
हिंदी सिनेमा में ‘जुबली कुमार' के नाम से मशहूर राजेंद्र कुमार ने न केवल अपनी एक्टिंग से दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाई. बल्कि फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी अपनी समझदारी से अलग नया मुकाम हासिल किया. उनकी पहली फिल्म ‘वचन' (1955) थी, जिसमें गीता बाली, राजेंद्र कुमार और मदन पुरी अहम रोल में नजर आए थे. फिल्म दर्शकों को खूब पसंद आई. लेकिन इस फिल्म के प्रीमियर के दौरान एक रोचक वाक्या हुआ, जिसने राजेंद्र कुमार को प्रोडक्शन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाया.
दरअसल, ‘वचन' के प्रीमियर के लिए राजेंद्र कुमार से पूछा गया कि क्या वह अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए सीट्स चाहते हैं, तो उन्होंने बिना ज्यादा सोचे 10 सीट्स मांगी, यह मानकर कि ये मुफ्त होंगी. लेकिन जब वह निर्माता के लेखाकार से अपनी फीस लेने गए, तो उन्हें कम राशि दी गई. कारण पूछने पर पता चला कि उन 10 सीट्स की कीमत उनकी फीस से काट ली गई थी. इस घटना ने राजेंद्र को एक बड़ा सबक दिया कि फिल्म निर्माण में हर छोटी-बड़ी लागत का हिसाब रखा जाता है.
इस अनुभव को राजेंद्र ने अपने दिल में बिठा लिया और जब उन्होंने 1986 में अपने बेटे कुमार गौरव और संजय दत्त की फिल्म ‘नाम' का निर्माण किया, तो उन्होंने इस सिद्धांत को लागू किया. हुआ यूं कि फिल्म की शूटिंग के दौरान एक्ट्रेस अमृता सिंह ने हॉन्गकॉन्ग से भारत तक लंबे फोन कॉल्स किए. इसके चलते राजेंद्र ने इन कॉल्स की लागत को ध्यान में रखा और अमृता की फीस से कुछ राशि काट ली. यह निर्णय उनके उस पुराने अनुभव का नतीजा था, जो उन्होंने ‘वचन' के प्रीमियर से सीखा था.
राजेंद्र कुमार की यह कहानी न केवल उनकी सूझबूझ को दर्शाती है, बल्कि फिल्म इंडस्ट्री में लागत प्रबंधन के महत्व को भी उजागर करती है. उनकी फिल्में जैसे ‘संगम', ‘मेरे महबूब' और ‘आरजू' आज भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय हैं.
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