देश के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने आज नए कारोबारी साल की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा पेश की. रेपो रेट 6.25% पर बरकरार रखा है यानी इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया है. यह लगातार तीसरी बार है जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने लेंडिंग रेट में किसी प्रकार का कोई बदलाव न किया हो.
हालांकि रिवर्स रेपो रेट को बढ़ाकर 6 फीसदी कर दिया गया है. वैसे जानकार और विश्लेषक यह पहले ही कह रहे थे कि इस बार भी रेपो रेट में कमी नहीं की जाएगी. दो दिन चलने वाली समिति की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक बुधवार से शुरू हो गई थी. रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने 8 फरवरी को पिछली मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर को 6.25 फीसदी पर बरकरार रखा था.
वहीं, आरबीआई ने वित्तीय वर्ष 2017-18 की पहली छमाही में मुद्रास्फीति का अनुमान 4.1 प्रतिशत और दूसरी छमाही में 5.0 प्रतिशत रखा है. रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया. आरबीआई ने कहा है कि 2016-17 में आर्थिक वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रह सकती है. आरबीआई का कहना है कि वृहत आर्थिक परिदृश्य में सुधार के संकेत दिखाई दे रहे हैं. मुद्रास्फीति के रूख को लेकर जोखिम दोनों तरफ से बराबर-बराबर है.
यह भी कहा गया कि मानूसन को लेकर अनिश्चितता से मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है. वहीं वस्तु एवं सेवा कर के असर से भी एकबारगी मुद्रास्फीति बढ़ने का खतरा है. रिजर्व बैंक ने रिवर्स रेपो दर 0.25 प्रतिशत बढ़ाकर 6 प्रतिशत की.. बैंकिंग तंत्र में नकदी की बाढ़ के कारण रिजर्व बैंक ने रेपो और रिवर्स रेपो के बीच का फासला कम किया गया. सीमांत स्थायी सुविधा और बैंक दर को बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत किया गया.
क्या आप जानते हैं कि क्या होता है रेपो रेप, रिवर्स रेपो रेट...
दरअसल, बैंकों को अपने प्रतिदिन के कामकाज लिए अक्सर बड़ी रकम की जरूरत होती है. तब बैंक केंद्रीय बैंक यानी रिजर्व बैंक से रात भर के लिए (ओवरनाइट) कर्ज लेने का विकल्प अपनाते हैं. इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे रेपो रेट कहा जाता है. अब सवाल यह है कि यह आम आदमी के लिए क्या मायने रखता है? दरअसल, रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है और इसके चलते बैंक आम लोगों को दिए जाने वाले कर्ज की ब्याज दरों में भी कमी करते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके. अब अगर रेपो दर में बढ़ोतरी की जाती है तो इसका सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से रात भर के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा. ऐसे में जाहिर है कि बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करेंगे वह भी उन्हें बढ़ाना होगा.
वहीं रिवर्स रेपो रेट, जैसा कि नाम से ही लगता है, रिवर्स रेपो रेट ऊपर बताए गए रेपो रेट से उल्टा हुआ. इसे ऐसे समझिए : बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद बहुत बार एक बड़ी रकम शेष बच जाती है. बैंक वह रकम अपने पास रखने के जाय रिजर्व बैंक में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें आरबीआई से ब्याज भी मिलता है. जिस दर पर यह ब्याज उन्हें मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं. वैसे कई बार रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में बहुत ज्यादा नकदी हो गई है तब वह रिवर्स रेपो रेट में बढ़ोतरी कर देता है. इससे होता यह है कि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपना पैसा रिजर्व बैंक के पास रखने लगते हैं.