
किशोर कुमार आज होते तो 96 साल के होते. अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना जैसे कई सितारों की आवाज़ बने किशोर कुमार खास तौर पर योडेलिंग के लिए हिन्दी सिनेमा में जाने गए. बंगाली, मराठी, असमिया, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम, ओडिया और उर्दू सहित कई भाषाओं में गीत गाए और 8 बार फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने का भी रिकॉर्ड बनाया लेकिन एक ऐसा गाना उनके हिस्से आया जिसने उनकी नाक में दम कर दिया. वैसे इस गाने के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. ये गाना 1982 में रिलीज़ हुई सुपरहिट फिल्म 'नमक हलाल' का पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी" है. वो गाना जिसे अमिताभ के अनूठा अंदाज़ और किशोर कुमार की चुलबुली आवाज़ और बप्पी दा के संगीत ने साल का सबसे बड़ा गीत बनाया.
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वैसे तो इस गाने से जुड़े कई मज़ेदार किस्से हैं लेकिन शुरुआत इसी किस्से से जिसने किशोर कुमार की रातों की नींद उड़ा दी. अगर आपने गाना सुना हो तो इस गाने में लम्बी लम्बी सरगम आती है. जिसे देखकर किशोर कुमार भी घबरा गए. अब एक से एक कठिन गाने गा चुके किशोर कुमार के लिए ये गाना चुनौती बन गया हालांकि उन्होंने कोशिश की, रिहर्सल भी की लेकिन फिर उस सरगम को पंडित सत्यनारायण मिश्रा से गवाया गया.
तो ऐसे ये वो गाना बना जिसे खुद दिग्गज गायक किशोर कुमार भी पूरा नहीं गा पाए. इस गाने से जुड़े कई और मज़ेदार किस्से हैं जैसे जब किशोर कुमार इस गाने की सिटिंग में पहली बार पहुंचे तो उन्होंने इसे गाने से साफ इंकार कर दिया था. वजह थी गाने की लंबाई जो करीब 12 मिनट थी. गीतकार अंजान और बप्पी दा के साथ बैठे किशोर दा ने जब ये गाना लिखना शुरू हुए तो लिख लिखकर परेशान हो गए. उन्होंने फिल्म के निर्देशक प्रकाश मेहरा को तुरंत सिटिंग में आने को कहा. प्रकाश मेहरा पहुंचे तो किशोर कुमार ने कहा कि मैं ये गाना नहीं गाऊंगा. मैं दिल का मरीज़ हूं इतना लम्बा गाना नहीं गा सकता. प्रकाश तुम इतना लम्बा लम्बा गाना क्यों लिखवाते हो इस गाने को करने में 2 महीने लग जाएंगे. तो इसके जवाब में प्रकाश मेहरा ने कहा कि किशोर दा आपसे इतना लम्बा गाना गवाने की दो वजह है- एक तो हमारी फिल्म का हीरो लम्बा है तो लम्बे हीरो के लिए लम्बा गाना और क्योंकि आप फीस इतनी लम्बी लेते हो तो हमने सोचा कि क्यों न गाना भी लम्बा हो. मज़ाक मज़ाक में हुई ये बातचीत के बाद किशोर दा ने कहा कि अब तो गाना गाना ही पड़ेगा. वैसे इस गाने को किशोर दा ने 1 दिन में ही 3 से 4 घंटे में पूरा कर लिया था.
अब गाने से आपको तीसरा और आखिरी किस्सा सुनाते हैं. भले ही इस गाने के कंपोज़र बप्पी दा हों लेकिन इस गाने को कंपोज़ करने का श्रेय उनकी मां को भी जाता है. बप्पी दा की मां बांसुरी लाहिड़ी शास्त्रीय संगीत गायिका थी. प्रकाश मेहरा एक दिन बप्पी दा के घर पहुंचे और उन्होंने बप्पी दा कहा कि उन्हें एक गाना बनाना है फिल्म का जो बप्पी नहीं बनाएंगे. बप्पी हैरान हुए कि वे नहीं तो कौन बनाएगा. प्रकाश मेहरा ने कहा अपनी मां को बुलाइये. बप्पी दा ने अपनी मां को बुलाया वो भी घबराई हुई थी. उन्होंने प्रकाश मेहरा से पूछा क्या हुआ प्रकाश.
जवाब में प्रकाश मेहरा ने कहा 'मम्मी आपका बेटा तो कारीगर आदमी है लेकिन आज मैं एक गाना लेकर आया हूं आप इसका मुखड़ा बना दीजिए बाकी गाना बप्पी बनाएगा. मैं आपको एक लाइन दूंगा आप उसे किसी बंदिश में डाल देना. पहले बप्पी दा की मां ने मना कर दिया फिर उन्होंने कहा कि आप कर लेंगी. एक बड़ी पॉपुलर लाइन मीरा बाई की है जिसे अंजान जी ने फिल्मी रंग दिया है उन्होंने लिखा है पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी और मैं नाचूं बिन घुंघरू के. बप्पी दा की मां ने 15 मिनट का वक्त लिया और गाना गाना शुरू किया. और बेटे बप्पी ने तुरंत गिटार बजाना शुरू कर दिया. बस ये सुनकर प्रकाश मेहरा ने कहा मम्मी मेरा गाना तैयार है.
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