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मुर्दों को दफनाने की समस्या, गांव में बची सिर्फ चार जगह, पंचायत से भी धांसू है ये फिल्म, OTT पर कर रही ट्रेंड

पंचायत के बाद गांव और उसके सिस्टम पर बनी एक और फिल्म ने भी सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है. इस फिल्म में एक टॉप एक्ट्रेस ने ग्राम प्रधान का रोल किया है.

मुर्दों को दफनाने की समस्या, गांव में बची सिर्फ चार जगह, पंचायत से भी धांसू है ये फिल्म, OTT पर कर रही ट्रेंड
पंचायत से भी धांसू है गांव पर बनी ये फिल्म, आपने देखी?
नई दिल्ली:

ओटीटी की दुनिया में इन दिनों देसी वेब सीरीज पंचायत सीजन 4 छाई हुई है. फुलेरा गांव के लोग और सचिव जी जमकर लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं. गांव पर सरपंच और जय महेंद्रन जैसी सीरीज भी लोगों को खूब पसंद आई थी. अब गांव और उसके सिस्टम पर बनी एक और फिल्म ने भी सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है. इस फिल्म में साउथ सिनेमा की एक टॉप एक्ट्रेस ने ग्राम प्रधान का रोल किया है. फिल्म में गांव की अलग ही समस्याओं को दिखाया गया है. यह फिल्म कॉमेडी से भरपूर है और यह दर्शकों को भावुक भी करती है. इसे आप प्राइम वीडियो पर देख सकते हैं.

काल्पनिक गांव पर बनी फिल्म

बात कर रहे हैं फिल्म 'उप्पु कप्पुरम्बू' (Uppu Kappurambu) की, जिसे आप तमिल, तेलुगू, मलयालम और कन्नड़ के साथ-साथ हिंदी भाषा में भी देख सकते हैं. सुहास, कीर्ति सुरेश, बाबू मोहन और रामेश्वरी स्टारर यह फिल्म एनी IV सासी ने डायरेक्ट की है. फिल्म साल 1992 में एक काल्पनिक गांव चिट्ठी जयापुरम पर बेस्ड है, जहां लोग अपने रीति-रिवाज के अनुसार चलते हैं और अपने मृतकों को जलाने के बजाय दफनाना पसंद करते हैं. फिल्म में अपूर्वा (कीर्ति सुरेश) पिता के गुजर जाने के बाद गांव के प्रधान की शपथ लेती हैं, लेकिन गांव वाले उनके प्रधान बनने से खुश नहीं हैं.

क्या है गांव की असल समस्या?

गांव का प्रधान बनते ही अपूर्वा एक सभा बुलाती है, जहां गांव वाले एक-एक कर उससे सवाल पूछते हैं और वह सभी का जवाब घुमा फिराकर देती है. इस गांव की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां मरने वालों को जलाया नहीं बल्कि दफनाया जाता है. यह हिंदू समाज का गांव होने के बावजूद भी कब्रिस्तान जैसा है और दिक्कत यह है कि मृतकों को दफनाने के लिए गांव में पर्याप्त जगह नहीं बची है.

कैसे होगा इसका समाधान?

आखिर में गांव में सिर्फ चार लोगों के ही दफनाने की जगह होती है और गांव वाले अपूर्वा से सवाल करने लगते हैं. इसके बाद गांव की प्रधान एक लॉटरी बॉक्स रखती हैं और उसमें बुजुर्गों के नाम की पर्चियां डाली जाती हैं. इसमें जब एक शख्स की मां का नाम आता है तो वह बहुत खुश होता है और इस बात पर वह गांव वालों को दावत देता है. दावत में घर पर बनाई शराब पिलाई जाती है और इसमें चार और लोगों की मौत हो जाती है. अब आगे क्या होगा? गांव की प्रधान इस समस्या से कैसे निपटेगी. यह फिल्म में देखने को मिलेगा. 





 

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