्र बोस की 121वीं जयंती के मौके पर हम आपको उनसे जुड़ी 9 अनोखी बाते बताने जा रहे हैं. जिन्हें जानकर आप भी चौंक जाएंगे.
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नजरबंदी के दौरान जब चुपके से जर्मनी पहुंचे बोस
सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश सरकार को अपनी योजनाओं से कई बार चकमा दिया था. एक ऐसा ही वाक्या उनके नजरबंद रहने के दौरान सामने आया. जब वह सभी को चकमा देकर काबुल के रास्ते जर्मनी पहुंच गए. वहां उन्होंने हिटलर से मुलाकात की. खास बात यह थी कि बोस ने जर्मनी तक पहुंचने के लिए कोलकाता से गोमो तक कार से यात्रा की, इसके बाद वह पेशावर तक ट्रेन से पहुंचे. फिर वह वहां से काबुल पहुंचे. वहां कुछ दिन रहने के बाद वह जर्मनी के लिए निकले.
जब कांग्रेस की आजादी का किया विरोध
सुभाष चंद्र बोस शुरू से ही अपने मुखर व्यवहार के लिए जाने जाते रहे हैं. यही वजह थी उन्होंने सबसे पहले कांग्रेस की चरणबद्ध आजादी के तरीके का विरोध किया. उन्होंने न सिर्फ इसका विरोध किया बल्कि पूरे देश को एक साथ आजाद कराने की बात भी रखी. बोस ने इसके लिए ब्रिटिश सरकार से लोहा लेने का एलान किया. इतने बड़े स्तर पर ऐसा कहने वाले वह पहले शख्स थे.
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भगवत गीता से मिलती थी प्रेरणा
यह बहुत कम लोगों को पता है कि सुभाष चंद्र बोस को ब्रिटिश सरकार लोहा लेने और उन्हें देश से बाहर करने की प्रेरणा भगवत गीता से मिलती थी. वह जब भी उदास या अकेले होते थे तो भगवत गीता का पाठ जरूर करते थे. वह स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व और उनकी बातों से भी खासे प्रभावित थे.
गांधी के विचारों से हमेशा असहमत थे
सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के विचारों से हमेशा ही असहमत रहने वालों में से थे. उनका मानना था कि ब्रिटिश सरकार को भारत से बाहर करने के लिए गांधी की अहिंसा की नीति किसी काम की नहीं है और इससे उन्हें आजादी हासिल नहीं होगी. उन्होंने कई बार इस बात का खुले तौर पर विरोध भी किया.
देश से बाहर तैयार की अपनी सेना
देश को आजाद कराने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी और बाद मं पूर्वी एशिया में रहते हुए अपनी अलग सेना बनाई. जिसे बाद में उन्होंने आजाद हिंद फौज का नाम दिया. ज्यादा से लोगों को इस आंदोलन से जोड़ने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद रेडियो स्टेशन की भी स्थापना की. ताकि वह इसके माध्यम से जर्मनी में रह रहे भारतीयों को अपनी सेना में शामिल कर सकें.
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महात्मा गांधी को पहली बार बोस ने कहा था राष्ट्रपिता
सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता बुलाने वाले सबसे पहले शख्स थे. यह बहुत कम लोगों को ही पता है कि उन्होंने महात्मा गांधी से कुछ मुलाकात के बाद ही उन्हें यह उपाधि दी. इसके बाद अन्य लोग भी गांधी जी को राष्ट्रपिता बोलने लगे. हालांकि कुछ समय बाद वह महात्मा गांधी और उनकी पार्टी से अलग हो गए. बोस ने रंगून के रेडियो चैनल से महात्मा गांधी को संबोधित करते हुए पहली बार राष्ट्रपिता कहा था.
मौत आज भी बनी हुई है रहस्य
सुभाष चंद्र बोस की मौत आज तक एक रहस्य की तरह ही है. भारत सरकार ने उनसे जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए कई बार अलग-अलग देश की सरकार से संपर्क किया लेकिन उनके बारे कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई. सुभाष चंद्र बोस की मौत को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित है लेकिन उनकी मौत को लेकर अभी तक कोई साक्ष्य किसी के पास नहीं हैं.
यह भी पढ़ें: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ऐतिहासिक कार की मरम्मत की गई, राष्ट्रपति करेंगे रवाना
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा, का दिया नारा
आज हिंद फौज की स्थापना करने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने युवाओं को अपनी सेना में शामिल करने की योजना बनाई. इसके लिए उन्हें देश के युवाओं से अनुरोध किया कि वह उनकी फौज में शामिल होकर उनका साथ दें. इसी समय उन्होंने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा दिया था. बोस चाहते थे कि वह अपनी फौज की मदद से भारत को ब्रिटिश सरकार से आजाद कराएं.
अपनी वर्दी से था सबसे ज्यादा प्यार
सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज की स्थापन के बाद से ही वर्दी पहनने लगे थे. उन्हें अपनी वर्दी से सबसे ज्यादा प्यार था. कहा जाता है कि वह युवाओं में जोश भरने के लिए ऐसा करते थे.
VIDEO: सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी फाइलें हुई सार्वजनिक
आजाद हिंद फौज की स्थापना के बाद से उनकी जितनी भी तस्वीरें सामने आई उनमें उन्होंने वर्दी पहनी हुई है. उनका मानना था कि किसी चीज को पाने के लिए उसके साथ जुड़ना बहुत जरूरी है.
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नजरबंदी के दौरान जब चुपके से जर्मनी पहुंचे बोस
सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश सरकार को अपनी योजनाओं से कई बार चकमा दिया था. एक ऐसा ही वाक्या उनके नजरबंद रहने के दौरान सामने आया. जब वह सभी को चकमा देकर काबुल के रास्ते जर्मनी पहुंच गए. वहां उन्होंने हिटलर से मुलाकात की. खास बात यह थी कि बोस ने जर्मनी तक पहुंचने के लिए कोलकाता से गोमो तक कार से यात्रा की, इसके बाद वह पेशावर तक ट्रेन से पहुंचे. फिर वह वहां से काबुल पहुंचे. वहां कुछ दिन रहने के बाद वह जर्मनी के लिए निकले.
जब कांग्रेस की आजादी का किया विरोध
सुभाष चंद्र बोस शुरू से ही अपने मुखर व्यवहार के लिए जाने जाते रहे हैं. यही वजह थी उन्होंने सबसे पहले कांग्रेस की चरणबद्ध आजादी के तरीके का विरोध किया. उन्होंने न सिर्फ इसका विरोध किया बल्कि पूरे देश को एक साथ आजाद कराने की बात भी रखी. बोस ने इसके लिए ब्रिटिश सरकार से लोहा लेने का एलान किया. इतने बड़े स्तर पर ऐसा कहने वाले वह पहले शख्स थे.
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भगवत गीता से मिलती थी प्रेरणा
यह बहुत कम लोगों को पता है कि सुभाष चंद्र बोस को ब्रिटिश सरकार लोहा लेने और उन्हें देश से बाहर करने की प्रेरणा भगवत गीता से मिलती थी. वह जब भी उदास या अकेले होते थे तो भगवत गीता का पाठ जरूर करते थे. वह स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व और उनकी बातों से भी खासे प्रभावित थे.
गांधी के विचारों से हमेशा असहमत थे
सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के विचारों से हमेशा ही असहमत रहने वालों में से थे. उनका मानना था कि ब्रिटिश सरकार को भारत से बाहर करने के लिए गांधी की अहिंसा की नीति किसी काम की नहीं है और इससे उन्हें आजादी हासिल नहीं होगी. उन्होंने कई बार इस बात का खुले तौर पर विरोध भी किया.
देश से बाहर तैयार की अपनी सेना
देश को आजाद कराने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी और बाद मं पूर्वी एशिया में रहते हुए अपनी अलग सेना बनाई. जिसे बाद में उन्होंने आजाद हिंद फौज का नाम दिया. ज्यादा से लोगों को इस आंदोलन से जोड़ने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद रेडियो स्टेशन की भी स्थापना की. ताकि वह इसके माध्यम से जर्मनी में रह रहे भारतीयों को अपनी सेना में शामिल कर सकें.
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महात्मा गांधी को पहली बार बोस ने कहा था राष्ट्रपिता
सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता बुलाने वाले सबसे पहले शख्स थे. यह बहुत कम लोगों को ही पता है कि उन्होंने महात्मा गांधी से कुछ मुलाकात के बाद ही उन्हें यह उपाधि दी. इसके बाद अन्य लोग भी गांधी जी को राष्ट्रपिता बोलने लगे. हालांकि कुछ समय बाद वह महात्मा गांधी और उनकी पार्टी से अलग हो गए. बोस ने रंगून के रेडियो चैनल से महात्मा गांधी को संबोधित करते हुए पहली बार राष्ट्रपिता कहा था.
मौत आज भी बनी हुई है रहस्य
सुभाष चंद्र बोस की मौत आज तक एक रहस्य की तरह ही है. भारत सरकार ने उनसे जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए कई बार अलग-अलग देश की सरकार से संपर्क किया लेकिन उनके बारे कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई. सुभाष चंद्र बोस की मौत को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित है लेकिन उनकी मौत को लेकर अभी तक कोई साक्ष्य किसी के पास नहीं हैं.
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तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा, का दिया नारा
आज हिंद फौज की स्थापना करने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने युवाओं को अपनी सेना में शामिल करने की योजना बनाई. इसके लिए उन्हें देश के युवाओं से अनुरोध किया कि वह उनकी फौज में शामिल होकर उनका साथ दें. इसी समय उन्होंने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा दिया था. बोस चाहते थे कि वह अपनी फौज की मदद से भारत को ब्रिटिश सरकार से आजाद कराएं.
अपनी वर्दी से था सबसे ज्यादा प्यार
सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज की स्थापन के बाद से ही वर्दी पहनने लगे थे. उन्हें अपनी वर्दी से सबसे ज्यादा प्यार था. कहा जाता है कि वह युवाओं में जोश भरने के लिए ऐसा करते थे.
VIDEO: सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी फाइलें हुई सार्वजनिक
आजाद हिंद फौज की स्थापना के बाद से उनकी जितनी भी तस्वीरें सामने आई उनमें उन्होंने वर्दी पहनी हुई है. उनका मानना था कि किसी चीज को पाने के लिए उसके साथ जुड़ना बहुत जरूरी है.
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