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Ground Report : जीएसटी की मार से कबाड़ी हैं बेहाल

सुबह-सुबह जब आप किसी कूड़ा घर के आसपास गुजरते होंगे तो इस कूड़ा घर के अंदर आपने कुछ लोगों को दूध की थैली, पुरानी चप्पल, पुराने न्यूज पेपर के साथ-साथ दूसरे सामानों को भी अलग करते हुए देखा होगा.
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NDTV Profit हिंदी09:08 AM IST, 20 Sep 2017NDTV Profit हिंदी
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सुबह-सुबह जब आप किसी कूड़ा घर के आसपास गुजरते होंगे तो इस कूड़ा घर के अंदर आपने कुछ लोगों को दूध की थैली, पुरानी चप्पल, पुराने न्यूज पेपर के साथ-साथ दूसरे सामानों को भी अलग करते हुए देखा होगा. इन लोगों का मुख्य काम है कूड़े से इन सामानों को अलग करना और उसे ठेकेदारों को बेचना. फिर ठेकेदार इन सामानों को वहां पहुंचाता है जहां इनका रीसाइक्लिंग होता है. इस तरह ये लोग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और इस बिज़नेस से कई परिवारों की भरण-पोषण हो रहा है. सबसे पहले कबाड़ियों की परिवार चलता है. ये लोग रोज़ अपनी ज़िंदगी को खतरे में डालकर सड़ा हुए कूड़े से ये सब सामान निकालते हैं. ठेकेदारों को बेचते हैं और ठेकेदार उसे आगे पहुंचाता है. जीएसटी लागू हो जाने के बाद इन लोगों की जिंदगी पर क्या असर पड़ा है, इसकी एनडीटीवी ने पड़ताल की. 

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सबसे पहले हम एक कूड़ा घर के पास पहुंचे. इस कूड़ा घर से इतनी गंदी बदबू आ रहा थी कि उसके आसपास खड़े रहना हमारे लिए मुश्किल हो रहा था. लेकिन इस कूड़े घर में कुछ लोग कूड़े से पुराने सामान अलग करते हुए नज़र आए और बोरी में लादकर दूसरी जगह ले जाते हुए दिखाई दिए. फिर हमने इन लोगों से बात की. 

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इन लोगों ने बताया कि जीएसटी की वजह से इनकी कमाई आधी से भी कम हो गई है. हर पुराने सामान का दाम आधे से ज्यादा घट गया है. फिर हम मसूदपुर गांव की जय हिन्द बस्ती पहुंचे. इस बस्ती में कई हजार लोग रहते हैं और कूड़ा बीनना इनका काम है. पिछले कई सालों से ये लोग इस पेशे में हैं. इस बस्ती के चारों तरफ हमें कबाड़ दिखाई दिया. हर पुराने सामान यहां जमा होता हुआ मिला. कूड़े से निकाले हुए कबाड़ को ये लोग यहीं जमा करते हैं और ठेकेदारों को बेचते हैं. जैसे ही पता चला कि हम मीडिया वाले हैं तो इन लोगों ने हम लोगों को घेर लिया और अपनी समस्या बताने लगे. सबकी जुबान में एक ही बोल था जीएसटी. इसकी वजह से उनकी कमाई आधे से ज्यादा कम हो गई है. लोग अलग-अलग सामान दिखाते हुए यह बता रहे थे कैसे सब सामानों का दाम कम हो गया है और अब उनको परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है. 

इस जय हिन्द बस्ती में और भी कई समस्याएं हैं. यहां पानी की सुविधा नहीं है. टैंकर से पानी आता है वह भी हफ्ते में एक बार. एक हफ्ते के लिए लोगों को पानी सुरक्षित करके रखना पड़ता है. यहां सरकार की तरफ से एक बड़ा शौचालाय तो बनाया गया है लेकिन यह चालू नहीं हुआ जिसकी वजह से लोगों को खुले में शौच करने के लिए पास के जंगल में जाना पड़ता है. कई लोगों की तरह हमारे मन में भी यह सवाल उठ रहा था कि जीएसटी के वजह से इन कबाड़ियों को क्यों और कैसे नुकसान हो रहा है? क्योंकि इन लोगों को जीएसटी देना नहीं पड़ता है. इन लोगों ने बताया की इनसे सामान खरीदने वाले ठेकेदारों को जीएसटी देना पड़ता है जिसका असर इन लोगों पर हो रहा है. पूरा मामला समझने के लिए हम पीवीसी बाजार, टिकरी कलान पहुंचे. पीवीसी बाजार एक डिपो है जहां हर पुराने सामान जैसे प्लास्टिक, जूते ,न्यूज़ पेपर और कई चीजें जमा होती हैं. कबाड़ियों के द्वारा संग्रह किया हुआ कबाड़ दिल्ली के अलग-अलग डिपो जाता है जिसमें से पीवीसी बाजार एक है. इस डिपो से यह पुराने सामान रीसाइक्लिंग के लिए अलग-अलग इंडस्ट्री में जाता है. पीवीसी बाजार में चारों तरफ पुराने सामानों के पहाड़ नज़र आए.

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पीवीसी बाजार में कई बड़े ठेकेदारों से बात हुई. सबका कहना था कि पुराने सामान पर उन लोगों को 12 से लेकर 18 प्रतिशत तक जीएसटी देना पड़ता है जिसकी वजह से उन लोगों की नुकसान हो रहा है. माल आगे नहीं बिक रहा है. कुछ लोगों ने यह बताया कि नए जूतों के ऊपर पांच प्रतिशत का जीएसटी है और जब ये जूते पुराने हो जाते और रीसाइक्लिंग के लिए डिपो आते हैं तो उस पर 18 प्रतिशत जीएसटी देना पड़ता है. सवाल यह भी उठता है कि ये लोग अपनी पॉकेट से तो जीएसटी नहीं दे रहे हैं फिर इनका नुकसान कैसे हो रहा है. अगर ये लोग पुराना माल खरीदने में जीएसटी देते हैं तो आगे इन सामानों को जब रीसाइक्लिंग करने वाली इंडस्ट्री को बेचते हैं तो उनसे भी जीएसटी लेते हैं और रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री वाले अपने सामान के ऊपर जीएसटी लगाकर लोगों को बेचते हैं. तो यहां आप कह सकते हैं जीएसटी तो आम आदमी दे रहा है तो फिर रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री, ठेकेदार इन लोगों की कैसे नुकसान हो रहा है. 

दरअसल माज़रा यह है कि जीएसटी के वजह से नए सामानों के दाम कम हुए हैं और रीसाइक्लिंग से बने सामानों के दाम बढ़ गया है. नए सामान और रीसाइक्लिंग के बने सामन का रेट लगभग आसपास पहुंच गया है जिसकी वजह से लोग नए सामान खरीद रहे हैं और रीसाइक्लिंग से बने सामानों की बिक्री कम हो गई है. अगर रीसाइक्लिंग से बना सामान नहीं बिक रहा है तो रीसाइक्लिंग के लिए जो पुराने सामानों की इस्तेमाल होता था उनकी डिमांड कम हो गई है. अगर रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री ने माल लेना कम कर दिया है तो ठेकेदारों ने भी कबाड़ियों से माल लेना कम कर दिया है, जिसकी वजह से कबाड़ियों को अपना माल को जमा करना पड़ रहा और कम पैसे में बेचना पड़ रहा है. आप यह कह सकते हैं कि जब डिमांड कम हो गई है तो दाम कम हो गए हैं.

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