शेयर बाजार में आगामी सप्ताह निवेशकों की नजर डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य पर बनी रहेगी। इसके अलावा विदेशी संस्थागत निवेश की गतिविधियों पर भी देश के निवेशकों का ध्यान लगा रहेगा।
शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले रुपये के एक बार फिर से ऐतिहासिक निचला स्तर छू लेने के बाद निवेशकों का ध्यान अगले सप्ताह रुपये पर टिके रहने की उम्मीद है। शुक्रवार को जहां रुपये में डॉलर के मुकाबले 62.03 की ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई, वहीं शेयर बाजार में भी 750 अंकों से अधिक की गिरावट रही।
रुपये में गिरावट से आयात के महंगा हो जाने की उम्मीद है। इससे आखिरकार देश में महंगाई दर के फिर से बढ़कर असुविधाजनक स्तर पर पहुंच जाने की प्रबल संभावना बन गई है। ताजा महंगाई दर जुलाई के लिए 5.79 फीसदी दर्ज की गई, जो पिछले पांच महीने में सर्वाधिक है। जून में महंगाई दर 4.86 फीसदी थी और यह पिछले साल जुलाई में 7.52 फीसदी थी।
भारतीय रिजर्व बैंक ने लंबे समय तक महंगाई का हवाला देकर दरों में विशेष कटौती नहीं की थी। अब जब यह सुविधाजनक स्तर पर आ गई थी, तो रुपये के अवमूल्यन ने महंगाई के खतरे को फिर से बढ़ा दिया है। इसके साथ ही रिजर्व बैंक की दर कटौती की संभावना भी धूमिल हो गई है। रुपये में गिरावट चालू खाता घाटा की स्थिति और आर्थिक विकास दर के लिए भी अशुभ है।
इस साल बेहतर बारिश के कारण कृषि उपज बेहतर रहने की उम्मीद है। इससे खाद्य महंगाई दर में कमी आ सकती है। उपज बेहतर रहने से ग्रामीणों की क्रय क्षमता बढ़ेगी और इससे मांग में तेजी आएगी। इसके अलावा आगामी त्यौहारी सत्र के कारण भी खुदरा बाजार में तेजी रहने के आसार हैं। खास तौर से वाहन और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तु क्षेत्र की कंपनियां दूसरी और तीसरी तिमाही में अच्छा कारोबार कर सकती हैं।
पांच अगस्त से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र का भी निवेशकों के निवेश फैसले पर असर हो सकता है। मानसून सत्र में कई महत्वपूर्ण विधेयक संसद में पेश होने की उम्मीद है। आने वाले कुछ सप्ताहों में बाजार में शेयरों की व्यापक आपूर्ति के कारण शेयर बाजारों के सूचकांकों के ऊपर की ओर बढ़ने की उम्मीद कम ही है।
वर्ष 2013-14 में सरकारी कंपनियों के विनिवेश के सरकारी लक्ष्य से भी शेयरों की बिकवाली को हवा मिलेगी। सरकार ने सार्वजनिक कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी के विनिवेश से वर्तमान कारोबारी वर्ष में 40 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। सरकार ने निजी कंपनियों में भी अपनी हिस्सेदारी के विनिवेश से 14 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है।
लोकसभा चुनाव से जुड़ी खबरों के चलते अगले साल मई तक शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव बने रहने के आसार हैं। माना जा रहा है कि अगली सरकार कई पार्टियों की मिली जुली हो सकती है। इससे सुधार की प्रक्रिया के अवरुद्ध होने की आशंका है। इसका असर वित्तीय घाटा प्रबंधन पर नकारात्मक रूप से पड़ सकता है, और वैश्विक रेटिंग एजेंसियां भारत की रेटिंग घटा सकती हैं।
बाजार में इस वक्त सेंसेक्स से बाहर बड़ी संख्या में शेयरों में काफी गिरावट चल रही है। इसे देखते हुए निवेशक बॉटम अप की रणनीति अपना सकते हैं, यानी वे सस्ते शेयर खरीद सकते हैं। छोटे निवेशकों को इस दौरान सेक्टर कॉल लेने के बजाय खास-खास शेयरों पर ध्यान देना चाहिए।