देश भर के विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष की परीक्षा (Final Year Exams) रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं के जवाब में यूजीसी (UGC) ने सुप्रीम कोर्ट (SC) में हलफ़नामा दाखिल कर दिया है. यूजीसी ने दिल्ली सरकार और महाराष्ट्र सरकार द्वारा अपने-अपने राज्य की यूनिवर्सिटी में अंतिम वर्ष की परीक्षाएं रद्द करने के फ़ैसले पर विरोध जाहिर किया है. यूजीसी (UGC) ने कहा है कि यूजीसी एक स्वतंत्र संस्था है, विश्वविद्यालयों में परीक्षाओं के आयोजन का ज़िम्मा यूजीसी का है न कि किसी राज्य सरकार का. यूजीसी ने अपने हलफनामे में फिर दोहराया है कि वह सितंबर तक परीक्षाओं के आयोजन के हक़ में हैं, जो कि छात्रों के भविष्य के हित के मद्देनज़र सही है. बता दें कि सितंबर के अंत तक देश भर के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर परीक्षा (Final Year Exams) करवाने वाले यूजीसी (UGC) के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में कल एक बार फिर से सुनवाई होने वाली है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी दाखिल किया सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा
गृह मंत्रालय ने भी सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर दिया है. MHA ने कहा है कि उसने बड़ी संख्या में छात्रों के "शैक्षणिक हित" को ध्यान में रखते हुए 6 जुलाई 2020 को अधिसूचना जारी करके विश्वविद्यालयों और संस्थानों द्वारा परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी है. यह कहा गया है कि निर्णय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा किए गए अनुरोधों और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 10 (2) (1) के तहत जारी किए गए निर्देशों के अनुसार लिया गया है.
सोमवार को हुई पिछली सुनवाई में यूजीसी ने कोरोना के चलते महाराष्ट्र और दिल्ली सरकारों द्वारा राज्यों की यूनिवर्सिटीज में परीक्षा न कराने के फैसले पर सवाल उठाया था. UGC ने दिल्ली और महाराष्ट्र सरकार के उस आदेश पर जवाब दाखिल करने की बात कही थी, जिसमें राज्य में परीक्षा न कराने की बात कही गई थी. UGC की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा था कि परीक्षा आयोजित की जाएंगी या नहीं, यह फैसला UGC ही कर सकता है, क्योंकि सिर्फ UGC ही डिग्री प्रदान कर सकता है. सुनवाई के दौरान यूजीसी ने यह भी कहा कि बिना परीक्षा के मिली डिग्री को मान्यता नहीं दी जा सकती है.
वहीं, दूसरी ओर याचिकाकर्ताओं का कहना है कि परीक्षा के आयोजन को लेकर यूजीसी का स्टैंड कोरोना से बचाव पर गृह मंत्रालय की गाइडलाइन से बिल्कुल अलग है. दिल्ली सरकार ने कोरोना संकट के चलते अपने सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं को न करवाने का फ़ैसला लिया है. दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि दिल्ली राज्य के विश्वविद्यालयों की अंतिम वर्ष और अंतिम सेमेस्टर सहित हर वर्ष के छात्रों की ऑनलाइन और ऑफ़लाइन परीक्षाएं रद्द कर दी गई हैं.
वहीं, यूजीसी ने देशभर के विश्वविद्यालयों को अंतिम वर्ष की परीक्षाएं 30 सितंबर तक आयोजित करवाने का निर्देश दिया था, जिसका 31 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर विरोध किया है, छात्रों की दलील है कि कोरोना संकट काल में हर जगह हर छात्र के लिए परीक्षाओं में शामिल हो पाना संभव नहीं है.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट (SC) में अपना जवाब दाखिल किया था, जिसमें कहा गया था कि फ़ाइनल ईयर की परिक्षाएं (Final Year Exams) 30 सितंबर तक आयोजित करवाने का मक़सद छात्रों का भविष्य संभालना है, ताकि छात्रों के अगले साल की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए. इसके साथ ही यूजीसी ने कहा था कि किसी को भी इस धारणा में नहीं रहना चाहिए कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए परीक्षाएं कैंसिल कर दी जाएंगी. छात्रों को अपनी पढ़ाई की तैयारी जारी रखनी चाहिए.
सुनवाई में याचिकाकर्ता छात्रों के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि देश में बहुत से विश्विद्यालयों में ऑनलाइन परीक्षा के लिए ज़रूरी सुविधा नहीं है, तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऑफलाइन का भी विकल्प है. इसपर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि बहुत से लोग स्थानीय हालात या बीमारी के चलते ऑफलाइन परीक्षा नहीं दे पाएंगे. उन्हें बाद में परीक्षा देने का विकल्प देने से और भ्रम फैलेगा.
ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कोरोना को लेकर छात्रों के स्वास्थ्य के मद्देनजर परीक्षा आयोजित न करने की अपील की गई है. याचिकाओं में 6 जुलाई को जारी किए गए यूजीसी दिशानिर्देशों को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से निर्देश जारी करने की मांग की गई है. 6 जुलाई को यूजीसी के दिशानिर्देशों में सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्देश दिया गया था.
याचिकाकर्ताओं में COVID-19 पॉजिटिव का एक छात्र भी शामिल है, उसने कहा है कि ऐसे कई अंतिम वर्ष के छात्र हैं, जो या तो खुद या उनके परिवार के सदस्य COVID-19 पॉजिटिव हैं. ऐसे छात्रों को 30 सितंबर, 2020 तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं में बैठने के लिए मजबूर करना, अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का खुला उल्लंघन है.
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