प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने बचत खातों पर ब्याज दर के निर्धारण में बैंकों के बीच किसी तरह की साठगांठ की संभावना को खारिज किया है. आयोग ने यह पाया कि ब्याज दर का निर्धारण बाजार स्थिति के स्वतंत्र आकलन पर आधारित है और इसमें किसी साठगांठ की भूमिका नहीं है. आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए बैंकों द्वारा एक जैसी ब्याज दर दिये जाने तथा एक समान सेवा शुल्क लगाये जाने की जांच की. उसने इस बात पर भी गौर किया कि क्या ब्याज दर और शुल्क के निर्धारण में भारतीय बैंक संघ (आईबीए) की कोई भूमिका है.
प्रथम दृष्ट्या नियामक इससे संतुष्ट है कि आईबीए के अंतर्गत ज्यादातर बैंक बचत बैंक ब्याज दर (एसबीआईआर) तथा बैंक शुल्क के मामले में सामंजस्य के साथ काम करते हैं. इसे प्रतिस्पर्धा कानून का उल्लंघन मानते हुए नियामक ने जनवचरी 2015 में आदेश जारी कर अपनी जांच इकाई महानिदेशक को मामले की जांच करने और रिपोर्ट देने को कहा.
अपने 20 पृष्ठ के आदेश में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने कहा कि उसका मानना है कि महानिदेशक की रिपोर्ट से असहमत होने का कोई कारण नहीं है क्योंकि जो भी साक्ष्य हैं, वे ब्याज दर और सेवा शुल्क को लेकर बैंकों या आईबीए के बीच 2011 से 2016 के बीच सांठ-गांठ को साबित नहीं करते. आयोग के अनुसार अत: प्रतिस्पर्धा कानून की धारा 3 के प्रावधानों के उल्लंघन का कोई मामला नहीं है. धारा 3 गैर-प्रतिस्पर्धी समझौते से संबद्ध है.
सीसीआई ने सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों में से उन शीर्ष 10 बैंकों की जांच की जिनकी बचत बैंक खातों में करीब 70 प्रतिशत हिस्सेदारी है. ये बैंक हैं ... भारतीय स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक आफ इंडिया, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, बैंक आफ बड़ौदा, बैंक आफ इंडिया , केनरा बैंक तथा एक्सिस बैंक.