पृथ्वीराज कपूर नाम ही काफी है. उन्हें कौन नहीं जानता. वह भारतीय सिनेमा और फिल्मों की वह मशहूर हस्ती हैं, जिसकी भारी-भरकम आवाज में डायलॉग डिलीवरी के सामने अच्छे-अच्छे कलाकार फीके पड़ जाते थे. कहानी है दमदार आवाज और जबरदस्त अभिनय क्षमता के मालिक पृथ्वीराज कपूर की, जिन्होंने अपने अभिनय से सिनेमा जगत को और भी मजबूत किया. 3 नवंबर 1906 को अविभाजित भारत के पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान का फैसलाबाद) में जन्मे पृथ्वीराज कपूर को छोटी उम्र से ही अभिनय का शौक था. जब पढ़ा-लिखा और हैंडसम नौजवान बंबई (अब मुंबई) फिल्म नगरी पहुंचा तो देखते ही देखते सहायक कलाकार के तुरंत बाद हीरो का रोल निभाने लगा.
साइलेंट मूवी के दौर में भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी और बाद के छोटे से छोटे अभिनय से अपनी काबिलियत का एहसास दिलाया. पृथ्वीराज कपूर ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत थिएटर से की। पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' हो या केएल सहगल के साथ 'प्रेसिडेंट' या 'दुश्मन' जैसी फिल्म, पृथ्वीराज कपूर अपने अनोखे अंदाज और दमदार आवाज के लिए हमेशा पहचाने गए. पृथ्वीराज कपूर को जानने वाले 'पापाजी' कहकर पुकारा करते थे, शायद इसलिए कि वह सबकी सहायता करते थे और अक्सर जूनियर कलाकारों के हक में भी बात करते थे.
लेकिन उनकी जिंदगी का एक ऐसा भी किस्सा है, जब वह थिएटर के बाहर झोली लेकर खड़े हो जाया करते थे. पृथ्वीराज कपूर ने 1944 में पृथ्वी थिएटर्स की शुरुआत की थी. यहां तक पहुंचने का सफर जितना कठिन था, उससे ज्यादा चुनौतियां थिएटर को चलाए रखने की थीं, क्योंकि पृथ्वी थिएटर के लिए पृथ्वीराज अपना सबकुछ दांव पर लगा चुके थे.
कमाई इतनी भी नहीं थी कि वह ठीक ढंग से गुजारा कर सकें. कुछ आमदनी होती तो थिएटर के ही कामकाज में लग जाता था. परिस्थितियां सामने पहाड़ जैसी विशाल थीं और उनके सामने टिके रहने के लिए पृथ्वीराज ने फकीर वाला झोला उठा लिया। जब लोग थिएटर से शो देखने के बाद निकलते थे तो खुद पृथ्वीराज झोली लेकर खड़े हो जाते. शो से निकलने वाले लोग उस झोले में कुछ पैसे डाल देते थे। समाचार पत्रों में पृथ्वीराज कपूर से जुड़ी इस कहानी का उल्लेख मिलता है.
पृथ्वी थियेटर्स 1960 तक 16 साल तक चला. 5,982 दिनों में 2,662 शो किए गए. पृथ्वीराज कपूर ने हर एक शो में मुख्य भूमिका निभाई, यानी औसतन हर तीसरे दिन एक शो. हालांकि, 1960 में पृथ्वीराज कपूर के खराब स्वास्थ्य के कारण इसे बंद करना पड़ा. 29 मई 1971 को पृथ्वीराज कपूर इस दुनिया को छोड़ गए.
पृथ्वीराज कपूर को सिनेमा और थिएटर में महत्वपूर्ण योगदान के लिए साल 1972 में मरणोपरांत हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े पुरस्कार दादासाहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. हालांकि, वे 1954 और 1956 में संगीत नाटक अकादमी का संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 1969 में भारत सरकार की ओर से 'पद्म भूषण' पुरस्कार हासिल कर चुके थे.
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