वो ज्जबात का कौन-सा मोड़ है, वो अहसास की कौन-सी मंजिल है, वो धड़कनों की कौन-सी रुत है, वो मोहब्बत का कौन सा मौसम है, वो जिंदगी का कौन-सा मुकाम है, जहां सुरों के बादलों से आनंद बक्शी के गीत के चांद झलकते ना हों. सच तो यही है कि हर वो दूसरा तीसरा गीत जो हम अपने आसपास कभी ना कभी सुनते हैं, गाते हैं, गुनगुनाते हैं. उसमें आनंद बक्शी का लिखा गीत मिल ही जाता है. एक ऐसा गीतकार जिसने साल 1962 से लेकर 2002 तक 600 से ज़्यादा फ़िल्मों के लिए 3300 से भी अधिक गाने लिखे. जो आम आदमी का गीतकार कहलाया, जो आज के समाज का शायर कहलाया, लोक गीतों का वो टच जो उनके गानों में झलकता है. वो उनके जानने वालों और पसंद करने वालों से छुपा नहीं है. ऐसा ही एक क़िस्सा आज हम आपको बताने जा रहे हैं जो दिखाता है कि जितनी सरलता उनके गानों में थी. उतने ही सरल वे असल ज़िंदगी में भी थे लेकिन ये सरलता या यूं कहें कि शरारत उन पर उस समय भारी पड़ गई जब एक दूध के गिलास के चक्कर में उनकी जमकर पिटाई हुई.
जब बेच दी थी स्कूल की किताबें
बात दरअसल साल 1943 की है जब घरवालों ने आनंद बक्शी साहब को जम्मू के एक बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया था. परिवार का कहना था कि घर से दूर गुरुकुल में रहेगा तो पिंडी ( रावलपिंडी, पाकिस्तान) के वो कंजर दोस्त छूट जाएंगे, जो गाने बजाने और अभिनय की तरफ़ उसे खींच रहे हैं. क्योंकि आनंद बक्शी साहब का जन्म 21 जुलाई सन 1930 को अविभाजित भारत में हुआ था. इन्हें हमेशा से ही फिल्मों में काम करने का शौक था. एक दिन इन्होंने अपने स्कूल के दोस्तों के साथ मिलकर योजना बनाई कि अपनी स्कूली किताबें बेचकर ट्रेन से बम्बई जाएंगे. फिर क़िताबें बीच डाली और रावलपिंडी स्टेशन पहुंच गए. लेकिन इनके वो दोस्त स्टेशन नहीं आए, लिहाज़ा अंजान शहर में अकेले जाने की हिम्मत नहीं थी तो ये सपना भी चूर-चूर हो गया.
दूध के चक्कर में शुरू की मुक्केबाज़ी
ज़ाहिर था घरवालों को जब इस बात का पता चला तो इनकी ज़ोरदार पिटाई हुई और इन्हें बोर्डिंग स्कूल भेज दिया गया. यहीं से शुरू होता है असल क़िस्सा. दरअसल पहले साल की शुरूआत में ही कुछ दिनों बाद आनंद बक्शी साहब ने मुक्केबाज़ी में दाख़िला ले लिया, ऐसा इसलिए किया क्योंकि रोज़ाना मुक्केबाज़ों को एक गिलास दूध दिया जाता था. खेलों के टीचर मुक्केबाज़ी सिखाते थे लेकिन उनका तरीक़ा बड़ा ही ज़ालिमाना था. रोज़ाना वो एक बच्चे को चुनते और तब तक मारते जब तक कि वो बेहोश ना हो जाए. आनंद बक्शी साहब ख़ुद इस बात का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि " मैं किसी तरह से हमेशा उनकी नज़र से बचता रहा और मेरी कभी बारी नहीं आई. मैं चालाकी से दूर बना रहा और सिर्फ़ मुक्केबाज़ी के दस्ताने पहनने के बदले में रोज़ाना एक गिलास दूध पीता रहा. "
बेहोश हो जाने तक हुई पिटाई
वे आगे बताते हैं कि " कई महीने ऐसे ही चलता रहा लेकिन एक दिन मुक्केबाज़ी टीचर की नज़र मुझ पर पड़ गई. उन्होंने कहा मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा, चलो अपने दस्ताने पहनों मैं तुम्हें सिखाता हूं कि मर्द की तरह अपना बचाव कैसे करते हैं. इसके बाद उन्होंने मुझे तब तक पीटा जब तक कि मैं बेहोश होकर ज़मीन पर ना गिर गया. वो मेरा मुफ़्त का दूध पीने का आख़िरी दिन था. इस क़िस्से का ज़िक्र आनंद बक्शी के बेटे राकेश आनंद बक्शी ने अपनी क़िताब ' नग़्में क़िस्से बातें यादें ' में किया है.
फिल्मी सफ़र
बात करें गीतकार के तौर पर इनके सफलतम करियर की तो 1969 में फ़िल्म आराधना से जहां देश को राजेश खन्ना के रूप में पहला सुपर स्टार मिला तो वहीं आनंद बक्शी साहब भी स्टार गीतकार के तौर पर पहचाने जाने लगे. ग़ज़ब की बात ये है कि उस दौर में हर 10 में से 5 फ़िल्मों में आनंद बक्शी के ही लिखे गीत होते थे. 42 बार उन्हें फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड के लिए नामांकित किया गया. लेकिन पहली बार उन्हें 1979 में आई फ़िल्म 'अपनापन' के गाने 'आदमी मुसाफ़िर है' के लिए पहला फ़िल्मफेयर अवॉर्ड मिला.
आनंद बक्शी के लिखे कुछ मशहूर गाने
1. प्यार दीवाना होता है मस्ताना होता है ( कटी पतंग)
2. आजा तेरी याद आई ( चरस)
3. आदमी मुसाफ़िर है ( अपनापन)
4. तू कितनी अच्छी है ( राजा और रंक)
5. सावन का महीना पवन करे सोर ( मिलन)
6. आने से उसके आए बहार ( जीने की राह)
7. ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते है जो मकाम ( आपकी क़सम)
8. दो लफ़्ज़ों की है दिल की कहानी ( द ग्रेट गैंबलर)
9. हमको तुमसे हो गया है प्यार क्या करें ( अमर अक़बर एंथॉनी)
10. मेरे मेहबूब क़यामत होगी ( मि. एक्स इन बॉम्बे)
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