दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एकल न्यायाधीश की ओर से दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कॉलेज को उसके अल्पसंख्यक दर्जे के तहत प्रवेश प्रक्रिया चलाने की अनुमति देने के लिए सुनाए गए फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई से इंकार कर दिया है।
न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति आई एस मेहता की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि अपील दायर करने वाली शिक्षिका की बात में कोई आधार नहीं है। इस शिक्षिका ने अपील में कहा है कि यदि प्रवेश अल्पसंख्यक दर्जे के तहत दिए जाते हैं तो उनकी सेवा स्थितियां प्रभावित होंगी।
पीठ ने कहा, 'आप हमें दिखाइए कि अल्पसंख्यक दर्जे की वजह से आपकी सेवा से जुड़ी स्थितियां प्रभावित हुई हैं।' पीठ ने कहा, 'आपको किसी भी सूरत में कोई समस्या नहीं होगी।' पीठ ने कहा, 'असंतुष्ट लोगों (छात्र-शिक्षकों) को हमारे समक्ष आने दीजिए। आज आपके पास इस अपील को दायर करने के लिए कोई आधार नहीं था।' पीठ ने कहा कि शिक्षिका को याचिका वापस ले लेनी चाहिए वर्ना इसे खारिज कर दिया जाएगा। इसके बाद खालसा कॉलेज की शिक्षिका ने याचिका वापस ले ली।
अदालत अपने एकल न्यायाधीश की ओर से 20 जून को सुनाए गए अंतरिम आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। अंतरिम आदेश कुछ शिक्षकों की याचिका पर जारी किया गया था, जिसमें शिक्षकों ने श्री गुरू तेग बहादुर खालसा कॉलेज को अल्पसंख्यक दर्जा देने वाले राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी।
एकल न्यायाधीश ने शिक्षकों से पूछा भी था कि छात्रों को अल्पसंख्यक दर्जे के तहत प्रवेश दिए जाने से वे कैसे प्रभावित होते हैं? अपने अंतरिम आदेश में एकल न्यायाधीश ने यह भी कहा था कि संबंधित अधिकारियों को नए भर्ती होने वाले लोगों को यह बताना चाहिए कि कॉलेज के अल्पसंख्यक दर्जे को चुनौती देने वाली याचिका लंबित है।
शिक्षकों ने अपनी याचिका में इस आधार पर भी अल्पसंख्यक दर्जे का विरोध किया था कि इससे एससी-एसटी छात्रों के हित प्रभावित होंगे।
शिक्षकों की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि कॉलेज को 2011 में अल्पसंख्यक दर्जा मिला था। तब शिक्षकों के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय ने भी इसे चुनौती दी थी। उनकी याचिका के बाद 2012 में उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी।
डीएसजीएमसी द्वारा संचालित चार कॉलेजों- एसजीटीबी खालसा कॉलेज, श्री गुरू गोबिंद सिंह कॉलेज ऑफ कॉमर्स, श्री गुरू नानक देव खालसा कॉलेज और माता सुंदरी कॉलेज को वर्ष 2011 में अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया गया था।
न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति आई एस मेहता की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि अपील दायर करने वाली शिक्षिका की बात में कोई आधार नहीं है। इस शिक्षिका ने अपील में कहा है कि यदि प्रवेश अल्पसंख्यक दर्जे के तहत दिए जाते हैं तो उनकी सेवा स्थितियां प्रभावित होंगी।
पीठ ने कहा, 'आप हमें दिखाइए कि अल्पसंख्यक दर्जे की वजह से आपकी सेवा से जुड़ी स्थितियां प्रभावित हुई हैं।' पीठ ने कहा, 'आपको किसी भी सूरत में कोई समस्या नहीं होगी।' पीठ ने कहा, 'असंतुष्ट लोगों (छात्र-शिक्षकों) को हमारे समक्ष आने दीजिए। आज आपके पास इस अपील को दायर करने के लिए कोई आधार नहीं था।' पीठ ने कहा कि शिक्षिका को याचिका वापस ले लेनी चाहिए वर्ना इसे खारिज कर दिया जाएगा। इसके बाद खालसा कॉलेज की शिक्षिका ने याचिका वापस ले ली।
अदालत अपने एकल न्यायाधीश की ओर से 20 जून को सुनाए गए अंतरिम आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। अंतरिम आदेश कुछ शिक्षकों की याचिका पर जारी किया गया था, जिसमें शिक्षकों ने श्री गुरू तेग बहादुर खालसा कॉलेज को अल्पसंख्यक दर्जा देने वाले राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी।
एकल न्यायाधीश ने शिक्षकों से पूछा भी था कि छात्रों को अल्पसंख्यक दर्जे के तहत प्रवेश दिए जाने से वे कैसे प्रभावित होते हैं? अपने अंतरिम आदेश में एकल न्यायाधीश ने यह भी कहा था कि संबंधित अधिकारियों को नए भर्ती होने वाले लोगों को यह बताना चाहिए कि कॉलेज के अल्पसंख्यक दर्जे को चुनौती देने वाली याचिका लंबित है।
शिक्षकों ने अपनी याचिका में इस आधार पर भी अल्पसंख्यक दर्जे का विरोध किया था कि इससे एससी-एसटी छात्रों के हित प्रभावित होंगे।
शिक्षकों की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि कॉलेज को 2011 में अल्पसंख्यक दर्जा मिला था। तब शिक्षकों के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय ने भी इसे चुनौती दी थी। उनकी याचिका के बाद 2012 में उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी।
डीएसजीएमसी द्वारा संचालित चार कॉलेजों- एसजीटीबी खालसा कॉलेज, श्री गुरू गोबिंद सिंह कॉलेज ऑफ कॉमर्स, श्री गुरू नानक देव खालसा कॉलेज और माता सुंदरी कॉलेज को वर्ष 2011 में अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया गया था।
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