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This Article is From Feb 27, 2019

'मेरा नाम आजाद है, पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल है' : चंद्रशेखर आजाद

चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था. आजाद कम उम्र में भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए थे.

'मेरा नाम आजाद है, पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल है' : चंद्रशेखर आजाद
Chandra Shekhar Azad: चंद्रशेखर आजाद की आज पुण्यतिथि है.
नई दिल्ली:

चंद्रशेखर आजाद की आज पुण्यतिथि (Chandra Shekhar Azad Death Anniversery) है. देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर देने वाले चंद्रशेखर आजाद एक क्रांतिकारी थे. उन्होंने 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के एलफेड पार्क में खुद को गोली मार ली थी. 1920 में 14 वर्ष की आयु में चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़े. वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए. जहां उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को उनका निवास बताया. आजाद को 15 कोड़ों की सजा दी गई थी. चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था. आजाद कम उम्र में भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए थे. मां चंद्रशेखर आजाद को संस्कृत टीचर बनाना चाहती थी, जिसके चलते उनके पिता ने उनको बनारस के काशी विध्यापीठ भेज दिया था.

जिस वक्त चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) पढ़ाई कर रहे थे उसी वक्त जलियावाला कांड हो गया. जिसके बाद वो 1920 असहयोग आंदोलन से जुड़ गए. आजाद रामप्रसाद बिस्मिल के क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (एचआरए) से जुड़े. यहां से उनकी जिंदगी बदल गई. उन्होंने सरकारी खजाने को लूट कर संगठन की क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना शुरू कर दिया. उनका मानना था कि यह धन भारतीयों का ही है जिसे अंग्रेजों ने लूटा है. रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया था.

चंद्र

शेखर आजाद ने1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफिर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया था. चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में सुखदेव और अपने एक अन्य और मित्र के साथ योजना बना रहे थे. अचानक अंग्रेज पुलिस ने उनपर हमला कर दिया. आजाद ने पुलिस पर गोलियां चलाईं जिससे कि सुखदेव (यह वे सुखदेव नहीं हैं जो भगत सिंह के साथ फांसी पर चढ़ाए गए थे) वहां से बचकर निकल सके. पुलिस की गोलियों से आजाद बुरी तरह घायल हो गए थे.

वे सैकड़ों पुलिस वालों के सामने 20 मिनट तक लोहा लेते रहे. उन्होंने संकल्प लिया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी. इसीलिए अपने संकल्प को पूरा करने के लिए अपनी पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार ली और मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी.

चंद्रशेखर आजाद की लिखी पंक्तियां:
दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे,
आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे.

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